समकालीन कहानियों में
इस माह
प्रस्तुत है- भारत से शुभदा मिश्र
की
कहानी
एक दीप धरम का
दीवाली
की साँझ। अपने ही शहर की छटा देखते विमुग्ध होते जा रहे थे हम।
देवताओं के राजा इंद्र की नगरी क्या इससे भी ज्यादा ऐश्वर्यमयी
होती होगी!
जयस्तंभ रोड। विस्तृत मार्ग के दोनों ओर बिजली के रंग बिरंगे
लट्टुओं से जगमगाती विशाल अट्टालिकाएँ, बालकोनियों, छतों,
अटारियों में त्वरितगति से आती जाती सोलहों शृंगार से सजी
सौभाग्यवती रमणियाँ, स्वस्थ, संपन्न, सुवेशित पुरुष।
अट्टालिकाओं के सामने की खुली जगह पर गृहलक्ष्मियों द्वारा
सजाई गई विमुग्धकारी रंगोलियाँ।
अपनी अट्टालिकाओं के सुसज्जित द्वारों से दीपों से भरी जगमगाती
थाल लिये निकलती वस्त्राभूषणों की आभा से दमकती लक्ष्मी
स्वरूपा कुलवधुएँ। उनसे दीप ले लेकर घरों के सामने बने सुदीर्घ
चबूतरे पर दीपों की कतार सजाती देवबालाओं सी शुभांगी कन्याएँ।...आगे-
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