| 
					  
 
 फूल बादाम के
 - 
					पूजा अनिल
 
 जब 
							भारत से स्पेन आई तो यहाँ उगने वाले फूलों से भी धीरे 
							धीरे परिचय होने लगा। पिछले अट्ठारह साल में मुझे 
							हमेशा से ही बसंत में खिलने वाले बादाम के पुष्प अपनी 
							और बेहद आकर्षित करते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम प्रुनुस 
							डुल्सिस है और आम तौर पर यह बादाम के वृक्ष के नाम से 
							जाना जाता है। यहाँ स्पेन में अलमेंद्रो के नाम से 
							पहचानते हैं इसे।
 स्पेन में बसंत आने से कुछ पहले ही फरवरी में बादाम के 
							खुशबूदार, नरम और नाज़ुक फूल खिलते हैं। इनकी सामूहिक 
							प्राकृतिक छटा चारों ओर अद्भुत नज़ारा बिखेरती है। इनकी 
							नज़ाकत का आलम यह है कि हवा के बहने भर से ही ये सुन्दर 
							पुष्प दल बिखर कर ज़मीन पर गिर जाते हैं, उस पर यदि 
							बारिश का जल भी गिरने लगे तो ये अद्भुत कुसुम दल अल्प 
							आयु में ही वृक्ष से विदा ले लेते हैं । वैसे यह भी 
							प्रकृति की ही लीला है कि प्रकृति इन दिनों जब भिन्न 
							पुष्प दल विकसित कर रही होती है ठीक इन्ही दिनों इंद्र 
							देव भी अपनी मेघ सेना की उपस्थिति से स्पेन के जलाशयों 
							में जल संग्रह का कार्य कर रहे होते हैं।
 
 मद्रिद में कई जगहों पर इनके अर्थात बादाम के अलंकारिक 
							वृक्ष रोपे हुए हैं। शहर के अन्य अनेक हिस्सों में भी 
							बादाम के पेड़ आसानी से दिख जाते हैं। मद्रिद शहर में 
							अलकाला स्ट्रीट के ५२७ नंबर पर स्थित सार्वजानिक 
							उद्यान में लगभग १५०० बादाम के वृक्ष हैं। जब ये एक 
							साथ खिल उठते हैं तो अद्भुत दृश्य उपस्थित हो जाता है। 
							यदि आप भी अनोखी छटा का आनंद लेना चाहते हों तो 
							‘’क़िन्ता दे लोस मोलिनोस’’ नामक उद्यान में पहुँच कर इस 
							नैसर्गिक जामुनी रंग के उत्सव का आनंद अवश्य लें।
 
