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चाय पीने का
मेरा भी मन है
- पंकज त्रिवेदी
इस
बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि चाय हमारा
राष्ट्रीय पेय है। लोग कश्मीर से कन्याकुमारी तक चाय
के अलग-अलग स्वरूप के लुत्फ उठाते हैं। जैसे चाय हमारे
लहू में घुलमिल गई हो। चाय के बारे में कोई जाति-पाँति
का भेद नहीं है और ना अमीरी-गरीबी का। चाय सर्वस्वीकृत
है। किस्म किस्म की चाय पी जाती है भारत के अलग अलग
हिस्सों। कश्मीर में चाय की असली पत्ती के बदले विशेष
प्रकार की जड़ीबूटियों के कंदमूल को ही उबाला जाता है।
उस में नमक डालकर नींबू का रस निचोड़ा जाता है। ऐसी
चाय को नून चाय कहते हैं। नून चाय के साथ पतली-मीठी
पापड़ जैसी रोटी सुबह के नाश्ते में ली जाती है। जिस
के पीछे वैज्ञानिक कारण बताया जाता है कि पहाडियों की
ऊँचाई के कारण डी-हाईड्रेशन होने का खतरा रहता है। उसी
कारण नमक और नीबू का मिश्रण लिया जाता है। कश्मीर में
जो नमक मिलता है वह गुजरात के सुरेन्द्रनगर जिले के
पाटड़ी और खाराघोड़ा क्षेत्र से प्रथम श्रेणी का होता
है, जो यहाँ के मैदानी भाग में आमतौर से नहीं मिलता।
दार्जिलिंग में चाय के पौधों की पत्ती को जब उबाली
जाती है तो उसकी असली सुगंध हमारे मन को ताजगी से भर
देती है। इसका कारण यह है कि उसमें प्रकृति की अनूठी
सुगंध होती है। दीव में वांझा जाति के लोग प्रतिदिन
शाम के वक्त चाय के साथ दो केणां (छोटे पीले-सुनहरी
छिलके वाले केले) का भोजन लेते हैं। उनकी चाय में दूध
की बजाय पुदीना और नीबू के रस का मिश्रण होता है।
दक्षिण भारत में ऊँचे कद की तांबे की केतली (चायदानी)
के चोंगे में लकड़ी की डाट लगाई जाती है। जब डाट
निकाली जाती है तो उसमें से निकलती भाप की महक से
तन-मन में स्फूर्ति का संचार होता है। तम्बाकू और कॉफी
के मुकाबले चाय में निकोटिन की मात्रा मामूली होती है।
कुछ दिनों पहले हुए सर्वेक्षण के अनुसार चाय पीने से
हार्टअटेक की मात्रा में कमी होती है। मगर ऐसे
सर्वेक्षण दिन-प्रतिदिन बदलते रहते हैं।
चाय की अपनी ही एक शान है। इसे परोसने के लिए महँगे
पारदर्शक काँच के टी-सेट, सिरामिक, स्टील या चाँदी और
जर्मन मेटल के टी-सेट का उपयोग होता है। चाय पीने के
लिये तरह तरह के कुल्हड़ों का भी प्रयोग होता है। ये
प्लास्टिक, थर्मोकॉल या मिट्टी के हो सकते हैं। हमारे
रेल मंत्री श्री लालूप्रसाद यादव ने तो भारतीय रेल को
आदेश दे दिया था कि भारत के सभी रेलवे स्टेशनों पर
कुल्हड़ों में ही चाय परोसी जाए। चाय के लिए गुजराती
में एक तुकबंदी है-
कपटी नर कॉफी पीवे, चतुर पीवे चा
दोढ़डाह्या दूध पीवे, मूरख पाडे ना !
