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डॉ. कृष्ण कुमार का सार्वजनिक अभिनन्दन-

बर्मिंघम (यू.के.) से पधारे प्रतिष्ठित कवि एवं हिन्दी सेवी डॉ. कृष्ण कुमार के मुम्बई आगमन पर कवयित्री माया गोविन्द के आवास पर जीवंती संस्था की और से उनका सार्वजनिक अभिनन्दन किया गया। डॉ. कृष्ण कुमार का परिचय कराते हुए कवि-संचालक देवमणि पांडेय ने कहा कि कवि और लेखक होने के साथ ही डॉ. कृष्ण कुमार 'गीतांजलि बहुभाषीय साहित्यिक समुदाय' के ज़रिए पिछले १२ सालों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार और भाषायी समन्वय के अभियान में पूर्णरूप से समर्पित हैं। अपने सम्मान के उत्तर में डॉ. कृष्ण कुमार ने कहा कि वक़्त की चुनौतियों को देखते हुए आज यह ज़रूरी हो गया है कि हम अपनी मातृभाषा को जीवित माँ समझें और अपनी भाषाओं के सम्मान में ज़रा भी शर्म न महसूस करें।कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध रंगकर्मी नादिरा बब्बर, प्रतिष्ठित फ़िल्म लेखिका डॉ. अचला नागर, कवि डॉ. बोधिसत्व, कथाकार अलका अग्रवाल और गायिका डॉ. रश्मि चौकसे जैसे कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।इस अवसर पर आयोजित काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार नंदलाल पाठक ने की।पाठक जी ने चुनिंदा शेर सुनाए-

मैं यूं तो डाल से टूटा हुआ सूखा सा पत्ता हूँ, मुझे सर पे उठाए फिर रही हैं आंधियाँ कितनी। माया गोविंद ने ब्रजभाषा के कुछ छंद तथा एक ग़ज़ल सुनाई- सूनी आँखों में जलीं देखीं बत्तियाँ हमने, जैसे घाटी में छुपी देखीं बस्तियाँ हमने। डॉ. कृष्ण कुमार ने सामयिक कविता पढ़ी- परबतों से पत्थरों को काटकर लाना सरल, पत्थरों को काटकर मूरत बनाना भी सरल। किन्तु इनमें प्राण का लाना नहीं आसान है, चेतना को बेच अब सोया हुआ इंसान है। संचालक देवमणि पांडेय ने ग़ज़ल सुनाई- इस जहाँ में प्यार महके ज़िंदगी बाक़ी रहे, ये दुआ माँगो दिलों में रोशनी बाक़ी रहे। नवभारत टाइम्स से जुड़े पत्रकार कैलाश सेंगर ने भी ग़ज़ल सुनाई- गूँगी चीखें, बांझ भूख और उस बेबस सन्नाटे में, हमने अपनी ग़ज़लें खोजीं चूल्हे, चौके, आटे में।

इनके अतिरिक्त गोष्ठी में कविता पाठ करने वाले मुम्बई महानगर के प्रमुख रचनाकार थे- डॉ. सुषमा सेन गुप्ता, देवी नागरानी, कविता गुप्ता, रेखा रोशनी, राम गोविंद. दिनेश थपलियाल, दीपक खेर, और अनंत श्रीमाली। 'जीवंती' के अध्यक्ष वेद रतन ने आभार व्यक्त किया।


प्रो. श्याम मनोहर पांडेय के सम्मान में इतालवी विद्वानों की संगोष्ठी

३० अक्तूबर २००८ को नेपल्स विश्वविद्यालय के सभागार में भारतीय मूल के विश्वप्रसिद्ध, मध्ययुगीन सूफ़ी साहित्य के अध्येता एवं विशेषज्ञ डॉ. श्याम मनोहर पांडेय के अवकाश प्राप्त करने के अवसर पर उनको विदाई देने के लिए, उनके सम्मान में एक समारोह आयोजित किया गया। इस समारोह में इटली के विभिन्न विश्वविद्यालयों के हिंदी-संस्कृत, एवं उर्दू के श्रेष्ठ विद्वान निमंत्रित थे। डॉ. पांडेय पिछले तीस वर्षों से नेपुल्स विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर और प्राचार्य रहे।इ स बीच उनके 'लोरिकी और चनैनी' जैसे लोक महाकाव्य, पाँच जिल्द हिंदी और अंग्रेज़ी में प्रकाशित हुए। अभी हाल ही में उनकी एक अन्य कृति 'चंदायन के रचयिता मौलाना दाउद' प्रकाशित हुई है। कार्यक्रम दिन को ९.३० बजे आरंभ हुआ और सायंकाल ७ बजे प्रो, रोसा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ समाप्त हुआ।

