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मालवा की
ऐतिहासिक प्रणय कथाएँ
-डॉ. शरद पगारे
वासवदत्ता-उदयन
ईसा पूर्व की
छठी शताब्दी में अवंति राज चंडप्रद्योत की दुहिता सुंदरी
वासवदत्ता और उदयन की प्रेमकथा ने मालवा के इतिहास को रस, रूप
और रंग से ऐसा भरा कि ईसा के बाद छठी शताब्दी के कालिदास ने भी
उसे अपने साहित्य, विशेषकर ‘मेघदूतम्’ में स्थान दिया। उनके
काल में मालवा के ग्राम्य जीवन की चौपालों पर ग्राम के वृद्धजन
वासवदत्ता-उदयन की प्रणय गाथा रस ले-लेकर गाते थे।
प्रियदर्शी: अशोक मौर्य- सुभद्रांगी
मौर्य युग भी प्रणय रस से अछूता न बच सका। ईसा पूर्व की चौथी
सदी की इस प्रेम कहानी का नायक इतिहास का प्रथम महान सम्राट
‘देवानाम् प्रिय’ ‘प्रियदर्शी’ अशोक मौर्य था। उनके काल में
मौर्यों का सुप्रसिद्ध ‘सुंगागेय’ राजप्रासाद अनेक रूपसियों की
रंगरेलियों और भोगविलास का केंद्र बन गया। इन्हीं में एक थी
धर्मा। धर्मा चंपा के एक दीन-हीन ब्राह्मण की अप्रतिम सुंदर
बेटी थी। वह न केवल अनिंद्य सुंदरी थी वरन असाधारण रूप से
प्रतिभा सम्पन्न भी थी। उसके सौन्दर्य और प्रतिभा से प्रभावित
सम्राट बिंदुसार ने उसे ‘अग्रमहिषी’ अर्थात साम्राज्ञी के पद
पर प्रतिष्ठित कर ‘सुभद्रांगी’ का विरुद दिया। अशोक इन्हीं के
पुत्र थे।
सम्राट अशोक-देवी
इनमें नगर के गणमान्य पुरुष और महिलाएँ भी थीं उन्हीं में थीं
विदिशा के प्रसिद्ध श्रेष्ठी की सौंदर्यशालिनी बेटी ‘देवी’। इस
वणिक सुंदरी के अप्रतिम रूप से प्रभावित अशोक उसे अपना दिल दे
बैठा। यह प्रथम दृष्टि का प्यार था। तत्काल उज्जयिनी पहुँचने
की अपेक्षा राज्यपाल अशोक विदिशा ही रुक गया। कुछ दिनों प्रणय
केलि का आनंद उठाने के बाद ‘देवी’ से प्रेम विवाह कर अशोक उसे
उज्जयिनी ले आया। महेन्द्र और संघमित्रा नामक पुत्र और पुत्री
को देवी ने ही जन्म दिया था।
गर्द भिल्ल - साध्वी सरस्वती
महाराज गर्द भिल्ल के काल के बारे में इतिहासकारों में मतभेद
हैं। कुछ उन्हें ईसा पूर्व की दूसरी सदी का मानते हैं तो अन्य
ईसा के बाद की दूसरी शताब्दी का। काल निर्णय के बारे में विवाद
हो सकता है परंतु मालवा की यह प्रेम कहानी इतिहास का निर्विवाद
सत्य है। गुर्जर देश के महाराज वैरी सिंह के पुत्र श्रमण धर्म
स्वीकार कर जैन मुनि बन गये। वे आचार्य कालक कहलाये। उनकी छोटी
बहन राजकुमारी सरस्वती ने भी उनसे प्रेरणा प्राप्त कर वैराग्य
ग्रहण कर लिया। वे साध्वी बन गयीं। सरस्वती रूप, यौवन और
सौंदर्य की स्वामिनी थीं। संयम और ब्रह्मचर्य ने इस रूप राशि
में वृद्धि ही की। धर्म प्रचार हेतु श्रमण संघ सहित आचार्य
कालक और सुंदर साध्वी सरस्वती उज्जयिनी आये। कालकाचार्य की
विद्वत्ता और साध्वी सरस्वती की रूपचर्चा से उज्जयिनी गुंजरित
हो उठी। सरस्वती की सौंदर्य प्रशंसा ने गर्द भिल्ल को गहरे तक
प्रभावित किया। और जब उन्हें प्रत्यक्ष रूप में देखा तो वे उन
पर मोहित ही नहीं हुए वरन मर मिटे। साध्वी सरस्वती के समक्ष
प्रणय निवेदन का दुस्साहस कर डाला। एक सूत्र के अनुसार सरस्वती
भी महाराज गंधर्वसेन के सुदर्शन व्यक्तित्व से प्रभावित थी।
जबकि आचार्य हेमचंद्र सूरी के ‘कालकाचार्य कथानक’ के अनुसार
साध्वी सरस्वती ने महाराज गंधर्वसेन के प्रणय निवेदन को ठुकरा
दिया।
मुंज-मृणालवती
महाराज मुंज मालवा के शासक थे। वे एक कुशल प्रशासक, सेनापति और
न्यायवित ही नहीं, कला-मर्मज्ञ, कवि, साहित्यकार थे। अपनी
