इस सप्ताह- |
1
अनुभूति
में-1
धीरज श्रीवास्तव, पूनम शुक्ला, शैली खत्री, शशि पाधा और डॉ. संजीता वर्मा की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- गणतंत्र दिवस के अवसर पर हमारी रसोई-संपादक शुचि
लाई हैं स्वाद और स्वास्थ्य से भरपूर-
तिरंगा सैंडविच। |
वास्तु विवेक
के
अंतर्गत-- भारतीय
परंपरा में हर अवसर पर अल्पना का बहुत महत्व माना गया है। चलें प्रभा पंवार
से जानें- अल्पना क्या है। |
जीवन शैली में-
१५ आसान सुझाव जो जल्दी वजन घटाने में सहायक हो सकते हैं-
३- स्वास्थ्यवर्धक
भोजन का चुनाव करें।
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सप्ताह का विचार-
सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिए उतने ही आवश्यक है जितने संतुलन और मर्यादित चेतना।
- डॉ. शंकर दयाल शर्मा |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या-आप-जानते-हैं-
आज के दिन (२६ जनवरी को) जहाँगीर, रहीम, रानी
गाइदिनल्यू, ओडिसी के विद्वान केलुचरण महापात्र का जन्म...
विस्तार से |
नये नवगीत संग्रहों से परिचय के क्रम में इस बार
कुमार रवीन्द्र की कलम से निर्मल शुक्ल का नवगीत संग्रह-
एक और अरण्यकाल पर |
वर्ग पहेली- २२१
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
|
साहित्य एवं
संस्कृति
में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
काजल पांडेय की कहानी- कदम
बढ़ाए जा
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जितनी
बार उसकी शक्ल टेलीविजन पर एक नयी खबर के साथ दीखती, आँखों के
आगे उस तीस वर्ष पुराने कोमल बेचारे से लड़के का चेहरा आ जाता।
जो वार्डन के बुलाने पर बाहर आश्रम के ग्राउण्ड में अपने हम
उम्र लड़कों के साथ हाथ में तिरंगा लिये 'कदम-कदम बढ़ाए जा' गाते
हुए छब्बीस जनवरी की परेड की तैयारी के बीच से भागता हुआ आया
था। आज के चेहरे में कहीं भी वह नम्रता, कोमलता, वह भोलापन
नहीं दिख रहा और उस पर इस सनसनीखेज खबर को सुनकर उसे विश्वास
नहीं हो रहा है कि यह वही वीरवर्धन है। प्रतिमा ने अपने को
समझाने का असफल प्रयास भी किया। एक नाम के कई व्यक्ति होते
हैं... लेकिन साथ ही अंतर्द्वंद्व शुरू हो जाता क्या पिता का
नाम भी वही? गाँव, शहर भी एक ही। भला हो इस मीडिया का, जाने
कहाँ कहाँ गोता लगाकर सारी जानकारी इकट्ठी कर लाते हैं। फिर
दिनकर देव ने ही तो कई वर्ष पहले वीरवर्धन के राजनीति में
सक्रिय होने की खबर दी थी। सुनकर प्रतिमा आश्चर्यचकित रह गयी
थी ''वह सीधा सादा बेचारा सा लड़का और राजनीति?
आगे-
*
समीरलाल समीर का व्यंग्य
गाँधी जी का टूटा चश्मा
*
शशि पाधा का संस्मरण
अपना अपना युद्ध
*
अशोक शुक्ल का आलेख
गाँधी भवन
हरदोई
*
पुनर्पाठ में ब्रजेश शुक्ला का आलेख
भारत के
राष्ट्रपति |
|
अंशुमान अवस्थी का व्यंग्य
वेताल कथा
*
डॉ अशोक उदयवाल से जानें
सर्दियों में स्वास्थ्यवर्धक
फूलगोभी
*
श्यामनारायण वर्मा का आलेख
मादक छंद वसंत के
*
पुनर्पाठ में रमेश चंद का आलेख
वसंत पंचमी-
साधना का संकल्प लेने का दिन
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
अन्विता अब्बी की कहानी-
रबरबैंड
 उसका बिस्तर
से उठने का मन नहीं कर रहा था। करवट लेने पर उसे लगा कि बिस्तर
बेहद ठंडा है। उसने आँखों पर हाथ रखा, उसे वे भी ठंडी लगीं
प़लकें उसे भीगी लग रही थीं। तो क्या वह रो रही थी?
नहीं, वह
क्यों रोएगी? और उसने फिर अपनी पलकों को छुआ। उसने पलकें
झपकाईं। उसे बहुत खिंचाव का अनुभव हो रहा था। वह चाहकर भी पूरी
तरह आँख नहीं खोल पा रही थी मानो किसी ने जबरदस्ती उसकी पलकें
पकड़ लीं हों। उसे लगा उसे बाथरूम में जाकर 'वॉश' कर लेना
चाहिए। पर वह नहीं चाह रही थी कि दिन इतनी जल्दी शुरू हो जाय।
रात कैसे इतनी जल्दी खत्म हो गई? उसे लग रहा था कि यह पहाड़-सा
दिन उससे काटे नहीं कटेगा।
उसकी पीठ के नीचे कुछ चुभ रहा था। हाथ डालकर देखा उसकी चोटी का
'रबर बैण्ड' था। उसने अपनी चोटी आगे की ओर कर ली और तभी उसे खयाल आया कि वह
सारी रात अजीबो-गरीब सपने देखती रही है। किसी ने उसके बाल काट दिए हैं उसको
सपने वाली अपनी शक्ल याद आ रही थी...
आगे- |
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