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पर्व परिचय



कहानी विश्व रेडियो दिवस की
- पूर्णिमा वर्मन

 


विश्व भर में प्रतिवर्ष १३ फरवरी को रेडियो दिवस के रूप में मनाया जाता है। संचार के अनेक साधन आ जाने के बाद भी रेडियो का महत्व बना हुआ है। रेडियो ही एक ऐसा जनसंचार का माध्यम है, जिसके द्वारा असंख्य लोगों और दुर्गम स्थानों तक संदेशों को पहुँचाया जाता रहा है। रेडियो की दूसरी विशेषता यह है कि यह मनोरंजन का एक मात्र ऐसा साधन है जो दूसरे कामों के साथ-साथ चलता रहता है। फिर चाहे वह ड्राइविंग हो, खेती हो या कोई अन्य कार्य। रेडियो हमें विश्व के हर कोने से जोड़ता भी है।

कहना न होगा कि टीवी फोन और अन्य उपकरणों के बाद भी बहुत से लोग आजतक रेडियो से गहराई से जुड़े हैं। भारत के लिये तो रेडियो की भूमिका और भी महत्वपूर्ण है। इसके द्वारा कम समय में अधिक से अधिक लोगों तक सूचनाएँ पहुँचाई जाती हैं। विशेषरूप से दूरदराज के क्षेत्रों, गाँवों, कस्बों और पहाड़ी क्षेत्रों में रेडियों ने अपना काम बखूबी निभाया है। २०२१ में विश्व दिवस के अवसर पर ट्वीट करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने भी लिखा था, "विश्व रेडियो दिवस की शुभकामनाएँ! सभी रेडियो श्रोताओं और उन सभी को, जो रेडियो को नए विषयों और संगीत से गुलजार रखते हैं। यह एक शानदार माध्यम है, जो सामाजिक जुड़ाव को गहरा करता है। मैं व्यक्तिगत रूप से रेडियो का सकारात्मक प्रभाव का अनुभव करता हूँ।"

विश्व रेडियो दिवस का इतिहास

वर्ष २०१० में १३ फरवरी के दिन स्पेन रेडियो अकैडमी ने पहली बार विश्व रेडियो दिवस मनाये जाने के लिये प्रस्ताव रखा था। २०११ में यूनेस्को के सदस्य राज्यों द्वारा इसे घोषित किया गया और २०१२ में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में स्वीकृत किया गया। १३ फरवरी २०१२ को यूनेस्को ने पहली बार विश्व रेडियो दिवस मनाया और उसके बाद प्रति वर्ष इस दिन को विश्व रेडियो दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। १३ फ़रवरी को संयुक्त राष्ट्र रेडियो की वर्षगाँठ भी है। इसी दिन वर्ष १९४६ में इसकी शुरूआत हुई थी। इसलिये १३ फरवरी के दिन को रेडियो के अंतरराष्ट्रीय महत्व की दृष्टि से विशिष्ट माना जाता है।

इस दिन यूनेस्को दुनिया भर के ब्रॉडकास्टरों, संगठनों और समुदायों के साथ मिलकर रेडियो दिवस के अवसर पर कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करता है। इस दिन संचार के माध्यम के तौर पर रेडियो की अहमियत के बारे में चर्चा की जाती है और जागरूकता फैलाई जाती है। इस बात की जानकारी भी दी जाती है कि रेडियो एक ऐसी सेवा है जिसके द्वारा न केवल रेडियो फ्रीक्वेंसी से बात की जा सकती है, बल्कि आपदा के समय जब संचार के अन्य माध्यम ठप हो जाएँ तो प्रभावितों की मदद भी की जा सकती है।

उद्देश्य

विश्व रेडियो दिवस कुछ विशेष उद्देश्यों को ध्यान में रखकर मनाया जाता है। ये उद्देश्य हैं- रेडियो को संपूर्ण विश्व में एक शक्तिशाली संचार माध्यम के रूप में स्वीकृति दिलवाना। रेडियो के माध्यम से विश्व में विविधता, शांति और सहयोग बढ़ाना। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सार्वजनिक बहस और शिक्षा प्रसार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करना, सूचनाओं की स्थापना और जानकारी प्रदान करना, नेटवर्किंग बढ़ाना एवं प्रसारकों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्रदान करना आदि।

विश्व रेडियो दिवस २०२१ के अवसर पर यूनेस्को द्वारा इस कार्यक्रम की १०वीं वर्षगाँठ और रेडियो के ११० वर्ष का उत्सव मनाया गया। इस आयोजन के लिये रेडियो स्टेशनों को संदेश दिये गए और तीन उप-विषयों को ध्यान में रखते हुए रेडियो दिवस मनाने के निर्देश दिये गए। ये तीन उप-विषय हैं उद्भव, नवाचार और संयोजन।

उद्भव- विश्व बदलता है, रेडियो विकसित होता है - रेडियो लचीला और टिकाऊ है।

नवाचार- विश्व बदलता है, रेडियो नई तकनीकों को अपनाता है, गतिशील का माध्यम बना रहता है, जो हर जगह और हर किसी के लिये सुलभ है।

संयोजन- विश्व बदलता है, रेडियो जोड़ता है - प्राकृतिक आपदाओं, सामाजिक-आर्थिक संकटों, महामारी, आदि के दौरान रेडियो हमारे समाज को सेवा प्रदान करता है।