राजधानी धार की राजसभा में कलाकारों, लेखकों, दार्शनिकों को
उन्होंने संरक्षण दे रखा था। दक्षिण के चालुक्य राज गांगेय देव
से साम्राज्य विस्तार हेतु मुंज का संघर्ष चलता रहता था। अनेक
बार हराकर गांगेय देव से मुंज ने विदर्भ छीन दिया। दोनों में
स्थायी शत्रुता थी। गांगेय देव को अंतिम रूप से परास्त करने
हेतु मुंज ने हमला किया। शीघ्र ही चालुक्य सेना भाग खड़ी हुई।
प्रधानमंत्री और सेनापति के रोकने के बावजूद मुंज ने मालखेड तक
गांगेय का पीछा किया। फलस्वरूप बंदी बनाया गया। गांगेय देव ने
मुंज को बंदीगृह में डाल दिया। गांगेय देव की बहन राजकुमारी
मृणालवती अद्वितीय सौंदर्य की स्वामिनी थी। वह भाई के शत्रु
मुंज को अपमानित करने बंदीगृह जा पहुंची। मुंज का व्यक्तित्व
भी आकर्षक थ। मृणाल ने मुंज को अपमानित किया, ‘‘धार का मरकट
(बन्दर) चालुक्यों के बंदीगृह की शोभा बन गया है।’’ मृणाल की
अपमानजनक बात को मुंज ने धैर्यपूर्वक लिया। मुंज की बतकही,
प्रतिभा, यश ने मृणाल की आत्मा में प्यार का दीप जला दिया।
बंदीगृह के अँधेरे में कैदी और राजकुमारी का प्यार परवान चढ़ने
लगा। मुंज के प्रधान मंत्री ने अपने स्वामी को भगा ले जाने की
पक्की व्यवस्था की परंतु मुंज अपनी प्रेमिका मृणाल को छोड़ जाने
को तैयार नहीं हुए। गांगेय देव को प्रणय कथा की सूचना मिलते ही
उन्होंने मुंज की हत्या करा दी। प्रणय कथा का मार्मिक अंत
इतिहास की त्रासदी सिद्ध हुआ।
रूपमती - बाज
बहादुर
मांडू रानी रूपमती और बाज बहादुर की अमर कथा प्रेम का प्रतीक
है। सोलहवीं शताब्दी के मुगल इतिहास को मुहब्बत की इस दास्तान
ने रूमानी-रोमांचक स्पर्श प्रदान किया।
निमाड़ अंचल के नर्मदा किनारे के धरमपुरी गूजरी इलाके के
सूबेदार थानसिंह की बेटी रूपमती बेहद हसीन और दिलकश तो थी ही,
वह गीत, संगीत, कविता, नृत्य आदि में भी माहिर थी। मांडू
सुलतान बाज बहादुर भी संगीत का प्रेमी ही नहीं, इतिहासकार अबुल
फजल के ‘अकबरनामा’ एवं निजामुद्दीन अहमद के ‘तबकात-ए-अकबरी’ के
अनुसार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार था। निमाड़ के जंगल में शिकार के
दौरान बाज बहादुर रूपमती के संपर्क में आया। दोनों एक-दूसरे को
दिल दे बैठे। रानी बनकर रूपमती मांडू आ गयी। बाज बहादुर ने
अपनी प्रेमिका के लिए रूपमती महल बनवाया। चूंकि रूपमती माँ
नर्मदा की भक्त थी। अतः मांडू में रेवाकुंड का निर्माण भी
कराया। मालवा गीत, संगीत, कविता और नृत्य के स्वर्ग में डूब
गया। अनेक कलावंत मांडू में एकत्र हुए। महान संगीतकार मियाँ
तानसेन के कारण यदि अकबरी दरबार ध्रुपद गायिकी की राजधानी था
तो बाज बहादुर रूपमती के कारण मांडू ख्याल गायिकी का केंद्र बन
गया। रूपमती ने ‘बाज खानी ख्याल’ का आविष्कार किया। अनेक गीतों
और कविताओं की रचना कर उन पर नृत्य-नाटिकाएँ तैयार कीं।
मालवा की फतह और रूपमती को हासिल करने के लिए सम्राट
अकबर ने अपने दूधबंद भाई आधम खान और पीर मुहम्मद को भेजा।
सारंगपुर के युद्ध में बाज बहादुर हारा और बुरहानपुर भाग गया।
मुगल सेना ने मांडू घेर लिया। आधम खान हसीना रूपमती को अपनी
रखैल बनाना चाहता था। रूपमती ने न केवल उसके प्रस्ताव को
ठुकराया वरन हीरा चाटकर आत्महत्या कर ली।
इस प्रकार
सुख-दुख की अनेक कथाओं से लिखा मालवा का इतिहास अत्यंक रोचक
एवं समृद्ध है जिस पर आधारित साहित्य की रचनाएँ आज भी पाठकों
को रोमांचित करती हैं।
१६
दिसंबर
२०१३ |