| 
  
				
					| 
					इस सप्ताह- |  
					| 
 
 
	 अनुभूति 
	में-1 दीपावली के अवसर पर अनेक रचनाकारों द्वरा विभिन्न विधाओं में ढेर सी काव्य 
	रचनाएँ।
 |  | 
 
 
 
 
 |  
					साहित्य एवं 
					संस्कृति में-  दीपावली के अवसर पर |  
 | 
					समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है 
					भारत से भारतेन्दु मिश्र की कहानी
					उस्ताद जी
 
					
					 फौज 
					से रिटायर होकर आये थे उस्ताद जी। सेना मे पच्चीस वर्षों तक 
					हज्जाम का काम करने के बाद उस्ताद जी ने अवकाश गृहण किया। इस 
					सेवाकाल मे हिन्दुस्तान के न मालूम कितने शहर देखे ,न मालूम 
					कितने अफसरो की कटिंग की,न जाने कितने लेफ्टीनेंटों और 
					बैगेडियरों की हजामत बनायी। अपनी इस सेवा के दौरान उन्होंने न 
					जाने कितनी बोलियाँ सीखीं और न जाने कितनी संस्कृतियों के 
					अनुभव प्राप्त किये। अपना काम ईमानदारी से करते थे उस्ताद जी। 
					फौज में उन्हें उनके काम के लिए सम्मान मिलता रहा। कोई प्रमोशन 
					तो था नहीं इस लिए रिटायर होना ही उन्हें ठीक लगा। रिटायर हुए 
					तो पुराने लखनऊ में स्थित अपने घर आ गये। फण्ड वगैरह का जो 
					पैसा मिला उससे पुराना मकान ठीक करवाया। एक बेटा और पत्नी। 
					बेटा फेल हुआ आठवीं में तो उसने दुबारा किताबों की शक्ल न 
					देखने की कसम खायी। उस्ताद जी ने बड़ी कोशिश की मगर वो टस से मस 
					न हुआ। उन्हें चिंता हुई कि मंगल पढ़ेगा नहीं तो उसकी जिन्दगी 
					कैसे कटेगी। मंगल मुहल्ले के लडकों के साथ कभी पतंगबाजी कभी 
					कंचे... आगे- *
 
					संकलित पुराण कथारावण हारा कितनी बार
 *
 
                    हजारी प्रसाद द्विवेदी का ललित निबंधआलोक पर्व 
					की ज्योतिर्मयी देवी - लक्ष्मी
 *
 
					ललित शर्मा का आलेखसमुच्चय देव लक्ष्मी गणेश
 *
 
					परिचय दास की कलम सेजामुनी सुगंध की द्युति
 |  | 
		
			| पिछले 
					 
					सप्ताह- नवरात्रि के अवसर पर |  
		
			| 
					मुक्ता के शब्दों मेंपुराण कथा-
					
					दुर्गा नाम का रहस्य
 *
 
                    भगवतशरण उपाध्याय का ललित निबंध - 
					नारी
 *
 
					पूर्णिमा वर्मन का आलेखडाक-टिकटों और प्रथम दिवस आवरणों में दुर्गा
 *
 
					पुनर्पाठ में देव प्रकाश की कलम 
					सेदुर्गा पूजा का 
					संस्कृतिक विश्लेषण
 *
 
					समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है 
					मलेशिया से मनीषा श्री की कहानी
					रेडियो मेरी 
					जान
 
					
					 खुली बाहें पसारे, साल भर एक 
					जैसा सदाबहार मौसम और दिन में कम से कम एक बार बारिश का मज़ा 
					देने वाला यह शहर चाहे पर्यटक हो या प्रवासी दोनों को ही अपनी 
					मीठी भाषा में सलामत देतंग कहता है, यानी कि “मलेशिया में आपका 
					स्वागत” है। तो समझिये कि लगभग दो साल पहले स्वाती और यश ने जब 
					अपने वतन भारत को मुंबई के छोर से अलविदा कहा तो परदेश में 
					मलेशिया के कुआलालंपूर के छोर ने उन्हें सलामत देतंग कहा। यह 
					स्वागत हर प्रवासी की तरह उनके लिये भी उत्सुकता और आशंका से 
					भारा हुआ था। कड़ी व्यस्ता और दौड़ के साथ सामंजस्य बैठाते दो 
					साल कैसे बीते पता ही नहीं चला। तब से पहली बार भारत जाकर लौटी 
					है स्वाती, पिछली बार दशहरे और दिवाली पर भारत नहीं जा सकी थी, 
					त्योहार सूने से रहे थे, इस बार भी यश की व्यस्तता के कारण 
					उन्हें जल्दी कुआलालंपूर लौटना पड़ा है। भारत से लौटने के बाद 
					कुछ दिन मन अनमना सा रहता है। सुबह यश को ऑफिस और कीर्ति को 
					स्कूल भेज कर स्वाती जब वापिस घर में घुसी तो... 
					आगे- |  |