इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
1
शंभुशरण मंडल, संजू शब्दिता, सतीश सागर, शिवकुमार दीपक और राम
संजीवन वर्मा की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- सर्दियों की शुरुआत हो रही है और हमारी
रसोई-संपादक शुचि लाई हैं हर मौसम और हर अवसर पर सदा बहार-
शकरपारे। |
गपशप
के
अंतर्गत--छुट्टियाँ
आने ही वाली
हैं बहुत
से
लोग यात्रा करेंगे। आइये जानें कुछ उपयोगी सुझाव अर्बुदा ओहरी से-
हवाई यात्रा में सामान की
सुरक्षा |
जीवन शैली में- १०
साधारण बातें जो हमारे जीवन को स्वस्थ, सुखद
और संतुष्ट बना सकती हैं -
१०. कुछ समय केवल अपने लिये
निकालें।
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सप्ताह का विचार-
चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए। क्यों कि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं।
- समर्थ रामदास |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या-आप-जानते-हैं-
आज के दिन (१ दिसंबर को) १८८५ में काका कालेलकर, १८८६ में राजा महेन्द्र
प्रताप, १९५४ में मेधापाटकर और ...
विस्तार से |
साहित्य संगम में-
अभिव्यक्ति के पुराने अंकों से- १५
अगस्त २००० को प्रकाशित नॉर्वे से
हरचरण चावला की
उर्दू कहानी का हिंदी रूपांतर "ढाई अक्खर" |
वर्ग पहेली-२१३
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि-आशीष
के सहयोग से |
हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति
में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
वल्लभ डोभाल की कहानी-
नुक्कड़ नाटक
वर्षों नौकरी तलाशने पर जब निराशा ही हाथ लगी तो वह समझ गया कि
पढ़ने-लिखने का मतलब सिर्फ नौकरी नहीं, अपना कोई भी धंधा शुरू
किया जा सकता है। सोचकर उसने काम चालू कर दिया। काम कोई हो,
मतलब पैसा निकालने से है। चल पड़े तो पैसा ही पैसा...!
शुरूआती दौर में जो दिक्कतें पेश आती हैं, उनका सामना
उसे भी करना पड़ा। तब पहली बार एक बूढ़े आदमी ने रू-ब-रू खड़े
होकर उसे डपट दिया था- "एक जवान आदमी इतना हट्टा-कट्टा होकर
भीख माँगता फिरे, शर्म आनी चाहिए! मेहनत-मजूरी क्यों नहीं कर
लेता?" बूढ़े आदमी की नसीहत उसने सुन ली और चुपचाप बर्दाश्त कर
गया। चाहता तो वहीं मुँहतोड़ जवाब देता कि- ‘माँगना कम
मेहनत-मजूरी का काम नहीं। सर्दी-गर्मी में दिन-भर घूमते जान
आधी रह जाती है, फिर माँगता कौन नहीं! फर्क इतना है कि मैं तुम
लोगों से माँग रहा हूँ और तुम मंदिर-मस्जिदों में जाकर माथा
टेकते हो! भीख तो सभी माँगते हैं। कोई धन-दौलत माँगता है, कोई
औलाद के लिए तरस रहा है, किसी के व्यापार में घाटा है तो कोई
अमानत में खयानत, हत्या-बलात्कार...
आगे-
*
रघुविन्द्र यादव की लघुकथा
माँ की खुशी
*
मोइनुद्दीन चिश्ती का
आलेख
जोधपुर की
जूतियाँ
*
हृदयनारायण दीक्षित का दृष्टिकोण
भारतीय संस्कृति
प्रकट करती है संस्कृत
*
पुनर्पाठ में डॉ गुरुदयाल प्रदीप
लाए हैं
गरमा-गरम
चाय की प्याली आप के स्वास्थ्य के नाम |
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सुशील यादव का व्यंग्य
गड़े मुर्दों की तलाश
*
डॉ. कमल प्रकाश अग्रवाल
से जानें
फूलों से
रोगों का इलाज
*
सुधीर वाजपेयी का आलेख
मंडला : जहाँ कभी समुद्र
लहराता था
*
पुनर्पाठ में मेहरून्निसा परवेज
का
ललित निबंध-
चिट्ठी में
बंद यादें
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
डॉ. अजय गोयल की कहानी-
माहिम पर प्रार्थना
ढोलक
की तत्काल व्यवस्था पाली हिल की उस बारह मंजिला इमारत में नहीं
हो सकी। खचाखच भरे हॉल में ‘रिंग सेरेमनी’ के लिए आए उन
छःसदस्यों के अलावा कोई उन्य उत्तर भारतीय नहीं था। अन्य
परिवार मुंबई वाले थे, जिनकी जड़ें अलग-अलग प्रांतों में थीं।
नवीन ने विभा को रिंग पहनाई। इसके बाद परंपरा के अनुसार विभा
का शृंगार होना था। जबकि नवीन विभा की निमन्त्रित कुछ सहेलियों
के सवालों में उलझ गया। यह युद्ध उसे अकेले ही लड़ना था। उसने
लड़ा भी और सटीक उत्तर दिए। दूसरे अर्थों में सहेलियों ने छान
लिया। ठोक-बजा भी लिया कि नवीन अप्रवासी ही है। उस समय मम्मी
थोड़ी अनमनी हो गई थीं। उन्होंने महसूस किया, अपना क्षेत्र होता
तो....तब नायन साथ होती। ढोलक की थाप पर ताल में बँधी घर-भर की
महिलाएँ नाचतीं-गातीं। यहीं से तो सासू का लाड़ शुरू होता है और
इसी प्यार के सहारे एक औरत जिन्दगी भर अपने आपको सींचती है।
पकाती है। विभा का शृंगार करती जेठानी सरला ने मम्मी को
समझाया, आगे- |
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