छुट्टी
के दिन थे। माँ ने कहा हम लोग एक दिन सर्कस देखने जाएँगे।
"सर्कस क्या होता है?"
मीता ने पूछा
"सरकस एक मजेदार खेल है। बहुत
से लोग खेलते हैं। हम उनको देखते हैं।"
माँ ने बताया।
"अच्छा ?
कौन कौन खेलते हैं ?"
मीता ने पूछा।
"कुछ लड़के, कुछ लड़कियाँ, कुछ
पशु-पक्षी और सरकस में मसखरे भी होते हैं। मसखरे मतलब
जोकर, जो हमें हँसाते भी है।"
माँ ने बताया।
"अच्छा, तो लड़के लड़कियाँ क्या
क्या खेलते हैं?" मीता ने पूछा,
"क्या वे मेरे साथ गुड़िया
खेलेंगे।"
"नहीं नहीं, माँ ने कहा, वे लोग
काफी कठिन खेल खेलते हैं जैसे एक पहिये की सायकिल चलाना,
ऊँचे से कूदना, झूलों पर हाथ छोड़कर कूद जाना फिर एक दूसरे
को पकड़ लेना।"
"अच्छा, हम उनके जादू जैसे खेल
सिर्फ देखते हैं उनके साथ खेलते नहीं है।"
मीता ने बात को समझते हुए कहा, लेकिन वे जादू कैसे करते
हैं?"
माँ ने बताया, "यह जादू
नहीं है, मीतू, लगातार अभ्यास से वे ऐसा कर पाते हैं।"
जब माँ
और मीता सर्कस देखने पहुँचे तब वहाँ गीता और छुटकू भालू
जोकर बनकर पहले से ही सबका मनोरंजन कर रहे थे। वह बच्चों
का सर्कस था जिसमें शहर के स्कूलों के बच्चे भाग ले रहे
थे। मीता को वहाँ दर्शकों और कलाकारों में अपने बहुत से
दोस्त मिले।
- पूर्णिमा वर्मन |