प्राचीन
समय की बात है- प्रह्लाद के वंश में दुर्गम नामक एक अति
भयानक, क्रूर और पराक्रमी दैत्य हुआ। वह देवताओं का कट्टर
शत्रु था। दुर्गम जानता था कि इन्द्र आदि देवताओं का बल
वेद है। वेदों के लुप्त अथवा समाप्त हो जाने पर देवता
शक्तिहीन होकर उनसे पराजित हो जाएंगे। अतः वेदों को नष्ट
करने के विचार से दुर्गम हिमालय पर्वत पर गया और ब्रह्माजी
को प्रसन्न करने के लिए वहां उसने कठोर तपस्या आरम्भ कर
दी। सैकड़ों साल बीत गए। उसकी तपस्या के तेज से देवताओं और
दैत्यों सहित समस्त प्राणी संतप्त हो उठे। तीनों लोकों में
हाहाकार मच गया।
तब अंततः ब्रह्माजी वर देने के लिए दुर्गम के सामने प्रकट
हुए। उसे समाधि में लीन देखकर ब्रह्माजी बोले-“वत्स! नेत्र
खोलो। मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हूं।
तुम्हारे मन में जिस वर की इच्छा हो, वह मांग लो।”
ब्रह्माजी की वाणी सुनकर दैत्य दुर्गम ने नेत्र खोले और
उनकी स्तुति करते हुए बोला-“पितामह! यदि आप प्रसन्न हैं तो
मुझे सभी वेद देने की कृपा कीजिए। सब वेद मेरे अधिकार में
हो जाएं। हे परमपिता! वेदों के साथ ही मुझे ऐसा अतुल्य बल
प्रदान कीजिए, जिससे कि देवता, मनुष्य, गंधर्व, यक्ष,
नाग,-कोई भी मुझे पराजित न कर सके।”
दुर्गम को इच्छित वर प्रदान कर ब्रह्माजी ब्रह्मलोक लौट
गए। उनके वरदान के प्रभाव से ऋषि-मुनि सारे वेदों को भूल
गए। स्नान, संध्या, हवन, श्राद्ध, यज्ञ एवं जप आदि वैदिक
क्रियाएं नष्ट हो गईं। सारे भूमण्डल पर भीषण हाहाकार मच
गया। इस प्रकार सारे जगत में अराजकता उत्पन्न हो गई। वर्षा
बंद हो गई। पृथ्वी पर चारों और अकाल पड़ गया। देवताओं को
यज्ञ का भाग मिलना बंद हो गया। वे शक्तिहीन होकर दैत्यों
से पराजित हो गए और अपने प्राण बचाते हुए वनों में भटकने
लगे।
तब समस्त ऋषि-मुनिगण भगवती जगदम्बा की उपासना करने के
विचार से हिमालय पर्वत पर गए। समाधि, ध्यान तथा पूजा
द्वारा उन्होंने देवी की स्तुति आरम्भ कर दी। उनकी स्तुति
से भगवती माता साक्षात प्रकट हुईं। भगवती ने उन्हें
सांत्वना दी कि वे वेदों को दुर्गम के अधिकार से वापस
लाएँगीं। फिर देवसेना लेकर वे दुर्गम का वध करने के चल
पड़ी। दुर्गम को जब भगवती माता के आने का समाचार मिला तो
उसने भी अपनी विशाल दैत्यसेना को तैयार किया और उनका सामना
करने के लिए चल पड़ा। देवसेना और दैत्यसेना में भयंकर
युद्द आरम्भ हो गया। दोनों और से भीषण शक्तियों का प्रयोग
होने लगा।
दुर्गम को ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त था, इसलिए देवता उसे
किसी भी प्रकार से पराजित न कर सके। तब माता भगवती ने अपने
अंश से कालिका, तारिणी, बगला, मातंगी, छिन्नमस्ता, तुलजा,
कामाक्षी, भैरवी आदि अनेक देवियों को प्रकट किया और उनके
साथ स्वयं-दैत्यसेना और दुर्गम से युद्ध करने लगीं। अंत
में माता जगदम्बा के बाणों ने दुष्ट दुर्गम के प्राण हर
लिए। महापापी दुर्गम के मरते ही इन्द्र आदि देवता भगवती
माता की स्तुति करते हुए उन पर फूलों की वर्षा करने लगे।
दुर्गम का वध करने के कारण भगवती का एक नाम दुर्गा पड़
गया।
१५ अक्तूबर २०१५ |