विश्व रेडियो दिवस के विषय

प्रति वर्ष ‘विश्व रेडियो दिवस’ के अवसर पर चर्चा के लिये विषय निश्चित किये जाते हैं। वर्ष २०१२ और २०१३ में कार्यक्रम का कोई विषय नहीं था, पर उसके बाद प्रत्येक वर्ष कोई एक मुख्य विषय तय कर उसी थीम पर विश्व में कार्यक्रम संपन्न किए जाते रहे हैं। पिछले वर्षों में विश्व रेडियो दिवस के अवसर पर निम्नलिखित विषय निश्चित किये गए थे- २०१४ में लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण, २०१५ में युवा और रेडियो, २०१६ में संघर्ष और आपातकाल के समय रेडियो, २०१७ में रेडियो तुम हो, २०१८ में रेडियो और खेल, २०१९ में संवाद सहिष्णुता और शांति, २०२० में रेडियो और विविधता, २०२१ में नया विश्व नया रेडियो और २०२२ में हाँ रेडियो के लिये हाँ विश्वास के लिये।

भारत में रेडियो का इतिहास-

भारत में १९२३ में इंडियन ब्राडकास्टिंग कंपनी नाम से रेडियो का आरंभ हुआ। इसे दो केंद्र बने २३ जुलाई १९२७ को मुबई और २६ अगस्त १९२७ को कोलकाता में। १ मार्च १९३० को यह कंपनी बंद हो गयी। १ अप्रैल १९३० को सरकार ने प्रसारण सुविधाओं को अपने हाथ में ले लिया और १ अप्रैल १९३० को दो साल के लिये प्रायोगिक आधार पर इंडियन स्टेट ब्राडकास्टिंग सर्विसेज नाम से प्रसारण आरंभ किया जिसे मई १९३२ में स्थायी कर दिया गया। ८ जून १९३६ को इसे ऑल इंडिया रेडियो का नाम मिला।

१ अक्टूबर १९३९ को पश्तो में प्रसारण के साथ बाह्य सेवा की शुरुआत हुई। इसका उद्देश्य अफगानिस्तान, फारस और अरब देशों में जर्मनी के रेडियो प्रचार का मुकाबला करना था। १९३९ में पूर्वी भारत के ढाका स्टेशन का उद्घाटन भी हुआ, जो अब बांग्लादेश में है। जब भारत १९४७ में स्वतंत्र हुआ, तो आल इंडिया रेडियो नेटवर्क के पास केवल छह स्टेशन- दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, लखनऊ और तिरुचिरापल्ली थे। आज रेडियो ने अपनी पहुँच बढ़ाई है। जहाँ एक तरफ सरकारी रेडियो स्टेशनों के द्वारा लोगों तक ज्ञान का भंडार पहुँचाया जाता है। तो वहीं प्राइवेट रेडियो स्टेशन भी भारत में मनोरंजन को एक अलग स्तर तक ले जा रहे हैं।

वक्त के साथ रेडियो के स्वरूप भी बदलते गए और आज यह अपने नए स्वरूप ‘पॉडकास्ट’ तक पहुँच चुका है। यों तो मोबाइल फोन में एफएम रेडियो की सुविधा आ गई हैं, लेकिन वो पुराना रेडियो बहुत से घरों में अब तक संभालकर रखा हुआ है। अगर आप भी उस युग से गुजरे हैं तो पुराने रेडियो के जालीदार कवर उसके गोल बटन और लाल सुई पर कुशल नटिनी की तरह हिलोरें लेती यादें आज भी ताजी होंगी।

रोचक तथ्य-

रेडियो के विस्तार में भारतीय वैज्ञानिक डॉ. जगदीश चन्द्र बसु का योगदान भी अहम रहा है। वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडियो और सूक्ष्म तरंगों की प्रकाशिकी पर कार्य किया था।

कनाडाई वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडेन ने २४ दिसम्बर १९०६ की शाम जब अपना वॉयलिन बजाया तथा अटलांटिक महासागर में तैर रहे तमाम जहाजों के रेडियो ऑपरेटरों ने उस संगीत को अपने रेडियो सेट पर सुना, ये विश्व में रेडियो प्रसारण की शुरुआत थी।

पहली बार रेडियो में विज्ञापन की शुरुआत साल १९२३ में हुई। इसके बाद ब्रिटेन में बीबीसी और अमेरिका में सीबीएस और एनबीसी जैसे सरकारी रेडियो स्टेशनों की शुरुआत हुई।

ली द फोरेस्ट ने साल १९१८ में न्यूयॉर्क के हाईब्रिज इलाके में विश्व का पहला रेडियो स्टेशन शुरु किया था।

सुभाष चंद्र बोस ने नवंबर १९४१ में रेडियो पर जर्मनी से भारतवासियों को संबोधित किया था।

भारत में साल १९३६ में सरकारी ‘इम्पेरियल रेडियो ऑफ इंडिया’ की शुरुआत हुई जो आजादी के बाद ऑल इंडिया रेडियो या आकाशवाणी बन गया।

भारत में २१४ सामुदायिक रेडियो प्रसारण केंद्र (कम्युनिटी रेडियो) हैं।

१ फरवरी २०२२

 
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