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२३. १२. २०१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
राजा अवस्थी, जगदीश पंकज, कविता गुप्ता, डॉ. आशुतोष बाजपेयी, रियाज शाह और सुभाष शर्मा की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- सर्दियों के मौसम की तैयारी में गरम शोरबों की शानदार यात्रा का आनंद- खट्टा तीखा नूडल सूप।

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- पुरानी बोतल से बना सुंदर पात्र

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- सर्कस

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- नई कार्यशाला- ३१ के विषय- नव वर्ष के स्वागत पर रचनाओं का प्रकाशन शुरू हो गया है। टिप्पणी के लिये देखें- विस्तार से...

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें।

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- इस सप्ताह प्रस्तुत है २४ दिसंबर २००६ को प्रकाशित विपिन जैन की कहानी— 'पिंजरे में बंद तोते'।  

वर्ग पहेली-१६५
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों के अंतर्गत नार्वे से
शरद आलोक की कहानी आदर्श एक ढिंढोरा

क्रिसमस के दिन थे। परसों २५ दिसम्बर है। बाजार में बहुत चहल-पहल थी। छोटी-बड़ी सभी दुकानें बन्दनवारों से सजी थीं। आंस्लो नगर का खूबसूरत बाजार कार्ल यूहान्स गाता ऐसे सजा था, जैसे बारावफात का पुराने लखनऊ से अमीनाबाद तक सजा रहता है। दुकानों की खिड़कियाँ जन्माष्टमी की तरह सजी थीं। पूरे वर्ष का कौतूहल मानो इस सप्ताह ही भर गया हो। जगह-जगह पर पीतल और काँसे के उपहार बेचते प्रवासी लोग आसानी से देखे जा सकते थे। सम्पूर्ण स्कैंडिनेविया बर्फ गिरने से उज्जवल होने लगा था। बहुत सर्दी थी। फिर भी चारों ओर गरमा-गरम चहलकदमी थी। यदि क्रिसमस में बर्फ न गिरे तो मानो अशुभ क्रिसमस है। क्रिसमस के साथ जुड़ी लम्बी छुट्टियों का आभास। एक नयी स्फूर्ति, एक नयी उत्सुकता। पूरे स्कैंडिनेविया (नार्वे, स्वीडन, डेनमार्क) में शायद ही कोई ऐसा हो जिसे क्रिसमस के बाद एक सप्ताह की लम्बी छुट्टियों का क्रम विचारक्रम में घूमता। एक तरफ यूल (क्रिसमस) का आकर्षण, दूसरी तरफ आगामी लम्बी छुट्टियों की नीरसता का अनुभव। जिनके घर यहाँ हैं, यहाँ के रहने वाले हैं, वे लोग... आगे-
*

कृष्णनंदन मौर्य का व्यंग्य
बुरे फँसे कवि बनकर
*

प्राण चड्ढा से जानें
संस्कृति के वाहक गाँव के हाट बाजार
*

मनीष मोहन गोरे का आलेख
जीव जन्तु की अनोखी दुनिया
*

पुनर्पाठ में-तेजेन्द्र शर्मा की कलम से-
ब्रिटेन में हिंदी रेडियो के पहले महानायक रवि शर्मा

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पिछले सप्ताह-


रतनचंद जैन का प्रेरक प्रसंग
श्रम और दान
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बालेन्दु शर्मा दाधीच का आलेख
कहीं हैक न हो जाए फेसबुक खाता
*

डॉ. शरद पगारे का निबंध
मालवा की ऐतिहासिक प्रणय कथाएँ
*

पुनर्पाठ में-गीता बंधोपाध्याय का संस्मरण
क्या अधिकार था तुम्हें अमृत

*

साहित्य संगम के अंतर्गत टी.श्रीवल्ली राधिका की
तेलुगु कहानी का हिंदी रूपांतर लहरें जहाँ टूटती हैं

“अर्चना कल ही आ रही है।” भवानी ने बेचैनी के साथ सोचा। उस दिन जागने के बाद उसका इस प्रकार सोचना यह साठवीं बार था। दो वर्ष बाद अपने अभिन्न मित्र से मिलने की बात उसके मन को अशांत कर रही थी।
‘अभिन्न मित्रता!', हाँ, अपनी मित्रता के प्रति उन दोनों की भावना वही है। कालेज में उनकी पहली भेंट, उन दोनों के लिए आज भी एक अविस्मरणीय घटना है। तीन वर्ष का कालेज जीवन, हास्टल, साथ मिलकर देखी गयीं फ़िल्में, पढ़ी हुई पुस्तकें, प्रत्येक घटना, उनकी मित्रता को मज़बूत बनाने में सहायक ही रही। कभी भी... किसी भी परिस्थिति में दोनों की प्रतिक्रियाएँ एक जैसी होती थीं। परिहास में झगड़ने के लिए भी उनके बीच कभी मतभेद नहीं होता था।
“आपके जीवन की अद्भुत घटना कौन सी है?” यदि भवानी से कोई पूछ बैठे तो शायद वह एक ही उत्तर देगी - “ठीक मेरी तरह सोचने वाली मित्र का होना।”
डिग्री एग्ज़ाम्स समाप्त होने की देरी थी कि अर्चना का विवाह हो गया। वे इंजीनियर थे। आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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