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साहित्य और
संस्कृति में- |
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समकालीन कहानियों में
इस माह
प्रस्तुत है- पूर्णिमा वर्मन की कहानी
मुखौटे
वह
दिसंबर की एक सुहानी शाम थी जब छुईमुई कसबा के अल्फ्रादो
रेस्त्रा के सामने वाले बरामदे के एक कोने में बैठी थी। यहाँ
से ठीक सामने शारजाह का आई ऑफ एमीरेट्स व्हील है और उसके
बिलकुल सामने म्यूजिकल फाउंटेन। अल्फ्रादो के इस कोने पर एक
बड़े कप वाले कैपीचीनो के पैसे चुकाकर, आप तीन घंटे के लिये
उनके इंटरनेट का पासवर्ड लेकर, अपने लैपटॉप पर काम करते हुए,
आराम से बैठे रह सकते हैं।
छुईमुई भी यही करती है। मोहक खुली हवा, तरह तरह की आकर्षक
बत्तियों से जगमगाता, संगीत से भरपूर यह कसबा, दोनो तटों के
बीच बहती कनाल, कनाल पर नौकाविहार करते लोग, पानी में झाँक कर
देखो तो जेली फिश और कभी कभी तो उनका पूरा झुंड... हर तरफ
खेलते हुए बच्चे... सप्ताह में एक या दो बार वह मराया आर्ट
सेंटर, और मसराह थियेटर के भी चक्कर लगा लेती है। कभी कदा उसके
पसंद के कार्यक्रम हुए तो कुछ समय वहाँ गुजारती है, अन्यथा
बस बरामदे का यही कोना... अल्फ्रादो के सामने। कसबा
शारजाह का एक मनोरंजन स्थल है।
आगे-
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अंतरा करववड़े की
लघुकथा-
पानी
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डॉ. भावना
तिवारी का साहित्यिक निबंध
नवगीतों में माघ
के महीने की उपस्थिति
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राम पुकार शर्मा
का ललित निबंध
पूस जाड़ थर थर तन काँपै
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रामकिशन नैन का आलेख-
कहाँ गए वो
चरखी-कोल्हू, कहाँ गई वो मधुर सुवास
***1
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