कलम गही नहिं हाथ
दुबई का नया मंदिर
दुबई
में नये मंदिर का उद्घाटन इस माह एक सुखद घटना रही। दशहरे के दिन चार
अक्टूबर को यूएई के सहिष्णुता मंत्री हिज हाइनेस शेख नाहयान बिन मुबारक अल
नाहयान ने इस मंदिर का उद्घाटन किया। इस आधिकारिक उद्घाटन समारोह में
संयुक्त अरब अमीरात और भारत सरकारों के वरिष्ठ अधिकारी, राजनयिक मिशन और
विभिन्न समुदायों के नेता शामिल हुए। अक्टूबर में अपने भव्य आधिकारिक
उद्घाटन से पहले, १ सितंबर, २०२२ को इस मंदिर का औपचारिक उद्घाटन होते ही
मंदिर सभी धर्मों के लोगों के दर्शन के लिये खुल गया था। इस उद्घाटन के बाद
यूएई के हजारों निवासी उसकी पहली झलक पाने के लिए कतार में लग गए। यह कतार
ऑनलाइन बुकिंग की थी, दर्शन के लिये प्रबंधन कमेटी ने हिंदू मंदिर दुबई की
वेबसाइट के माध्यम से क्यूआर-कोड आधारित अपॉइंटमेंट बुकिंग सिस्टम को
सक्रिय किया था। इसके द्वारा भीड़ प्रबंधन और सामाजिक दूरी सुनिश्चित करने
और मंदिर के भीतर भीड़ को नियंत्रित करने की ऐसी व्यवस्था की गयी थी। जिससे
अलग अलग घंटों में केवल सीमित संख्या में ही लोग मंदिर में आएँ। ऐसा इसलिये
भी था क्योंकि मंदिर के अनेक भागों में काम अभी काम चल रहा था।
१६ देवताओं की मूर्तियों, अन्य आंतरिक कार्यों और धार्मिक अनुष्ठानों को
देखने के लिए उपासकों और अन्य आगंतुकों ने उत्साह से इस व्यवस्था का स्वागत
किया। विशेष रूप से सप्ताहांत में इसे देखने वालों की खूब भीड़ रही। उस समय
मंदिर में जो एकमात्र गतिविधि जारी थी, वह थी १४ पंडितों के एक समूह द्वारा
वैदिक श्लोकों का पाठ, जिन्हें विशेष रूप से भारत से आमंत्रित किया गया था।
यह पाठ हर दिन सुबह ७.३० बजे से ११ बजे तक और फिर दोपहर ३.३० बजे से रात
८.३० बजे तक होता था। आगंतुकों को मंत्रों में भाग लेने की अनुमति थी। रोचक
बात यह थी कि इस कक्ष में पाठ करने वाले पंडितों के लिये एक मंच और
दर्शनार्थियों के लिये चर्च की शैली में कुर्सियों पर बैठने की व्यवस्था
थी। लोगों में इतना जोश और उत्साह था कि जल्दी ही यूट्यूब पर दुबई के हिंदू
मंदिर के ढेरों वीडियो दर्शनार्थियों ने अपलोड करने शुरू कर दिये।
मंदिर खुलने का समय सुबह ६.३० बजे से रात ८ बजे तक निश्चित किया गया था जो
आज भी जारी है। अक्टूबर के प्रारंभ में ही माह के अंत तक के अधिकांश
सप्ताहांतों के लिए अपॉइंटमेंट बुक हो चुके थे। इसे देखते हुए आगंतुकों से
मंदिर तक पहुँचने के लिए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने का आग्रह किया गया
जिससे पार्किंग से अधिक कारें न आ जाएँ। ५ अक्टूबर से, वेबसाइट के माध्यम
से बुकिंग करने वाले लोगों के लिये प्रति घंटा संख्या का प्रतिबंध हटा दिया
गया और अब आम जनता मंदिर के खुलने के समय में किसी भी समय दर्शन करने के
लिए स्वतंत्र है।
जबल अली के उपासना गांव में स्थित ७०,००० वर्ग फुट क्षेत्र में फैले इस नए
हिंदू मंदिर को बहुत ही सुंदरता और भव्यता के साथ निर्मित किया गया है।
भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार मंदिर का प्रवेशद्वार पूर्व दिशा में है।
मंदिर के ९ शिखर हैं जो सुनहरे रंग के सोने की तरह चमकते दिखाई देते हैं।