 धूप में उगने वाले लगभग दस मीटर के इस पेड़ पर चार या 
							पाँच पुष्प समूह में फूल खिलते हैं। पाँच पंखुड़ियों 
							वाला यह करीब एक इंच का द्विलिंगी पुष्प सफ़ेद से हलके 
							गुलाबी रंग का होता है। एक ही पुष्प में पंद्रह से तीस 
							पुंकेसर लगे होने से पंखुड़ियाँ कुछ कुछ छींटदार 
							दृश्यमान होती हैं। पतझड़ के मौसम में ही पर्ण विहीन 
							वृक्ष की कुसुमाकर कल्पना गुलाबी जमुनी रंगों का 
							रोमांच पैदा कर देती है, तो फिर फूल पत्तों से लदे 
							बदाम के रंगीन फूलों का आलम कैसा होगा यह वर्णन करना 
							कठिन है।मौका मिले तो दुनिया के विभिन्न देशों में 
							स्थित इन पुष्पों से परिचय अवश्य करें। यक़ीन मानिये आप 
							जैसे ही इनके क़रीब जायेंगे ऐसा प्रतीत होगा कि ये 
							पुष्प आपसे बातें करने को उत्सुक हैं, मानो इन्हें 
							बरसों से आप ही
  की 
							प्रतीक्षा थी। इनका कोमल स्पर्श ऐसा प्रतीत होता है कि 
							जैसे आप देवलोक की सैर कर रहे हैं । इन दिनों मैं समय 
							मिलते ही मद्रिद में इन कुसुम दलों से बतियाने निकल 
							पड़ती हूँ, अवसर मिले तो आप भी निकल पड़िये लेकिन ध्यान 
							रखिये कि यह प्राकृतिक नज़ारा सिर्फ़ फरवरी से अप्रैल तक 
							ही दृष्टिगोचर होगा। 
 साहित्य और कला में भी इस पुष्प की उपस्थिति बहुतायत 
							से विद्यमान है। यहाँ तक कि इस पुष्प के लिए साहित्यिक 
							प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है। जन मानस से 
							जुड़े इस पेड़ और फूल को लेकर अक्सर लोग उत्साहित रहते 
							हैं। पलेस्टाइन के प्रसिद्ध कवि महमूद दार्विक्स ने 
							अपनी अंतिम पुस्तक का नामकरण बादाम के पुष्प के नाम पर 
							ही किया, उसी किताब से इस पुष्प को समर्पित कविता से 
							कुछ पंक्तियों का स्पैनिश भाषा से मैने हिन्दी में 
							अनुवाद किया है। आप भी आनंद लें-
 बादाम के फूल का
 वर्णन करने के लिए
 वनस्पति शास्त्र का कोई
 प्रामाणिक विश्व कोश नहीं
 कोई शब्दकोष भी नहीं
 भाषाई शब्द अलंकार के जाल में फँसूँगा मैं /
 और अलंकारिक भाषा से ज़ख़्मी होगी चेतना
 और यही ज़ख्म का यश गान करेगी
 ठीक उस मर्द की तरह
 जो अपनी स्त्री को भावुकता का आज्ञापत्र लिखवाता है
 यदि मैं अनुगूँज हूँ तो....
 मेरी बोली में बादाम के पुष्प को कैसा प्रदीप्त होना 
							चाहिए? शायद इस तरह...
 पारदर्शक, जैसे पानी सी हंसी
 टहनियों पर लजीली, ओस की बूँद सा
 सौम्य, रसीले उज्जवल वाक्य की तरह
 नाज़ुक, उस लम्हे की तरह जो
 किसी खयाल हमारी उंगली के पोर से झांकता है
 और निष्प्रयोजन हम लिखते हैं...
 घनीभूत, उस कविता की तरह जो
 शब्दों से नहीं लिखी जाती
 बादाम के पुष्प का वर्णन करने के लिए
 मुझे अचेत भ्रमण पर जाना होगा
 जहाँ शब्द कोष पर प्रबल हो
 वृक्ष से लिपटी हुई भावुकता
 
 प्रसिद्ध चित्रकार विंसेंट वान गो ने भी इस पुष्प को 
							लेकर कुछ पेंटिंग्स बनाई हैं। जिनमें से एक को नीचे 
							देखा जा सकता है।
  - 
							रात के एक बजे इस समय जब मैं यह आलेख लिख रही हूँ, 
							बाहर बहुत तेज़ बारिश हो रही है और वेगवान हवा चल रही 
							है। काँच की खिड़की पर गिरती बूँदों की आवाज़ से प्रतीत 
							हो रहा है कि तेज़ आँधी तूफ़ान मचा हुआ है बाहर। मैं 
							लिखना रोककर उठकर खिड़की से झाँक आई हूँ, इतनी घनघोर 
							बारिश और इतनी तेज हवा है कि कुछ भी दीखता नहीं। इससे 
							मैं यह अंदाज़ा लगा रही हूँ कि बादाम के वृक्ष की जो 
							तस्वीरें मैंने कल उद्यान में लीं थीं, यदि वे आने 
							वाले कल के लिए स्थगित रखती तो निश्चित ही कल यह दृश्य 
							नहीं मिलता। कितना छोटा है जीवन और कितनी बड़ी हैं 
							तमन्नाएँ कि उदासियों के ज़िक्र के बिना मिटती ही नहीं! 
					१ फरवरी २०२२ |