मीठी
मात्र आठ साल की थी जब घर के अहाते के एकदम बाहर बरवाड़ा
हाउस सोसाइटी ने पीले कनेर के १० पेड़ रोपे थे। बरवाड़ा
सोसायटी का यह अहाता तब बच्चों के क्रिकेट का मैदान था,
गर्मी की लू से बेपरवाह रहते हुए दिन भर धमाचौकड़ी होती थी।
वहाँ खेल कूद करते बच्चे कनेर के इस पेड़ के नीचे बैठ कर
थकान मिटाते थे। इसके पीले पीले फूल जब डाल से छूट कर
बच्चों के उपर आ गिरते थे तो मौसम में बसंत छा जाता था। उन
फूलों को एक दूसरे पर उछाल कर सभी मिल कर एक स्वर में गाते
थे
-"आ री कनेरी चिड़िया .
..गा री कनेरी चिड़िया
...शिवजी के मंदिर में फूलों को जाकर चढ़ा री कनेरी चिड़िया
.....आ री कनेरी चिड़िया ...!" यह गीत भोलू ने अपनी दादी से
सीखा था और सब की जबान पर चढ़ गया था। गायत्री देवी जब तक
बरवाड़ा हाउस के इस अहाते में रहीं पूजा में कनेर के फूलों
को नियमित चढाती रहीं। फिर वह अपने छोटे बेटे के पास विदेश
चली गईं।
इस बार का आना विशेष मायने रखता है, वह
मीठी की शादी में पूरे परिवार के साथ शामिल होने आई हैं।
मीठी जो उनकी लाड़ली पोती है, कानून की पढ़ाई खत्म करके अब
प्रैक्टिस कर रहीं है। इस बार अहाता बदल गया है, वे हैरान
भी हैं और दुखी भी कि गगनचुंबी इमारतें बनाने के चक्कर में
बरवाड़ा हाउस ही नहीं पूरे शहर की काया पलट के फलस्वरूप
यहाँ की सुंदरता भी तहस नहस हो गयी है। कनेर जो मंदिर का
दर्शन थे, जो हवाओं की दस्तकों के साथ घण्टियों की
तरह बजते से लगते थे, सद्भाव आस्था का भाव जगाते थे, आज
चीख चीख कर कह रहें हैं कि हमें न काटो, हमें बचाओ, हम तो
इन अहातों की देहरी के रखवाले हैं, प्रहरी हैं, पर्यावरण के
रक्षक हैं।
गायत्री देवी उन्हें बड़े दार्शनिक मनोभाव से एकटक जब निहार
रहीं थीं तो मीठी उनके पास आ खड़ी हुईं ---"प्रणाम दादी,
आपका जेट लेग पूरा हुआ या नहीं?"
-"अरी कहाँ बिटिया, देख न नींद ही उड गयी है मेरी तो,
कितनी बेदर्दी से नोचा गया है इन कनेर की डालियों को, जगह
जगह से काट दी गयी हैं अभी। चिड़ियों का बसेरा तक नहीं दिख
रहा। गायत्री देवी की आवाज़ में भी दर्द था जिसे मीठी ने भी
महसूस किया।
"अरे दादी जान सोसाइटी वालों ने तो इसे काटने के आदेश तक
दे दिये थे वो तो मैंने सभी सदस्यों के हस्ताक्षर ले कर
नोटिस देकर इन्हें रोका है स्पष्ट निर्देश निकलवाये हैं कि
इन्हें न काटा जाये बल्कि इमारत जो बन रही है उसकी बनावट
में इन पेड़ों की परिधि छोडी जाये। इन ओरर्ननामेंटल पेड़ों
की सीमा रेखा छोड़ते हुए ही नक्शा पास करवाया जाये, स्टे ले
लिया है, केस चल रहा है अभी॥"
गायत्री देवी ने स्नेह से मीठी की आँखों में देखा, सोचा सच
कितनी समझदार हो गयी है मीठी... यह बच्ची पर्यावरण का
संरक्षण ही नहीं कर रही है बल्कि हरियाली जो प्रकृति का
अनुपम शृंगार होती उसे भी बचाने के जीवट संघर्ष मेँ जुटी
है। तभी तेज हवा का झोंका आया तो साथ में हवाओं की बौछार
के साथ पीले कनेर के बहुत से फूल गायत्री देवी के इर्द
गिर्द बिखर कर वातावरण को मनमोहक सुगंध से भर गये, तन के
साथ साथ मन को भी सुवासित कर गये। देर तक गायत्री देवी के
कानों में गूँजते रहे यह मधुर स्वर....".आ री कनेरी चिड़िया
...गा री कनेरी चिड़िया........!
१६ जून २०१४ |