उपन्यास
'कला बाजार' के लोकार्पण के अवसर पर बाएँ से अभिज्ञात, डॉ.
केदारनाथ सिंह व डॉ. विजय बहादुर सिंह
कोलकाता के भारतीय भाषा
परिषद में २२ नवम्बर की देर शाम को अभिज्ञात के उपन्यास
'कला बाज़ार' का लोकार्पण विख्यात कवि डॉ. केदारनाथ सिंह
ने किया। उन्होंने इस अवसर पर कहा कि कवि अभिज्ञात को मैं
काफी बरसों से जानता हूँ। वे गहरे सरोकार वाली कविताएँ
लिखते रहे हैं उनका एक उपन्यास पहले भी आया है। यह दूसरा
उपन्यास है और किसी भी लेखक की पहचान उसकी दूसरी कृति से
ही होती है क्योंकि एक कृति को कोई भी जोड़तोड़ करके लिख
सकता है। विश्वास है कि कथा साहित्य में भी वे अपनी
काव्यसंवेदना के कारण एक विशिष्ट पहचान बनाने में सफल
होंगे।कार्यक्रम में भारतीय भाषा परिषद के निदेशक और
प्रख्यात आलोचक डॉ. विजय बहादुर सिंह ने कहा कि अभिज्ञात
के इस उपन्यास की भाषा में एक ख़ास तरह का प्रवाह और
पठनीयता है जो बरबस अपनी ओर खींचती है। वे लिखने के लिए
नहीं लिखते बल्कि उनके पास कहने के लिए बहुत कुछ है और
उनका लेखन उद्देश्यपरक है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि
उद्देश्यपरकता और पठनीयता को एक साथ साधना मुश्किल होता
है, जिसमें अभिज्ञात सफल रहे हैं। भारत के बहुलतावादी
सांस्कृतिक परिवेश में विभिन्न संस्कृतियों के बीच के पुल
की शिनाख्त करते इस उपन्यास में दिखाई देते हैं जो इस कृति
को अर्थवान बनाता है। कार्यक्रम में कलकत्ता विश्वविद्यालय
के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. अमरनाथ शर्मा ने भी सम्बोधित
किया। इस उपन्यास के पूर्व अभिज्ञात के छह कविता संग्रह और
एक उपन्यास 'अनचाहे दरवाज़े पर' प्रकाशित हो चुके हैं।यह
उनकी आठवीं कृति है।
सद्भावना
साहित्यिक संस्था द्वारा
प्रकाशित कविता संग्रह 'बौछार' का लोकार्पण
'सद्भावना हिंदी साहित्यिक
संस्था' द्वारा 'काव्य वृष्टि' के उपरांत प्रकाशित दूसरी
पुस्तक 'बौछार' का विमोचन १६ नवंबर २००८ की साँझ, विशिष्ट
अतिथि तत्कालीन कौंसुलाध्यक्ष माननीय श्री सुरेंद्र अरोरा
जी द्वारा संपन्न हुआ।
कौंसुलाध्यक्ष माननीय
श्री अरोरा जी ने सद्भावना हिंदी साहित्यिक संस्था व वसुधा
की, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु प्रशंसा की तथा भविष्य
में ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहित किया।
हिंदी के प्रति कहे गए उनके वचनों ने समारोह में उपस्थित
सभी को हिंदी के भविष्य के प्रति आश्वस्त किया। इस समारोह
में श्रीमती नीलिमा अरोरा जी ने भी बहुत उत्साहपूर्वक भाग
लिया। उनका हिंदी प्रेम, हिंदी के प्रति गर्व, हम आप्रवासी
भारतीयों के लिए बहुत ही हर्ष का विषय है। समारोह में
उपस्थित सभी हिंदी-प्रेमियों से वो जिस सहजता,
