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१. २. २०२२

इस माह-

अनुभूति में- गीतों में अनामिका सिंह, अंजुमन में पंकज परिमल, छंदमुक्त में पद्मा मिश्रा और दोहों में कल्पना मनोरमा की रचनाएँ।

कलम गही नहिं हाथ-

रईसी को संसार में बड़ी प्रतिष्ठा प्राप्त है। इसलिये कुछ लोग रईस बनने की धुन में लगे रहते हैं और बाकी रईसी को बढाने की धुन में ...आगे पढ़ें

घर-परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि अग्रवाल सब्जियों के लिये करी-विधियों की शृंखला में प्रस्तुत कर रही हैं- नारियल दूध वाले अनन्नास

बागबानी में-बारह पौधे जो साल-भर फूलते हैं इस शृंखला के अंतर्गत इस माह प्रस्तुत है- देसी गुलाब का सुगंध संसार।

स्वाद और स्वास्थ्य में- स्वादिष्ट किंतु स्वास्थ्य के लिये हानिकारक भोजनों की शृंखला में इस माह प्रस्तुत है- सोडा वाले पेय पदार्थों के विषय में।

जानकारी और मनोरंजन में

गौरवशाली भारतीय- क्या आप जानते हैं कि फरवरी  के महीने में कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से 

वे पुराने धारावाहिक- जिन्हें लोग आज तक नहीं भूले और अभी भी बार-बार याद करते हैं इस शृंखला में जानें बुनियाद के विषय में।

वर्ग पहेली-३४६
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

हास परिहास में
पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य और संस्कृति-

समकालीन कहानियों में इस सप्ताह प्रस्तुत है
अंतरा करवड़े की कहानी-
गुलाबी सर्दियाँ

कॉफी के कप से निकलती भाप रोहिणी के अन्दर का बहुत कुछ पिघला रही थी। वह बार बार कहीं पर बह जाने को होती, फिर अचानक ख्याल आता, कि कैफे में बैठी है, देखी जा सकती है। यों बहते बहते रुकना जब सहने की सीमा से बाहर हो गया, तो एक घूँट में कॉफी खत्म की और निकल गई वहाँ से। पराये शहर में, हाँ पराया ही तो हो गया है ये एक बार फिर से। इन्हीं खत्म होती सर्दियों में, अपने पसंदीदा फरवरी में, दो साल पहले यहाँ कदम रखा था। कस्बे और शहर के बीच की परिधि में आता रोहिणी का गृहनगर, इस महानगर के सामने थोड़ा बहुत अनाड़ी ही कहा जा सकता था। पराये शहर में आई, तब उम्मीदें थीं, नयी नौकरी की उमंग थी, पहली बार स्वावलंबन का मीठा स्वाद था, सीनियर्स से सुनी हुई एक-एक सीढ़ी चढ़ने की कहानियाँ थी और उन सभी खांचों में स्वयं को बैठाने के सपने भी। घर से निकलते समय जब माँ अपने आँसू रोक नहीं पा रही थी, तब चाची ने टोक ही तो दिया था, "सुलभा, कुछ आँसू इसकी बिदाई के वक्त के लिये भी तो रख दो! कहीं हमेशा के लिये तो नहीं जा रही है बच्ची!" आगे...
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रत्नेश मिश्र का व्यंग्य
वसंत और वेलेंटाइन डे

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पूजा अनिल का
ललित निबंध- फूल बादाम के
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पूर्णिमा वर्मन का आलेख
कहानी विश्व रेडियो दिवस की

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ब्रजेश कुमार शुक्ल की कलम से-
प्रेम दिवस के विषय में जानकारी

पिछले अंक से-

राजा चौरसिया का व्यंग्य
नववर्ष की हार्दिक शुभकामना

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पूर्णिमा वर्मन का आलेख
संक्रांति और पतंगों की उड़ान
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पंडित आशुतोष की पुराणकथा
श्रीराम की पतंग जो स्वर्ग तक गयी
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पुनर्पाठ में डॉ.गणेशकुमार पाठक
मकर संक्रांति एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण
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समकालीन कहानियों में इस सप्ताह प्रस्तुत है
स्वाती तिवारी की कहानी- मृगतृष्णा

आसमान छूने की मेरी अभिलाषा ने मेरे पैरों के नीचे से जमीन भी खींच ली, पर तब ... मैं जमीन को देखती ही कहाँ थी। मैं तो ऊपर टँगे आसमान को ताकते हुए अपना लक्ष्य पाना चाहती थी। तब अगर कुछ दिखाई देता था तो वह था केवल दूर-दूर तक फैला नीला आसमान, जहाँ उड़ा तो जा सकता है, पर उसका स्पर्श नहीं किया जा सकता है। ऊँचाइयों का कब स्पर्श हुआ है जब हाथ उठाओं वे और ऊँची उठ जाती हैं--मरीचिका की तरह। एक भ्रम की तरह आसमान जो नीला दिखता है पर कैसा है, कौन जानता है? जमीन कठोर हो, चाहे ऊबड़-खाबड़, पर उसका स्पर्श हमें धरातल देता है, पैरों को खड़े रहने का आधार। पर यह अहसास तब कहाँ था? मैं तो जमीन के इस ठोस स्पर्श को पहचान ही नहीं पाई। अंदर-ही-अंदर आज यह महसूस होता है कि जमीन से सदा जुड़े रहना ही आदमी को जीवन के स्पंदन का सुकून दे सकता है। आज दस वर्षों बाद उसी शहर में लौटना पड़ रहा है, याद है मुझे वह भी नए साल की शुरुवात का दिन था।  आगे...

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह के पहले सप्ताह मे प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : रतन मूलचंदानी

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