साहित्य और
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में
इस माह
प्रस्तुत है-
भारत से
प्रभा प्रसाद की
कहानी
एक टेलीविजन की मौत
परमात्मा की असीम कृपा से आज मैं साढ़े तीन मंजिल की कोठी का
मालिक हूँ। कभी एक साधारण से कर्मचारी की हैसियत से दुबई गया
था। उद्योगपति और करोड़पति बनकर लौटा। कई मिलें हैं मेरी, घर
में सुंदर सुलक्षणा बीवी है, होनहार बच्चे हैं, नौकर-चाकर हैं।
द्वार पर दो-दो कारें खड़ी हैं। पर मेरे लिए सबसे बड़ी नियामत
है घर में टी.वी., इम्पोर्टेड। टीवी मैं कम ही देखता हूँ पर जब
भी बैठता हूँ बचपन की एक घटना टीवी स्क्रीन पर चल रहे
प्रोग्राम के साथ-साथ मेरे दिमाग में चलती रहती है।
दिसंबर का महीना। इतवार की शाम। तिथि याद नहीं। प्रवेश द्वार
से होकर बाईस सीढियों का जीना चढ़ते हुए मैं बरसाती तक पहुँच
गया। बंद दरवाजे पर दस्तक देते हुए मैंने धीरे से पुकार-
'आंटी... दो पल की प्रतीक्षा और फिर जोर की दस्तक। अंदर कोई
प्रतिक्रिया होती जान न पड़ी तो मैं बेचैन हो उठा। दिल की
धड़कन बढ़ गई जिसकी थाप मैं स्वयं सुन सकता था। मन उथल-पुथल सा
होने लगा। 'आंटीजी... मैंने बड़ी आकुलता से पुकारा पर
...आगे-
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अंजु मेहता की लघुकथा
गुलदस्ता
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कला और कलाकार
के अंतर्गत
अवनीन्द्रनाथ ठाकुर और उनकी कलाकृतियों से परिचय
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अंकिता
प्रधान का संस्मरण
तुम जीते रहोगे हमारे साथ...
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पुनर्पाठ में सरोज मित्तल का
आलेख
देश विदेश में
क्रिसमस
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