श्रुतकीर्ति अग्रवाल की
लघुकथा-
सूर्यास्त से पहले
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रवि रतलामी का व्यंग्य
चाय चलेगी
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पंकज त्रिवेदी का ललित निबंध-
चाय
पीने का मेरा भी मन है
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पूर्णिमा वर्मन का आलेख
चाय की अजब गज कहानियाँ
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पुनर्पाठ में नवीन नौटियाल की
कलम से
चाय की ऐतिहासिक
यात्रा
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समकालीन कहानियों में भारत से
अनिल माथुर की कहानी
एक प्याली चाय
हमेशा की तरह पत्नी के संग शहर की सबसे पॉश कॉलोनी में वॉक
करते सुधीरजी स्वयं को किसी शहंशाह से कम नहीं समझ रहे थे।
सवेरे और शाम की नियमित सैर उनका बरसों से चला आ रहा नियम था।
तबीयत ठीक हो या न हो, इच्छा हो या न हो, शाम की सैर में तो
साधनाजी को भी उनका साथ देना ही पड़ता था।
“समय रहते इस कॉलोनी में फ्लैट बुक करवाकर हमने कितनी
समझदारी का काम किया न! देखो अब एक भी मकान खाली नहीं बचा है
यहाँ। और सारे के सारे कितने प्रतिष्ठित लोग रहते हैं! मुझे तो
लगता है कि शहर के सारे बड़े अफसर, बिज़नेसमैन यहीं आकर बस गए
हैं। जिस इलाके में लोग किराए पर रहना अफोर्ड नहीं कर सकते,
हमने अपना फ्लैट लिया है।”
आगे...
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