कोई माने
या न माने पर यह यह हंड्रेड परसेंट सच है कि पुरुषों से
ज्यादा महिलाएँ देखती हैं सपने .. महिलाओं से मेरा आशय
शादीशुदा से ज्यादा है। वैसे तो हर उम्र की लड़की सपनों की
लड़ी से जुडी होती है, पर ‘एक ख़ास उम्र’की लड़कियाँ तो सपने
देखती नहीं बल्कि बुनती हैं, स्वेटर की तरह और आम घरों में
जिस तरह स्वेटर बनने तक जाड़ा निकल जाता है वैसा ही कुछ वह
बुनते-बुनते कब ससुराल पहुँच जाती है, पता ही नहीं चलता।
वो तो पतिदेव जब “सुहागरात है... घूँघट उठा रहा हूँ मैं"
गाता है तब सपने से बाहर आ चौंकती है- “ अरे...राहुल कहाँ
रह गया? “
मैंने सपनों पर कोई रिसर्च नहीं किया ना ही इरादा है, केवल
अपने आसपास का अवलोकन किया और देखा है कि मर्द बेचारों के
पास तो मरने की फुर्सत नहीं तो सोयें कहाँ से? और बगैर
सोये भला किसी को सपना आता है? कभी-कभार एकाध झपकी ले भी
ली तो सबसे पहले कमबख्त वही दिख जाता है जिससे चौबीसों
घंटे पिंड छुडाने की सोचते हैं याने कि “बॉस” इसे सपना
नहीं, ‘करम फूटना’ कहते हैं।
मेरी श्रीमती जितने सपने देखती है, शायद ही कोई देखता या
देखती हो। गिनीस बुक वाले अगर प्रतिदिन (और प्रतिरात) इनके
सपनों को रिकार्ड करे तो दावा है, सपने देखने का रिकार्ड
इनके ही नाम हो जाए। जैसे ही रात को सब काम निपटा बेड पर
पहुँचता हूँ- शुरू हो जाती है- ‘कल रात एक अजीब सपना देखा
है जी...’ फिर बिना ये पूछे कि सुनाऊँ, सुनाना शुरू कर
देती है। कई बार पति होने का दंड भुगतता हूँ (सुन लेता
हूँ) पर अधिकतर सो जाता हूँ। अब तो आदत सी पड़ गयी है, जब
तक एकाध सपने नहीं फेंकती कमबख्त नींद नहीं आती।
‘अरे सो गए क्या जी..’ किचन से आती कामिनी की जोर की आवाज
ने मेरी तन्द्रा तोड़ी।
‘नहीं, जाग रहा हूँ। बिना तुम्हें सुने कहाँ नींद आएगी, आ
जाओ, तुम्हारा ही इन्तजार है..’ मैंने बड़े मूड से कहा।
सोच कर रखा हूँ कि आज नहले पर दहला दूँगा..एकाध टक्कर का
सपना उसे दिखाऊँगा। वह बिस्तर पर पड़ते ही बोली – ‘प्रतीक!
थक गई हूँ, सो रही हूँ गुड-नाइट’ और वह आँखे मूँदने लगी,
मैंने झिंझोड़ कर कहा- ‘कमाल करती हो यार, घंटों से बैठा
हूँ कि कुछ सुनाओगी और तुम कह रही - गुड-नाइट! रोज-रोज तुम
सुनाती हो, आज मैं सुनाता हूँ-लगता है कल तुमने कोई सपना
नहीं देखा..च्च..च्च...कल का दिन खाली गया न!’
‘अरे नहीं प्रतीक, ऐसी बात नहीं, कल भी देखी,पर बताऊँगी तो
तुम हँसोगे इसलिए नहीं बता रही..’ उसने झेंपते हुए कहा।
‘अब बक भी डालो नहीं तो रात भर सो नहीं पाओगी। सोओगी नहीं
तो आगे सपने कैसे देखोगी?' मैंने उकसाया।
‘अच्छा..बताती हूँ-कल देखी कि हम तुम ‘एफिल-टावर’ के सबसे
ऊपर वाले माले में खड़े हो पेरिस को निहार रहे थे कि एकाएक
मेरे बटुवे से एक दस का नोट नीचे उड़ गया और मैं उसे पकड़ने
वहीँ से छलाँग लगा रही थी कि तुमने मुझे पकड़ लिया।’
वह आगे कुछ बोलती कि मैंने बीच में टोका- ‘यार तुम सपने
में भी छिछोरी की छिछोरी रही, कम से कम सपने में तो हरी
पत्तियाँ उड़ाया करो! और भला एक दस का नोट गिर भी गया तो
कौन सा कोई पेरिस वाला उसे पाकर करोड़पति हो जाएगा, दस का
नोट तो आजकल हमारे यहाँ भिखारी भी नहीं लेता'
‘बस, इसीलिए नहीं बता रही थी। जाओ आगे नहीं बताऊँगी..’
