परिक्रमा

प्रेम दिवस
  

पुष्प की सार्थकता सुगन्धित होने में है उसकी उपयोगिता सुगन्ध बिखेरने में है। यद्यपि उसमें रूप रंग आदि अनेक गुण भी होते हैं लेकिन पुष्प में निहित सुगन्ध उसकी आत्मा है। उसी प्रकार मानव का जीवन एक पुष्प के समान है विविध रंगों से परिपूर्ण है।लकिन अगर उसके अन्दर प्रेम की तरलता नही है तो उसका जीवन निर्रथक है।

कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति एवं अनुभूति का साकार रूप में परिणित होना ही प्रेम है। प्रेम की भावनात्मक प्रवृत्ति आदान प्रदान की आकांक्षा से परे निःस्वार्थ रूप से किसी के लिए सब कुछ सर्मपण करने की असीम लालसा होती है।

समूचे विश्व जगत में अन्य विशेष दिवसो की भांति १४ फरवरी को 'वलेनटाइन डे' या प्रेम दिवस, महान सन्त वेलेन्टाइन की मधुर स्मृति में मनाया जाता है। वास्तव में सन्त वेलेन्टाइन ईसाई सन्तों का पद नाम है इस श्रृंखला में दो सन्त बहुत प्रसिद्ध हुए हैं।

इनके समकालीन रोमन सम्राट क्लाडियस द्वितीय के सम्राज्य काल में युवको को शादी करना निषिद्ध था क्योंकि सम्राट का आदेश था कि अविवाहित व्यक्ति ही एक अच्छा सैनिक हो सकता है। किन्तु सन्त वेलेन्टाइन ने इस अनैतिक एवं अमानवीय कृत्य का पुरजोर विरोध किया एव्ां अनेको नवयुगलों को मिलाया। इससे कुपित होकर रोमन सम्राट ने सन्त वेलेन्टाइन को कारागार में बन्दी बना दिया। वहीं इस प्रेम के दूत में जेलर की पुत्री के प्रति प्रेम का बीज अंकुरित हुए । तथा उसको अपना पहला प्रेम सन्देश ' विथ लव फ्राम योर वेलेंटीनो' लिखकर दिया था। १४ फरवरी २७० ईस्वी को घोर यन्त्रणा ने इस प्रेम पुरूष को मौत के चिर निद्रा में सुला दिया।

अंग्रेजी साहित्य के महान कवि ज्योफरी चॉसर ने 'पारलेमेंट ऑफ फाउल्स' में वर्णन किया है कि 'सेन्ट वेलेन्टाइन डे' के दिन पक्षी भी अपने जीवन साथी को चुनने आते है। अनेको सहित्यकारो की कृतियों में तथा शेक्सपियर के कुछ नाटको में 'सेन्ट वेलेन्टाइन डे' को ' लवर्स डे' या 'प्रणय दिवस' के रूप में मनाये जाने का उल्लेख मिलता है।
  समय के साथ प्रेम सन्देशों की भाषा शैली अलंकारिक होने के साथ ही नये नये रूप में प्रेषित की जाने लगी। यों तो आजकल ई मेल एवं चैट विन्डो से ई कार्ड भेजने की प्रथा काफी लोकप्रिय हो गयी है, किन्तु अभी भी सर्वाधिक रूप से लोकप्रिय कागज़ के बने कार्ड ही प्रयोग मे लाये जा रहे हैं। कार्ड के साथ ही अन्य उपहार तथा फूलो के गुलदस्ते भी बहुतायत से प्रचलन मे आ गये हैं।

वेलेन्टाइन डे युवा हृदयों का वह सुनहरा सपना है जिसका उन्हें बेसब्री से इन्तजार रहता है। आज भारत में भी इस प्रेम दूत की स्मृति मे 'वलेन्टाइन डे' की लोकप्रियता बढती जा रही है। देश के सामाजिक वातावरण में यह दिवस काफी घुल मिल गया है।

प्रेम की महत्ता को महापुरूषो कवियों और लेखको ने समय समय पर बहुत ही मार्मिक एवं तार्किक ढंग से उल्लखित किया है जैसे सन्त कबीर दास ने कहा था :" ढाई आखर प्रेम का पढे सो पंडित होय" "प्रेम ही पूजा है" व ' प्रेम ही ईश्वर है' जैसे शब्दों की सम्पन्नता को व्यवहारिकता में प्रदर्शित करके ही प्यार के दरिया को प्रेम जल से सराबोर किया जा सकता है और माया मारीचिका से बहुत दूर प्रेम सन्देशो को जन जन तक पहुचाया जा सकता है।

प्रेम एक स्वप्न समान है । स्वप्न सुषुप्तावस्था में ही देखा जा जाता है। उसी प्रकार प्रेम करने वाला व्यक्ति प्रेम पात्र की योग्यता अयोग्यता पर विचार नही करता । इस अवस्था में देखे गये स्वप्न दुःस्वप्न भी हो सकते हैं। सच्चा प्रेम केवल भोग विलास और आनंद की ही सन्तुष्टि नही करता अपितु उसमें त्याग और बलिदान करने की भी क्षमता होती ह, जिससे प्रेम की पवित्रता और उत्कृष्टता बनायी रखी जा सकती है ।इसके आभाव में प्रेम वासना का रूप धारण कर लेता है।

सच्चे प्र्रेम में वह सुगन्ध है जो मन के सारे दुःख और निराशा को अपनी खुश्बू से सुगन्धित एवं परिमार्जित कर देती है। मर्यादाओ के रंग में डूबा हुआ प्यार न केवल स्वयं को सन्तुष्टि देता है अपितु सम्पूर्ण समाज को भी एक नयी दिशा की ओर अग्रसित करता है। प्रेम दिवस मे छिपी हुयी कोमल भावनाओं को अपने प्रिय जन तक सम्प्रेषित करने का एक महान पर्व है । प्रेम की सुन्दरता को और अधिक सौन्र्दय प्रदान करने, सन्त वेलेन्टाइन की मूल भूत भावनाओं का जन जन तक पहुचाने एवं उस महान संत के स्मृति दिवस पर प्रेम–ज्योति प्रज्वल्लित करने का यह सुअवसर है।

— बृजेश कुमार शुक्
१५ फरवरी २००२