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विज्ञान वार्ता


पटाखे प्रदूषण और सावधानी
- संकलित


दिवाली का आनंद जरूर लें, लेकिन सावधानी से। ऐसा न हो कि आपकी गलती से परिवारवाले दिवाली मनाने से वंचित रह जाएँ और औपको भी कोई हानि हो। ध्यान रखें कि पटाखे से निकलनेवाली गैस सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रस, ऑक्साइड कार्बन मोनो ऑक्साइड और हेवी मेटल्स सल्फर, लेड, क्रोमियम, कोबाल्ट, मरकरी मैग्निशियम हम सभी के लिए खतरनाक है। यह स्वस्थ्य व्यक्ति को तुरंत बीमार कर सकता है, ऐसे में बीमार व्यक्तियों को ज्याद ध्यान देने की जरूरत है।

कुछ वर्षों से सामान्य पटाखों पर प्रतिबंध औैर ग्रीन पटाखों को प्रोत्साहन देकर पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रित करने की उम्मीद जताई जा रही है मगर ग्रीन पटाखा भी पूरी तरह ईको फ्रैंडली नहीं है। ग्रीन पटाखा जलाने पर धुआँ औैर हानिकारक गैसें भी निकलती हैं। हालाँकि ये सामान्य पटाखों की तुलना में कम प्रदूषण करते हैं। आम लोगों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं। ग्रीन पटाखा क्या होता है, कैसे बनाया जाता हैं, कितने प्रकार के होते हैं, सामान्य पटाखों की तुलना में इनकी दरें कितनी हैं आदि।

ग्रीन पटाखे राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नेशनल एन्वायरमेंट इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट जिसे संक्षेप में नीरी भी कहते हैं) की देन है। ये पटाखे दिखने में पारपंरिक पटाखों जैसे ही होते हैं- फुलझड़ी, अनार, आसमान में छोड़ी जाने वाली आतिशबाजी, राकेट आदि सब ग्रीन पटाखों में भी मिल जाते हैं। इन्हें भी अन्‍य पटाखों की तरह माचिस से ही जलाया जाता है। सामान्य पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखों में पचास प्रतिशत तक हानिकारक गैसें कम निकलती हैं, इसलिये इनके जलने से बहुत कम प्रदूषण होता है। कुछ ग्रीन पटाखों के जलने के बाद पानी बनता है, औैर हानिकारक गैसें उसमें घुल जाती हैं। ग्रीन पटाखों को बनाने में किसी प्रकार का एल्‍यूमिनियम, बेरियम, पोटेशियम-नाइट्रेट और कार्बन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। अगर किया भी जाता है तो इसकी मात्रा बहुत कम होती है। सामान्य पटाखों के जलने पर नाइट्रोजन औैर सल्फरडाई आक्साइड गैसें निकलती हैं, जबकि ग्रीन पटाखे शोरा औैर कोयला मिलाकर बनाए जाते हैं, इसमें जिग्नोलाइट रसायन भी मिलाया जाता है। ग्रीन पटाखों की शेल्फ-लाइफ कम होती है, इसे एक साल से पंद्रह माह तक सुरक्षित रखा जा सकता है, जबकि दूसरे पटाखों को करीब तीन साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

चार तरह के हैं ग्रीन पटाखे

१. सुगंधित पटाखे- इन पटाखों को जलाने से हानिकारक गैसें बहुत कम पैदा होती हैं औैर जलाने के साथ ही अच्छी खुशबू होती है।

२. सफल पटाखे- सामान्य पटाखों की तुलना में ५० से ६० प्रतिशत कम एल्यूमिनियम का उपयोग होता है। इसे सेफ मिनिमल एल्यूमीनियम यानि सफल के नाम से जाना जाता है।

३. स्टार क्रैकर : स्टार क्रैकर को सेफ थर्माइट क्रैकर के नाम से भी जाना जाता है। इसमें आक्सीडाइजिंग एजेंट का उपयोग होता है, जिससे जलने के बाद सल्फर औैर नाइट्रोजन कम मात्रा में पैदा होते हैं।

४. सेफ वाटर रिलीजर : यह पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करते हैं। जिसमें सल्फर औैर नाइट्रोजन गैसें घुल जाती हैं। नीरी ने इसका नाम सेफ वाटर रिलीजर दिया है। पानी प्रदूषण कम करने का सबसे अच्छा तरीका है।

पटाखा इको फ्रेंडली है या नहीं, यह जानने के लिये इस बात पर ध्यान दें कि ग्रीन पटाखों पर ग्रीन मार्का आता है, इस मार्के को ध्यान से चेक करना चाहिये। सभी श्रेणी के ग्रीन पटाखे, केमिकल युक्त पटाखों से थोड़े महँगे होंगे। उदाहरण के लिये यदि केमिकल युक्त पटाखे २५० रूपए तक के हों तो ग्रीन पटाखे ४०० रूपए तक के पड़ सकते हैं।

सावधानी-

पटाखों का सीधा असर आँख, कान, ब्लड प्रेशर, दमा, डायबटीज और हृदय रोग के मरीजों पर होता है। साथ ही गर्भवती महिलाओं को भी पटाखों से दूरी बनाकर रखनी चाहिये। पटाखों की चिनगारी से आँखों और आवाज से कानों के पर्दे को क्षति पहुँच सकती है। इसलिये आँखों को चश्मे से ढँकें और कानों में इयर प्लग लगाएँ। दमे के मरीजों को पटाखे के धुएँ से एलर्जी हो सकती है और इसके दमे का दौरा पड़ सकता है। पटाखों की तेज आवाज से ब्लड प्रेशर बढ़ने की घटनाएँ देखी गयी हैं। हृदय रोग के मरीजों को भी पटाखों की तेज आवाज कष्टदायी हो सकती है। मधुमेह का पटाखों से कोई सीधा सम्बंध तो नहीं होता पर अगर साथ में हाई ब्लड प्रेशर या हृदय रोग हो तो पटाखों का आनंद बहुत दूर से लेना चाहिये। हाँ दिवाली की मिठाइयों को खाते समय मधुमेह के रोगियों ध्यान रखने की आवश्यकता है।

जो महिलाएँ गर्भवती हैं उन्हें ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है। ऐसी महिलाएँ दिवाली में सतर्क रहें। गर्भवती महिलाओं के लिए पटाखों की आवाज, उससे निकलने वाला धुआँ और रासायनिक पदार्थ अत्यंत हानिकारक हैं। ये सभी भ्रूण को नुकसान पहुँचाते हैं। पटाखों की तेज आवाज से माँ के दिल की धड़कन बढ़ेगी, जिसका असर बच्चे पर होगा। हानिकारक गैस से शरीर में ऑक्सीजन की कमी होगी। इससे माँ की साँस फूलेगी जिसका असर बच्चे पर भी होगा।

दिवाली में घर में प्राथमिक चिकित्सा के लिये आवश्यक सामान जरूर तैयार रखें। इसके लिये साफ रुई, एंटी एलर्जिक, जले पर लगाने वाला मरहम तथा घर के बीमार लोगों की जरूरी दवाएँ होनी चाहिये। अगर कोई पटाखे से जल जाता है तो लगातार पंद्रह मिनट तक साफ पानी से जलने वाले स्थान को धोते रहें। उसके बाद क्रीम लगाएँ। दूसरे दिन डॉक्टर के पास अवश्य जाएँ। इस दीवाली अपना ध्यान रखें और स्वस्थ रहें।

१ अक्टूबर २०२२

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