उसने मुँह फुला लिया।
‘ठीक है, मत बताओ पर मेरी तो सुन लो,’ मैंने कहा।
‘ठीक है, सुनाओ।’ उसने बड़े बेमन से कहा।
‘मैंने देखा कि एक बहुत ही बड़े और खूबसूरत दरबार में कीमती
लिबास और हीरे-पन्नों का हार पहने अँधेरे में बैठा हूँ कि
अचानक एक शमा रौशन होती है और अनारकली प्रकट हो मेरे सीने
में सर रख कहती है – ‘साहबे आलम..आफताब की रोशनी दुनिया की
हर ख़ुशी को रोशन करती है..फिर आफताब ने क्यों तकलीफ की?
मेरी आँखों से मेरा ख्वाब न छीनिये शाहजादे..मैं मर
जाऊँगी।'
बात पूरी भी नहीं हुई कि कामिनी पूछ बैठी-‘वो अनारकली मैं
ही थी न..?'
‘अरे यार कम से कम सपने में तो मुझे कभी बख्श दिया
करो...तुम नहीं थी, वो अनारकली थी और चिंता मत करो, मर गई
है मधुबाला, बुरा मानने वाली कोई बात नहीं’ उसे समझाया।
‘मुझे नहीं सुनने ऐसे निर्लज्ज सपने! मैं ‘एफिल-टावर’ में
चढ़ी तो आपको भी साथ ले गई और आप हैं कि अकबर के दरबार में
अकेले घुस गए और वहाँ मधुबाला के साथ छेड़-छाड़ की। छि.. तुम
मर्द लोग कितने गंदे हो..तुम लोगों के सपनों पर तो “बैन”
लगने चाहिए।’ वह नाराज हो औंधे मुँह कर सो गई। मैं क्या
करता!
दो दिनों तक यूँ ही चलता रहा। आखिरकार एक दिन वह बोली,
‘मैंने क सपना देखा कि हम दुनिया के सबसे बड़े ज्वेलरी शाप
में घूम रहे हैं और तुमने मेरे लिए सबसे कीमती हीरों के
हार का सेट ख़रीदा।’
मैंने फिर टोका- ‘शहर में ढंग का एक ज्वेलरी शाप नहीं और
तुम हीरों का सेट खरीदने दुनिया के सबसे बड़े शाप चली गई और
उस पर भी कहती हो सुबह का सपना सच होता है? अरे भागवान!
तुम गले में जो दस ग्राम का चैन पहनी हो ना..उसे खरीदने
में तो दस साल मैं बेचैन रहा अब क्या मार ही डालोगी? सब
फालतू बातें हैं कोई सपना सच नहीं होता। ऐसे फालतू सपने तो
मुझे रोज सुबह आते हैं पर कभी कोई आज तक फलित नहीं हुआ। आज
का सपना सुनाऊँ तुम्हें?'
‘बक डालो, तुम्हें तो सब बकवास ही लगता है..’ उसने बड़ी
बेरुखी से कहा।
‘मैंने देखा कि तुम बिस्तर पर खून से लथ-पथ पड़ी हो। किसी
ने तुम्हें गोली मार दी है।’ मेरी बात पूरी भी नहीं हुई कि
वो चीख पड़ी- ‘हाय राम! तुम तो चाहते ही हो कि मैं मर
जाऊँ।’
मैंने फुर्ती से बात काटी,कहा- ‘अरे पागल, मेरी बात तो
सुनो! मैं तो ये बता रहा हूँ कि देखो तुम जिन्दा हो, सुबह
का सपना सच नहीं हुआ।’
वो भड़क गई- ‘अनाप-शनाप सोचोगे तो सपने भी वैसे ही आयेंगे।
शुभ-शुभ क्यों नहीं सोचते जैसा मैं सोचती हूँ।’
मैं सोच में पड़ गया कि क्या करूँ। तभी वो बोली – ‘घबराओ
मत, ‘मजाक करना तुम्हें ही आता है क्या?..मैंने भी तो वही
किया। मुझे भी कोई सपना-वपना नहीं आता, वो तो यूँ ही रोज
तुम्हारा “टाईम पास” करती हूँ ताकि मेरे साँवले बलम की दिन
भर की थकान उतर जाए।’ आगे उसकी बातें नहीं सुन सका..खुशी
में डूब गया... कोई नया सपना बुनने... |