छत, खंभों और दीवारों पर की गयी ज्यामितीय नक्काशी दर्शनीय है जिसमें
द्वार, हाथी, कमल, पेड़-पौधे और घंटियाँ उत्कीर्ण की गयी हैं। संगमरमर का
सारा काम भारत में राजस्थान से तैयार होकर आया है। लगभग २० राजस्थानी
कारीगरों ने इसे सही प्रकार से जमाने और चमकाने का काम किया है। पूरे मंदिर
की प्रकाश व्यवस्था अत्यंत मोहक है। १६ देवी देवताओं की मूर्तियों
से सजे इसके मुख्य प्रार्थना कक्ष में केंद्रीय गुंबद पर भीतरकी ओर एक बड़ा
त्रिआयामी गुलाबी कमल चित्रित है। एक अन्य भाग में छत से लटकती हुई १०५
सुंदर घंटियाँ हैं। प्रवेश द्वार पर स्थित बरामदे में पीले फूलों से सजा
मंडप मन मोह लेता है। मंदिर में लगी बड़ी बड़ी खिड़कियों के काँच पर
श्रीयंत्र बने हैं और अखरोट की लकड़ी से बने दरवाजों पर नक्काशीदार धातु के
गोल फलक जड़े गए हैं।
देवी देवताओं की मूर्तियाँ बहुत ही आकर्षक और भव्य शृंगार से सुसज्जित हैं।
१००० से १२०० लोगों को समा लेने वाले इस विशाल कक्ष के केन्द्र में
शिव-पार्वती हैं और उनके सामने ही शिवलिंग की स्थापना है।
थोड़ी ही दूर पर नंदी भी हैं। इसके अतिरिक्त
श्रीराम-सीता-लक्ष्मण, राधा-कृष्ण, गणेश, हनुमान, लक्ष्मी-नारायण, दुर्गा
माँ और साईंनाथ, ब्रह्मा आदि देवताओं की
मूर्तियाँ सफेद संगमरमर की हैं जबकि माँ काली, अयप्पन आदि देवी देवताओं को
परंपरा के अनुसार काले पत्थर मे स्थापित किया गया है। इन्हें स्थापित करने
से पहले नौ दिनों तक विशेष प्रार्थना द्वारा इनकी प्राण प्रतिष्ठा की गयी
है। इसके साथ के ही एक कक्ष में पवित्र गुरुग्रंथ साहब की स्थापना है।
नवग्रहों और तुलसी चौरे के लिये अलग-अलग स्थान हैं। हवन करने की व्यवस्था
ऐसे स्थान पर है जो एक ओर से पूरा खुला है ताकि धुआँ बाहर चला जाय। मंदिर
में पार्किंग की सुंदर व्यवस्था है और प्रसाद बनाने के लिये एक विशालकाय
रसोईघर भी है। मंदिर को दो चरणों में खोला जाना है। पहले चरण में केवल पूजा
स्थल खुला है। दूसरे चरण सामुदायिक केन्द्र तथा अन्य भाग जनवरी में
संक्रांति से खोले जाएँगे।
मंदिर
में एक विशेष सामुदायिक केंद्र है, जहाँ प्रार्थनाएँ, शादी, नामकरण जैसे
हिंदू कार्यक्रम हो सकेंगे। यह सामुदायिक केन्द्र हर प्रकार के आधुनिक
संसाधनों से लैस है जैसे ध्वनि और प्रकाश व्यवस्था। यहाँ ४००० वर्ग फुट का
एक बैंक्वेट हॉल, एक बहुउद्देशीय कक्ष और एक ज्ञान कक्ष है जिसमें कई
एलसीडी स्क्रीन लगाने की व्यवस्था है। ज्ञानकक्ष का विकास एक सर्वधर्म
पुस्तकालय जैसा प्रतीत होता है जहाँ हर प्रकार की अवधारणा वाले लोग
आध्यात्मिक उन्नति और आनंद के विषय जैसे योग और ध्यान आदि के विषय में
अभ्यास और चर्चा कर सकेंगे। मंदिर के ये भाग ऐसे हैं जहाँ जूते उतारे बिना
जाया जा सकता है। यानि मुख्य मंदिर में प्रवेश किये बिना। भारतीय और अरबी
वास्तुकला के मिले-जुले स्वरूप वाले, तीन वर्षों में निर्मित इस श्वेत
संगमरमर में ढले, भव्य हिंदू मंदिर को सहिष्णुता, शांति और सद्भाव के एक
मजबूत संदेश के तौर पर देखा जा रहा है।
पूर्णिमा
वर्मन
१ अक्टूबर २०२२
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