अर्थात, कपटी मनुष्य कॉफी पीता है, चतुर मनुष्य चाय
पीता है,
अति चतुर मनुष्य दूध पीता है और मूर्ख सभी को मना
कर देता है।
अहमदाबाद में एल. डी. इंजिनियरींग कॉलेज और
युनिवर्सिटी के सामने बैठकर कॉलेजियन लड़के-लड़कियों
को कटींग चाय का ऑर्डर देते देखना अपने आप में अलग
अनुभव होता है। वहाँ पढ़ाई की कम और मौज-मस्ती की
बातें ज्यादा होती है। मिरजापुर के पास `लक्की` की चाय
जिसने न पी हो, वह भला अहमदाबाद के बारे में क्या
जाने? मैंने `लक्की` की चाय और मस्काबन खाकर कई दिन
गुजारे थे, वह अब भी स्मरण में है। अहमदाबाद की पतंग
जैसे होटलों में पचास से पचहत्तर रुपये में एक कप चाय
मिलती है। डायबिटीज के मरीज भी चाय की मोहकता को नजर
अन्दाज नहीं कर पाते, इसी कारण तो शुगर-फ्री का
आविष्कार हुआ है न?
आधी चाय में तो लोग मुश्किल कार्य भी करवा लेते है !
सचिवालय हो या सरकारी दफ्तर, चाय के बहाने कर्मचारी को
बाहर ले जाकर आप छोटा-बड़ा सौदा कर सकते हैं। कई बार
तो किसी खास होटल की चाय पीने के बाद दूसरी बार उसी
हॉटल जाने को मन करता है, पूछो क्यों? अरे भाई ! उसकी
चाय के साथ अफीम की डोंडी भी उबाली जाती है। थोड़ा नशा
हो तो अच्छा लगता है न? गुजरात के सुरेन्द्रनगर में
`राज` की चॉकलेटी चाय का मजा ही अनूठा है। उसके मालिक
सजुभा बापू जब काउन्टर पर बैठकर बोलते हों तो सुनने का
आनंद अनिर्वचनीय होता है। आंबेडकर चौक में उनके होटल
के सामने रेलवे की दीवार है। शाम को वहाँ मजदूर इकट्ठे
होते हैं। दातून बेचनेवाले देवीपूजक भी होते हैं।
नजदीक में ही कागज के पैकिंग मटीरियल बनानेवाली
फैक्ट्री भी है।
हमारे मित्र डॉ. रूपेन दवे सुबह दस बजे मरीजों पर
गुस्सा करें और कम्पाउन्डर घनश्याम रोजमर्रा की तरह
डॉक्टर के ऊपर गुस्सा कर दें तब पास में बैठे केमिस्ट
जिज्ञेश को भी गुर्राहट करते हुए देखने का मौका कई
मरीजों को मिला है। ऐसा क्यों होता होगा? अरे भाई !
सुबह दस बजे का समय तो चाय का होता है, बेचारे मासूम
मरीज क्या जानें? हमारे गुजराती कविश्री माधव रामानुज
तो कहते है कि मैं तो सुबह जल्दी जागकर खुद ही चाय बना
लेता हूँ। चाय का मीठापन और उसमें माल-मसाला हो तो बात
ही और होती है! बारिश के मौसम में चाय का महत्व और भी
बढ़ जाता है।
चाय हर मनोभाव में साथ निभाती है। चाहें सुख हो या दुख
चाय दोनो अवसरों पर काम आती है। जब कोई खुश हो जाता है
तो कहता है- चलो इसी बात पर चाय हो जाए। चाय में अपनी
खुशी को बाँटने का आनंद होता है। मन उदास हो, कोई दुख
की बात हो या किसी बोझ को हल्का करने का मन हो, ऐसे
समय कोई अपना मिल जाए तो सहज शब्द निकलते हैं आइए, चाय
पीते हैं। किसी ऐसे ही समय को याद करते हुए कवि श्री
ज्ञानप्रकाश विवेक ने कहा है-
शेष तो सब है, अमन है, बंद कमरे में थोड़ी घुटन है
आप भी कुछ परेशान से हैं, चाय पीने का मेरा भी मन है
१ जुलाई २०२० |