कार्यक्रम के आरंभ में विश्वविद्यालय की उपकुलपति प्रो. डॉ. श्रीमती लीडा बिगानोनी ने डॉ. श्याम मनोहर पांडेय, तथा अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा, 'नेपुल्स ओरियंटल विश्वविद्यालय डॉ. पांडेय का सदा ऋणी रहेगा।' उन्होंने डॉ. पांडेय द्वारा लिखी गई लोरिक-चंदा संबंधी महाकाव्यों की चर्चा करते हुए, उनके द्वारा संपादित हिंदी- इटालियन शब्द कोश का विशेष उल्लेख किया। डीन ऑफ़ द फैकलिटी डॉ. श्रीमती रोजैली ने कहा, 'डॉ. पांडेय विद्वान होने के साथ-साथ हमारे विश्वविद्यालय के एक श्रेष्ठ शिक्षक और अभिन्न मित्र भी रहे हैं उनकी कमी हमें सदा महसूस होती रहेगी।' एशियन अध्ययन विभाग के निदेशक प्रो. स्फेर्रा, ने डॉ. पांडेय के सम्मान में आयोजित इस कार्यक्रम की प्रसंशा करते हुए कहा, 'इतने बड़े विद्वान को ऐसी ही उत्कृष्ट बिदाई मिलनी चाहिए।'

दिन के ९.३० बजे आरंभ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षा प्रो, श्रीमती ओरोफीनो- (तिब्बतानों की प्राध्यापिका), डॉ. पांडेय की भूतपूर्व छात्रा ने उनके शिक्षण प्रणाली की प्रशंसा करते हुए कहा कि वह डॉ. पांडेय को वर्षों से जानती है और वह उनकी विद्वत्ता से सदा ही प्रभावित रहीं। डॉ. श्रीमती कोंसोलोरो एवं डॉ. श्रीमती कराकी- तोरीनो विश्वविद्यालय, तोरीन (टूरिन), ने क्रमशः 'उत्तरी इटली में शहरी जीवन चरित्र' एवं 'रामकथा- उपन्यासकार प्रेमचंद के परिप्रेक्ष्य में' पर आलेख पढ़ते हुए कहा, 'डॉ पांडेय जैसे विद्वान आदर के पात्र हैं। साथ ही मिलान से आई डॉ, श्रीमती दोलचीनी, प्राचार्या हिंदी विभाग, मिलान विश्वविद्यालय ने, 'प्रेम सागर और लल्लू लाल' पर पर्चा पढ़ते हुए कहा, 'वे ३० वर्षों बाद डॉ. पांडेय से मिल रही हैं, और उनकी हार्दिक इच्छा है कि डॉ. पांडेय भविष्य में 'फेलो मेम्बर अकादेमिया आन्द्राज़ियाना' स्वीकार करे तो वह गौरवान्वित महसूस करेंगी।

नेपल्स विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के इतिहास के प्राचार्य प्रो. आमेदेओ माईयेलो ने 'उर्दू इन द्रविणियन इंडिया' पर व्याख्यान देते हुए अपनी और डॉ. पांडेय के मित्रता की चर्चा करते हुए कहा कि नेपल्स विश्वविद्यालय में उन्हें डॉ. पांडेय के साथ कार्य करने का विशेष अवसर मिला भविष्य में वे उनकी अनुपस्थिति शिद्दत से महसूस करेंगे। दूसरे सत्र में रोम विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर डॉ. मिलानेसी, ने डॉ. पांडेय के सम्मान में एक कविता पढ़ते हुए कहा इटली के सभी विद्वान उन्हें मध्यकालीन साहित्य विषय पर अपना गुरु मानते है। प्रोफ़ेसर डॉ. मिलानेसी ने 'हिंदी के सूफी साहित्य पर एक निबंध पढ़ा।' डॉ. श्रीमती दानियोला ब्रेदी, उर्दू विभाग की अध्यक्षा- रोम विश्वविद्यालय, डॉ. स्टेफनो पियानो- पूर्व अध्यक्ष संस्कृत-इंडियालोजी विभाग, तोरीनो विश्व विद्यालय- तोरीनो, आदि ने विभिन्न विषयों पर विद्वत्तापूर्ण आलेख पढ़े।

इस अवसर पर विश्वविद्यालय में आए सभी विद्वानों ने एक स्वर में कहा, आज के समय में डॉ. पांडेय जैसे प्रतिबद्ध विद्वान बहुत कम हैं। डॉ. पांडे के कारण इतनी बड़ी संख्या में इटली के सम्मानित विद्वान एक मंच पर मिल कर इंडियोलोजी पर विचारों का आदान-प्रदान कर सके। कुल मिलाकर यह आयोजन बहुत सफल रहा।

डॉ. पांडेय के सम्मान में दिए गए इस बिदाई समारोह में भारतीय परंपरा के अनुसार शाकाहारी भोजन का प्रबंध था। आयोजन डॉ. श्याम मनोहर पांडेय की छात्राओं, स्टाफेनिया केवालियेरे, दानियेला दे सीमोना, फियोरेनूसो यूलियानो ने भव्य स्तर पर आयोजित किया था। नेपल्स विश्वविद्यालय में इस प्रकार का बिदाई समारोह संभवतः पहली बार आयोजित हुआ जिसमें इतनी अधिक संख्या में इटालियन मूल के विशेषज्ञ एवं विद्वान एक मंच पर एकत्रित हुए।

उषा राजे सक्सेना

२९ दिसंबर २००८

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