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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
रघुविन्द्र यादव
की लघुकथा- एहसान


“बाबूजी आप हर सप्ताह मंदिर तक आते हो, प्रसाद खरीदते हो और बाहर की बाहर चले जाते हो।
न शीश झुकाते हो, न मंदिर जाते हो, न प्रसाद चढाते हो और न बाँटते हो। मुझे समझ नहीं आया आपका दर्शन”

“रोहताश भाई, इसमें न समझने की कोई बात ही नहीं है, हम यहाँ शीश झुकाने या प्रसाद चढाने नहीं आते, केवल प्रसाद खरीदने आते हैं। हमारा भगवान तो सर्व-व्यापक है।”
“फिर आप प्रसाद क्यों ले जाते हैं?”
“प्रसाद तो अपनी माँ के लिए ले जाता हूँ।"
''वे मंदिरों में विश्वास करती हैं इसलिए उन्हें यहाँ से ख़रीदा हुआ प्रसाद बाँट कर ख़ुशी मिलती है और उन्हें खुश देखकर हमें ख़ुशी मिलती है।''

१ दिसंबर २०१४

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