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१६. ६. २०१४

इस सप्ताह-

1
अनुभूति में-

कनेर के फूल को समर्पित गीत, गजल, छंदमुक्त, दोहा, कुंडलिया, क्षणिका और हाइकु रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- भुट्टों के मौसम में मक्के के स्वादिष्ट व्यंजनों के क्रम में- मकई दिलबहार

गपशप के अंतर्गत- सब चाहते हैं कि हमारा घर सुंदर हो, कैसे बनाया जा सकता है अपने घर को सबसे सुंदर? आप भी जानें- सुंदर घर

जीवन शैली में- ऊर्जा से भरपूर जीवन शैली के लिये सही सोच आवश्यक है, इसलिये याद रखें-  सात बातें जिनके लिये झिझक नहीं होनी चाहिये

सप्ताह का विचार में- भातृभाव का अस्तित्व केवल आत्मा में और आत्मा के द्वारा ही होता है, यह और किसी के सहारे टिक ही नहीं सकता। --श्री अरविंद

- रचना व मनोरंजन में

आज के दिन (१६ जून को) १९१३ में चित्रकार कृष्ण जी हौवाल जी आरा, १९२० में गायक, हेमन्त कुमार, १९५० में अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती...

लोकप्रिय उपन्यास (धारावाहिक) - के अंतर्गत प्रस्तुत है २००४ में प्रकाशित स्वदेश राणा के उपन्यास— 'कोठेवाली' का पाँचवाँ भाग

वर्ग पहेली-१८९
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि-आशीष
के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में- कनेर विशेषांक

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है मारीशस से
कुंती मुकर्जी-की-कहानी--गुलाबी कनेर का गुच्छा

‘’मही, इन कनेर के पेड़ों को लॉन से निकलवा देना। इसे रखने से बड़ा अपशकुन होता है।’’ डॉक्टर सोमदत्त त्रिपाठी आयुर्वेदाचार्य ने मही के घर में प्रवेश करते हुए कहा।
‘’जी गुरु जी।’’
मही अपने गुरु से बहस करना उचित नहीं समझती थी अन्यथा वह उन्हें बतलाती कि जिन फूलों को वे अक्सर भूत प्रेतों के आकर्षण का केंद्र मानते हैं वह उसके जीवन में कितना शुभ शकुन लाया है। मही को बचपन से सफ़ेद और लाल कनेर लुभाता आया है। उसकी पड़ोसिन मीमोज़ा ने उसे कनेर के बारे में अनेक जादुई बातें बतायी थी। अपनी दादी के कहने पर वह माँ सरस्वती के चरणों में नियमित रूप से सफ़ेद कनेर चढ़ाया करती थी। दादी कहती थी कि हर देवता देवी के चढ़ावे के लिये विशेष फूल होता है। सरस्वती विद्यादायिनी है। उसे सफ़ेद कनेर पसंद है।
’बिटिया, तुम शारदे माँ को सफ़ेद कनेर उनके चरणों में नित्य चढ़ाया करो। तुम्हें बुद्धि मिलेगी।’’
दादी की बात सुनकर मही स्कूल जाने से पहले, पास के मंदिर में नित्य सफ़ेद कनेर के फूल सरस्वती माता के चरणों में चढ़ाती और बदले में
... आगे-
*

सरस्वती माथुर की लघुकथा
आ री कनेरी चिड़िया
*

डॉ राकेश कुमार प्रजापति की कलम से
सदाबहार कनेर की कहानी
*

पूर्णिमा वर्मन का ललित निबंध
चारदीवारी पर बाँह टिकाए खड़ा है कनेर
*

पुनर्पाठ में- अशोक श्री श्रीमाल का आलेख
शब्दकोश का जन्म

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पिछले सप्ताह-  

प्रमोद यादव का व्यंग्य
कहानी सपनों की
*

डॉ अशोक उदयवाल से
स्वाद और स्वास्थ्य में- कद्दू एक लाभ अनेक
*

रंगमंच के अंतर्गत
विदेसिया- भिखारी ठाकुर की अद्भुत देन
*

पुनर्पाठ में- रजनी गुप्ता के उपन्यास
कहीं कुछ और- से परिचय
*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है यूएई से
पूर्णिमा वर्मन-की-कहानी--जड़ों से उखड़े

दुबई हवाई अड्डे से शारजाह में अपने घर वाली बिल्डिंग तक पहुँचने में घड़ी देखकर १८ मिनट लगे थे। नेहा ज़रा चौंकी थी- इतनी जल्दी हम एक शहर से दूसरे शहर आ गए? उत्तर प्रदेश में तो एक गाँव भी पार नहीं होता इतनी देर में। हाँलाँकि बोली कुछ नहीं, सामान ऊपर पहुँचाना था, नाथूर सामान की ट्रॉली लिए खड़ा था, प्रकाश ने परिचय करवाया, ‘यह है नदीम, इस बिल्डिंग का नाथूर, यानी केअर टेकर।' सहारनपुर के ही किसी गाँव का था सो प्रकाश से बड़ी दोस्ती हो गई थी उसकी। एक लिफ़्ट से ट्रॉली में लदकर सामान ऊपर गया साथ ही दूसरी लिफ़्ट से नेहा और प्रकाश। पल भर में वे लोग छठी मंज़िल पर इस ६०२ नंबर के फ्लैट में आ गए। फ्लैट में पहुँचे तो एक बार पूरे घर का मुआयना कर नेहा बाहर ड्राइंगरूम में आ बैठी, जहाँ से बाहर सबकुछ साफ़ दिखाई देता था। काँच की बड़ी खिड़की के आगे एक बालकनी थी और वहाँ से दूर दूर तक जहाँ भी नज़र जाती थी रेत के सिवा एक बड़ी पक्की ज़मीन और सुनसान पड़ी एकमंज़िली इमारत के सिवा...
आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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