समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
संयुक्त अरब इमारात से पूर्णिमा वर्मन की कहानी
सपने
"धत्,
तेरे काकरोच की। फिर चुन्नी में छेद। इन तेलचट्टों ने तो नाक
में दम किया हुआ है। अब चुन्नी भी खानी थी तो रेशमा गुप्ता की।
कभी मेहर पद्मसी की चुन्नी चाट कर देखी है? मगर मेहर की
चुन्नी, रेशमा की चुन्नी की तरह कमरे में तार की अरगनी पर लटकी
नहीं रहती है रात भर। बन्द रहती है गोडरेज की आलमारी के भीतर
'मौथप्रूफ' खुशबू में। "अभी पिछले ही दिनों नया सूट सिलवाया
छींटदार चूड़ीदार और कुर्ता। चुन्नी के लिए रूपये इकठ्ठा
करते–करते दो महीने लग गये इस बीच सिर्फ एक बार पहना, आखिर
अमरेश की बहन से कितनी बार चुन्नी माँगी जा सकती थी? उसके पास
भी तो दो ही रंगीन चुन्नियाँ हैं। हफ्ता भर ही हुआ चुन्नी को
खरीदे। एक बार पहनी नहीं कि हो गया सत्यानाश।" रेशमा ने नाक तक
चढ़ा गुस्सा भगौने में पानी के साथ गैस पर चढ़ा दिया और खुद पटरे
पर बैठ गयी, पैरों को दोनों बाहों में समेट घुटनों पर चेहरा
टिका लिया। रेशमा के पास मेहर पदमसी जैसी अलमारी नहीं है। बस
एक बक्सा है और यह अरगनी। पर जिस शौक से धीरे-धीरे... आगे-
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नरेन्द्र कौर छाबड़ा की
लघुकथा-
परिवर्तन
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प्रो. अभिराज राजेन्द्र मिश्र का
आलेख
प्रजापति
ब्रह्मा की यज्ञ-स्थली पुष्कर
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सुधा कांत दास की कलम से
संत कबीर का काव्य
पंथ
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पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा
तेरे
बगैर का आठवाँ भाग |