अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

पुरालेख तिथि-अनुसार पुरालेख विषयानुसार हमारे लेखक लेखकों से
तुक कोश // शब्दकोश // पता-


३. ११. २०१४

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
संजीव सलिल, अशोक रावत, नीरज कुमार नीर, रामशंकर वर्मा और रोली त्रिपाठी की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- सर्दियों की शुरुआत हो रही है और हमारी रसोई-संपादक शुचि लाई हैं स्वास्थ्यवर्धक सूपों की शृंखला में गर्मागरम- खट्टा तीखा नूडल सूप

गपशप के अंतर्गत- स्वस्थ रहना हम सबको अच्छा लगता है लेकिन इसके लिये सबसे जरूरी क्या है जानें अर्बुदा ओहरी से- सुबह के नाश्ते को सलाम

जीवन शैली में- १० साधारण बातें जो हमारे जीवन को स्वस्थ, सुखद और संतुष्ट बना सकती हैं - ६. सहयोग और सहायता आनंद के अनोखे स्रोत

सप्ताह का विचार- इस विश्व में स्वर्ण, गाय और पृथ्वी का दान देनेवाले सुलभ है लेकिन प्राणियों को अभयदान देनेवाले इन्सान दुर्लभ हैं - भर्तृहरि

- रचना व मनोरंजन में

क्या-आप-जानते-हैं- कि आज के दिन (३ नवंबर को) अभिनेता पृथ्वीराज कपूर, संगीतकार लक्ष्मीकांत, अभिनेत्री सोनाली कुलकर्णी... विस्तार से

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- अभिव्यक्ति के पुराने अंकों से- १ जनवरी २००३ को प्रकाशित यू.के. से शैल अग्रवाल की कहानी- सूखे पत्ते

वर्ग पहेली-२०९
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

अपने विचार यहाँ लिखें

साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 दिव्या विजयवर्गीय की कहानी- सूखे फूल

वो मेरे ऐन सामने आ खड़ी हुई थी कुछ दिन पहले सुबह सुबह उसका फोन आया था कि कुछ रोज़ बाद वो मेरे शहर आ रही है क्या मैं उस से मिलना पसंद करूँगी? और मेरे मुँह से हाँ निकल गया था बाद में कितनी बार सोचा कि मना कर दूँ कुछ भी बहाना बना दूँगी कहीं बाहर जाना है या मेहमान आ गए हैं या सीधे ही कह दूँ नहीं मिलना चाहती पर शायद मैं खुद भी उसे देखना चाहती थी जिस दिन से सुना वो आ रही है मुझे कुछ होता रहा आने से एक दिन पहले उसका फोन फिर आया था उसी ने कहा था कि वो घर पर नहीं कहीं बाहर मिलना चाहती है हो सके तो किसी गार्डन में और मैं फिर हाँ कह बैठी थी मुझे खुद के ऊपर क्रोध भी आया कि क्यों मैं उसकी हर बात माने जा रही हूँ पर अब तो निर्णय ले लिया गया था मैं पार्क के गेट के आस पास चक्कर काट रही थी यही तय पाया गया था कि ठीक एक बजे हम उद्यान के प्रवेश द्वार पर मिलेंगे और अब एक बजकर बीस मिनट होने को आये थे, कैसी लापरवाही है क्या उसे फोन करूँ? फ़ोनबुक में मैं नंबर ढूँढ ही रही थी कि आगे-
*

राहुल देव की लघुकथा
जलेबी
*

मालती शर्मा से संस्कृति में
गौ, गोवर्धन, जीवन धन- गोबर संस्कृति की सार्थकता
*

डॉ. अशोक उदयवाल से जानें
अनन्नास के अनोखे लाभ

*

पुनर्पाठ में कनीज भट्टी का आलेख
रूप का रखवाला घूँघट

अभिव्यक्ति समूह की निःशुल्क सदस्यता लें।

पिछले सप्ताह-

शशिकांत सिंह शशि का व्यंग्य
दुनिया ऑन लाइन
*

शमशेर अहमद खाँ का आलेख
चमगादड़ हमारा मित्र हैं
*

कंदम्बरी मेहरा का आलेख-
हैलोवीन का त्यौहार

*

पुनर्पाठ में श्रीश बेंजवाल का आलेख
कंप्यूटिंग के पितामह डेनिस रिची

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
 सुशांत सुप्रिय की कहानी- पाँचवीं दिशा

हम सब पिता को एक अंतर्मुखी व्यक्ति के रूप में जानते थे दादाजी की मौत के बाद खेती-बाड़ी का दायित्व उनके कंधों पर आ गया था लेकिन शायद वे अपने वर्तमान जीवन से खुश नहीं थे मुझे अक्सर लगता कि शायद वे कुछ और ही करना चाहते थे शायद उनके जीवन का लक्ष्य कुछ और ही था माँ पिता से ज्यादा दुनियादार महिला थीं खेती-बाड़ी की देख-रेख का काम माँ और मामा ने सँभाल लिया इसलिये घर की गाड़ी बिना लड़खड़ाए चलती रही तब मैं चौदह साल का था और गाँव की पाठशाला में आठवीं कक्षा में पढ़ता था एक दिन पिता ने घर में घोषणा की कि वे एक 'हॉट एयर बैलून' बनाएँगे और उसमें बैठ कर ऊपर आकाश में जाएँगे घर-परिवार और गाँव में जब लोगों ने यह सुना तो वे तरह-तरह की बातें करने लगे किसी ने कहा कि उनका दिमाग खिसक गया है किसी ने गाँव के ओझा को बुला कर उनका इलाज करवाने की बात की माँ ने भी इसे पिता की सनक बताया और उन्हें ऐसा करने से रोकना चाहा, किंतु पिता अपनी बात पर... आगे-

अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ

आज सिरहाने उपन्यास उपहार कहानियाँ कला दीर्घा कविताएँ गौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा रचना प्रसंग पर्व पंचांग घर–परिवार दो पल नाटक परिक्रमा
पर्व–परिचय प्रकृति पर्यटन प्रेरक प्रसंग प्रौद्योगिकी फुलवारी रसोई लेखक विज्ञान वार्ता विशेषांक हिंदी लिंक साहित्य संगम संस्मरण
चुटकुले डाक-टिकट संग्रह अंतरजाल पर लेखन साहित्य समाचार साहित्यिक निबंध स्वास्थ्य हास्य व्यंग्य डाउनलोड परिसर हमारी पुस्तकें रेडियो सबरंग

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

Loading
     

आँकड़े विस्तार में