स्वाभाविकता, सरसता से मिली, उनकी मिलनसार प्रकृति ने सभी
को सम्मोहित किया। संस्था के कर्मठ सदस्यों, कलाकारों एवं
गुणशील श्रोताओं की सहभागिता से यह आयोजन अत्यंत सफल रहा।
'बौछार' धरा और आकाश की काव्यमयी भावनाओं के उद्वेग
का प्रतीक है। इसके कवि हैं- श्री सरन घई, श्री गोपाल
बघेल, श्रीमती श्यामा सिंह, आचार्य संदीप कुमार त्यागी
'दीप', श्री रमन अग्रवाल एवं श्रीमती स्नेह ठाकुर।
कार्यक्रम का शुभारंभ
प्यारे लाल गौड़ एवं श्रीमती सत्या गौड़ के स्वर में
सरस्वती वंदना से हुआ दीप प्रज्वलन के बाद संस्था
की, अमृता शाक्य ने 'रघुपति राघव राजा राम' प्रस्तुत किया
इसके पश्चात 'बौछार' के रचनाकारों ने 'बौछार' से अपनी
रचनाओं का काव्य-पाठ किया। इस अवसर पर श्री उमादत्त दुबे,
श्रीमती सविता अग्रवाल, श्रीमती सत्या गौड़, श्रीमती रजनी
सक्सेना, श्री शांति स्वरूप सूरी, श्रीमती निशा लाल,
सुश्री बिमला सिंह, श्री सिंह, श्री नरेश, श्री प्यारे लाल
गौड़, श्री रघु आर्या, श्री प्रशांत सिंह, श्री राजीव
तोमर, ने भी अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं। आभार ज्ञापन
स्नेह ठाकुर ने किया जो इस संकलन की संपादक भी हैं।
स्पाइल-
दर्पण' ने २० वर्ष पूरे किये
विदेशों में हिन्दी
पत्रकारिता के स्वर्णिम दिन, 'स्पाइल- दर्पण' ने २० वर्ष
पूरे किये नॉर्वे से प्रकाशित द्वैमासिक 'स्पाइल-दर्पण' के
२० वर्ष पूरे होने पर पत्रिका के संपादक सुरेशचन्द्र शुक्ल
''शरद आलोक'' ने हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में एक नया
अध्याय जोड़ा। वे १९८० से १९८५ तक नॉर्वे से प्रकाशित पहली
हिन्दी पत्रिका परिचय' का संपादन भी कर चुके हैं।
स्पाइल-दर्पण स्कैन्डिनेवियन देशों (नॉर्वे, स्वीडेन,
डेनमार्क, फिनलैंड और आइसलैंड) के अतिरिक्त सभी यूरोपीय
देशों की हिन्दी पत्रिका है। इतना ही नहीं इसमें अमरीका,
कनाडा के अतिरिक्त मध्य एशियाई देशों की रचनाएँ और
साहित्यिक समाचार भी छपते हैं। इस अवसर पर १२ और १३ दिसंबर
को लेखक सेमीनार और सांस्कृतिक महोत्सव तथा १४ दिसम्बर को
नॉर्वे में पहली कथा संध्या सम्पन्न हुई जिसमें नॉर्वे से,
भारत से आये और प्रवासी लेखकों के साथ-साथ सैकड़ों प्रवासी
और स्कैन्डिनेवियाई प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस अवसर
पर लेखकों और बुद्धिजीवियों को सम्मानित और पुरस्कृत किया
गया जिसमें भारत से आये लेखकों डा सतिंदर कुमार सेठी,
रूहेलखंड विश्वविद्यालय के डा महेश दिवाकर, लखनऊ
विश्वविद्यालय के प्रो काली चरण स्नेही और सामाजिक
कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी, नॉर्वे से थूर स्योरहाइम,
आन्ने ओतेरहोल्म, थूरस्ताइन विंगेर, यालमार शेलान्द, ओस्लो
