समकालीन कहानियों में इस माह
प्रस्तुत है-
भारत से
भारत से कंदर्प की कहानी-
वापस आओ रघुवीर
माँ आज बहुत
रोई थी। माँ को रोते हुए किसी ने नही देखा लेकिन मुझे पता था
कि माँ आज बहुत रोई थी। रोने के बाद माँ के दूध से भी उजले
चेहरे पर जैसे सिंदूर मल जाता है। नाक और गाल सामान्य से अधिक
लाल हो जाते है। पहले पापा अक्सर माँ को छेड़ते हुए कह देते थे,
"अरे …क्या हुआ ...चेहरे की रंगत बढ़ गयी है!... रोई थी क्या
सुखु?" लेकिन अब यह वाक्य सुनाई नही देता। बल्कि पिछले दो सालो
से सुनाई नही दिया कि... रोइ थी क्या सुखु? दो साल बीत गए। दो
साल पहले उस रात माँ ने अचानक झिंझोडकर हम दोनो भाइयो को उठा
दिया था, मैं और रघु। "सुन….लगता है …तेरे पापा को अटैक आया
है... हॉस्पिटल जा रही हूँ… ध्यान रखना।” माँ बोलते-बोलते ही
घर से निकल गयी थी। पड़ोस के पांडे अंकल की कार की पिछली सीट पर
टिका हुआ पापा का सर धीरे धीरे हमारी आँखों के सामने से गुजर
गया था। वह रात मैने और रघु ने जाग कर ही काटी थी। उस रात घर
अजीब सा डरावना लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे माँ की आँखों
में उभरा हुआ डर पूरे घर की खिड़कियों और दरवाजे पर फैल सा गया
है। माँ डरी हुई थी। वह डरी हुई थी अपने घोंसले के आस पास
मँडराते हुए...
आगे-
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प्रेरक प्रसंग
उपकार का बदला
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परिचय दास का ललित निबंध
दीपावली
ज्योति के बिंबों की लड़ी है
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राम के वंशज जो
आज भी जीवित हैं
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पंच-महोत्सव और
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