इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-1
शंभु शरण मंडल, अलका मिश्रा, शिखा गुप्ता, टीकमचंद ढोडरिया और
ममता गोयल
की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- लगभग ३०० कैलोरी के व्यंजनों की शृंखला- स्वस्थ कलेवा
में, हमारी रसोई-संपादक
शुचि द्वारा प्रस्तुत है-
जई की इडली।
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बागबानी में-
आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने
में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
३१- एक छोटा तालाब। |
कला
और कलाकार-
निशांत द्वारा भारतीय चित्रकारों से परिचय
के क्रम में जहाँगीर
सबावाला
की कला और जीवन से परिचय। |
सुंदर घर-
घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
३१- ओय गुलाबी
! |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- इस सोमवार-
(२८ सितंबर को) भगत सिंह, लता मंगेशकर, क्रांति त्रिवेदी, रणवीर कपूर,
अभिनव बिंद्रा, मौनी राय...
विस्तार से
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नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है-
कुमार रवीन्द्र की कलम से निर्मल शुक्ल के नवगीत
संग्रह-
अब है सुर्ख कनेर का परिचय। |
वर्ग पहेली- २५३
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- हिंदी दिवस के अवसर पर |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
भारत से
रत्ना ठाकुर की कहानी
श्वानकथा
यह
कहानी काल्पनिक न होकर पूरी तरह वास्तविक घटनाओं पर आधारित है
और इसका बहुत से जीवित और मृत पात्रों से सम्बन्ध संयोग न हो
कर तथ्य पर आधारित है। लिहाज़ा लेखिका को भय है कि कहानी के
प्रकाशन के बाद कुछ उच्च पदस्थ भद्र लोग अपने बचपन की करनी
उजागर करने के लिये उस पर जानलेवा हमला कर सकते हैं। उम्मीद है
कि पाठक लेखिका को बचाने के लिए दुआ करेंगे।
ट्रेन की सीटी बजे हुए दस मिनट गुजर चुके थे। तीन जोड़ी
पैर घर के बरामदे में चहल कदमी कर रहे थे। लग रहा था जैसे समय
रुक गया हो। “चिकमंगलूर" बाबू दूर-दूर तक कहीं नज़र नहीं आ रहे
थे। “चिकमंगलूर” नाम आप को शायद अजीब लगे पर इस नाम के पीछे भी
एक कहानी थी। जिस दिन इंदिरा गाँधी “चिकमंगलूर” से जीत कर आयीं
थीं, उसी दिन पापा के ऑफिस के इन बाबू साहब की पोस्टिंग पास के
जिले में हो गई थी, लिहाज़ा दफ्तर के लोगों ने इनका नाम
“चिकमंगलूर” रख दिया था। बेचारे तब से इस लम्बे चौड़े नाम को
ढोते हुए रोज ट्रेन से अप डाउन कर रहे थे।
आगे-
*
संकलित प्रेरक प्रसंग
बाज का पुनर्जन्म
*
राजेश्वर प्रसाद सिंह का आलेख
भूकंप क्यों आते हैं
*
संजीव सलिल का रचना प्रसंग
नवगीत की अंतरात्मा
छंद
*
पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का सातवाँ भाग |
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मुक्ता का प्रेरक प्रसंग
दूध और पानी
*
पद्मसंभव से जानें
महापर्व करमा के
विषय में
*
संजीव शर्मा की कलम से
उपन्यासकार प्रतापनारायण श्रीवास्तव
*
पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का छठा भाग
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
यू.एस.ए. से
सुदर्शन सुनेजा की कहानी
अवैध नगरी
अचानक
उस की दृष्टि स्थिर हो गई। जिस ट्यूब को वह देख रहा था, उस में
उस की चेतना मूर्त होकर पत्थर हो गई थी। कहीं कुछ दरक गया था।
संशयों और अविश्वास के बीच उस की अंगुलियाँ ठिठक गई थीं और
मानसिकता कुंद हो गई थी।
ऐसे कैसे हो सकता है!
क्या सच में ऐसा हो सकता है?
ये तो जान चुका है कि वह आज से तीस बरस पहले का जन्मा टेस्ट
ट्यूब बेबी है। कितना बड़ा अजूबा था यह तब! आज तो यह आम बात हो
गई है। पर मेरे पापा का स्पर्म इस ट्यूब में आज भी ज्यों का
त्यों है, कैसे! उस ने लेबल को प्रखर रौशनी में रखा और देखा उस
पर लिखा था "परिवर्तित"। यह एक नया इतिहास अपने पन्ने खोल रहा
था। क्षण भर के लिये वह संज्ञा शून्य हो गया। माथे पर पसीने की
बूँदें चू आईं और चेहरे का रंग भी शायद बदल गया था। पर यह सब
कैसे हो सकता है? परिवर्तित शब्द से उस के अंदर जैसे साँप
रेंगने लगे। वह काम को भूल कर एक बारगी...
आगे-
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