विश्वविद्यालय के प्रो. क्नुत शेलस्तादली व प्रो क्लाउस
जोलर, संगीता शुक्ला सीमोनसेन, यालमार शेलान्द, शाहेदा
बेगम, राय भट्टी, सुजाता प्रभु, माया भारती, फैसल नवाज
चौधरी, इन्दरजीत पाल, प्रवासी मीडिया के लिए रूपिन्दर सिंह
ढिल्लो (नॉर्वे), अनिल डोगरा (स्वीडेन) और चाँद शुक्ला
हादियाबादी (डेनमार्क), प्रगट सिंह और अन्य को पुरस्कृत और
सम्मानित किया गया।
भारत-नॉर्वे साहित्यिक संबंधों पर आयोजित दो दिवसीय
सेमीनार और सांस्कृतिक महोत्सव में भारत से आये लेखकों ने
ओस्लो विश्वविद्यालय के अध्यापकों के साथ मिलकर दो दिनों
तक विचार विमर्श किया और अपने-अपने आलेख पढ़े जिसमें
भारतीय दूतावास नॉर्वे, विदेश विभाग और सांस्कृतिक विभाग
के प्रतिनिधियों ने पूरे समय हिस्सा लेकर इसे ऐतिहासिक
बनाया। डा महेश दिवाकर ने आजादी के बाद के हिन्दी साहित्य
पर प्रभावपूर्ण आलेख पढ़ा तो प्रो काली चरण स्नेही ने दलित
साहित्य और नारी विमर्श पर बहुत रोचक आलेख पढ़ा। डा
सत्येन्द्र कुमार सेठी ने अपना लेख अमेरिका में
'स्पाइल-दर्पण' के योगदान और अमेरिका में प्रवासी
पत्रिकाओं का प्रचलन पर पढ़ा। सुरेशचन्द्र शुक्ल ''शरद
आलोक'' ने विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता में स्पाइल-दर्पण
का योगदान और भविष्य पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहा कि
विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता के विकास में हिन्दी
भाषियों के साथ-साथ वहाँ के मूलनिवासियों के अतिरिक्त
पंजाबीभाषियों और अहिंदी भाषियों का महत्वपूर्ण योगदान है।
'स्पाइल-दर्पण' भारत से बाहर अन्य हिन्दी पत्रिकाओं के साथ
आपसी सहयोग को प्रोत्साहित करेगा, भारतीय मूल के
राजनैतिक प्रतिनिधियों के अतिरिक्त वहाँ के मूल देश और
भारत तथा अन्य देशों के मध्य संबंध बेहतर करेगा और शांति
तथा सद्भाव का सन्देश देता रहेगा। हमारे आदर्श
विश्वशान्तिदूत महात्मा गाँधी हैं, जिनके आचरण को विश्व के
महान नेताओं और बुद्धिजीवियों ने अपनाया और विश्व में
शांति और सद्भाव का मार्ग प्रशस्त किया।
इस अवसर पर स्पाइल-दर्पण के आगामी २० वर्षों की विकास
यात्रा पर चर्चा की गयी। सेमीनार में मुख्य अतिथि थे
भारतीय राजदूत बी ए राय, अध्यक्षता की नार्विजन लेखक
केंद्र की अध्यक्ष इंगविल और आन्ने ओतेरहोल्म ने तथा
सेमीनार का संचालन किया संगीता शुक्ला सीमोनसेन ने। दूसरे
दिन के मुख्य अतिथि थे गुयाना के शिक्षामंत्री शेख बक्श और
बिएरके, ओस्लो के स्थानीय सर्वोच्च पदाधिकारी थूरस्ताइन
विंगेर। स्पाइल-दर्पण के संपादक सुरेशचन्द्र शुक्ल ''शरद
आलोक'' ने विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता और भारत-नॉर्वे
सांस्कृतिक संबंध को मजबूत बनाने की दिशा में स्पाइल-दर्पण
की भूमिका पर भी प्रकाश डाला। सांस्कृतिक विभाग ने
स्पाइल-दर्पण को मील का पत्थर बताते हुए आशा व्यक्त की कि
वह दोनो देशों के सांस्कृतिक संबंधों को अपना मार्गदर्शन
देता रहेगा तथा अपनी भूमिका पहले की तरह आने वाले वर्षों
में भी निभाता रहेगा। नॉर्वे के विदेश विभाग के प्रतिनिधि
ने भारतीय राजदूत बन्दित राय जी के इस बात का समर्थन किया
कि सुरेशचन्द्र शुक्ल ''शरद आलोक'' और स्पाइल-दर्पण दोनों
ने भारत नॉर्वे के सांस्कृतिक संबंधों को और अधिक मजबूत
किया है जिसके लिए वे संपादक को हार्दिक धन्यवाद देते हैं।
नॉर्वे के मशहूर संपादक और प्रकाशक यालमार शेलान्द ने कहा
कि सुरेशचन्द्र शुक्ल मेरे पत्र से संबद्ध हैं और पाठक
उनके लेखों को पढ़ने के लिए उतावले रहते हैं। उन्होंने आगे
कहा कि वह और शुक्ल जी दोनो नॉर्वे में बहुसंस्कृतियों को
जोड़ने का कार्य कर रहे हैं।
प्रो क़्लाउस जोलर ने हिन्दी डाटाबेस पर प्रकाश डाला और
प्रो क्नुत शेलस्तादली ने ''स्पाइल-दर्पण'' को नॉर्वे में
प्रवासी इतिहास का महत्वपूर्ण अंग बताया। थूर स्योरहाइम ने
सन १९८० में नॉर्वे में प्रवासी साहित्य के आदिकाल में
सुरेशचन्द्र शुक्ल और उनके समकालीन लेखकों को द्वार खोलने
वाला बताया। प्रसिद्ध नाटककार और कवि अर्लिंग कित्तेलसेन
ने कहा कि मेरी और सुरेश शुक्ल की कथनी और करनी एक है जो
चाहे स्वस्थ हों या बीमार, चाहे धन हो या न हो साहित्य और
संस्कृति सेवा में निरन्तर लगे रहते हैं। कवयित्री सिगरीद
मारिये रेफसुम ने कहा कि सुरेश शुक्ल और उनका परिवार दोनो
देशों के संबंधों को मजबूत बनाने की दिशा में समर्पित है।
उनका घर एक संस्थान है। भारत सरकार के शिक्षामंत्रालय के
सचिव ए के रथ जी ने स्पाइल- दर्पण को दोनो देशों के मध्य
आपसी मैत्री को मजबूत करने वाला बताते हुए अपने सहयोग का
आश्वासन दिया। नेपाल के शिक्षा सचिव और पाकिस्तान शिक्षा
मंत्रालय की महानिदेशक श्रीमती हरदूना जटोई ने एक अन्य
समारोह में स्पाइल-दर्पण की प्रति प्राप्त की और पत्रिका
की सफलता के लिए बधाई दी। नॉर्वे से स्पाइल-दर्पण को
शुभकामनाएँ भेजने वालों में विदेश विकास और पर्यावरण
मंत्री एरिक सूलहाइम, शिक्षामन्त्री बोर्ड वेगार सूलयेल,
ओस्लो के मेयर फाबियान स्तांग, सांसद और सोशलिस्ट लेफ्ट
पार्टी के नेता हाइकी होलमोस, सांसद सुश्री इंगे मार्टे
थूरकिलसेन, ओस्लो सांस्कृतिक समिति के सदस्य शेल वाइवोग,
सांसद अख्तर चौधरी, भारतीय दूतावास के प्रथम सचिव आर के
सिंह, अशोक कुमार और अन्य थे। आशा है कि स्कैन्डिनेवियन
लेखक सेमिनार आगे भी आयोजित होता रहेगा और
हिन्दी-नार्वेजीय भाषा के माध्यम से दूसरे देशों और भाषाओं
का सम्मान करते हुए हम विश्व में सांस्कृतिक सद्भाव बढ़ाने
का कार्य करते रहेंगे।