जीव जंतु की
अनोखी दुनिया
-मनीष
मोहन गोरे
विश्व के
विभिन्न जीव-जंतुओं के विचित्र व्यवहार उनके अस्तित्व और जीवन
के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
झींगुर
जंतु जगत के आर्थोपोडा संघ के एक प्राणी झींगुर (क्रिकेट) का
ध्वनिगत व्यवहार काफी लोकप्रिय है। इसकी आवाज केवल रात में ही
गूँजती हुई सुनायी देती है और हमें इसकी आवाज जहाँ से आती हुई
प्रतीत होती है, वास्तव में, यह वहाँ नहीं पाया जाता। अर्थात
'स्थिति भ्रम' पैदा हो जाता है। यह जहाँ बैठा होता है, वहाँ उस
विशेष स्थान का निर्धारण हम अक्सर नहीं कर पाते। विज्ञान की
भाषा में इसे 'वेंट्रिलोकिज्म' कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ
होता है-'पेट बोली' जो एक ऐसी कला होती है जिससे किसी जंतु
द्वारा आवाज से भ्रम पैदा किया जाता है।
वैज्ञानिकों के मतानुसार झींगुर का यह प्राकृतिक स्वभाव उसकी
आत्म-सुरक्षा के लिए अनुकूलित होता है।
चमगादड़
अँधेरे में उड़ता चमगादड़ पक्षियों के समान पंखयुक्त स्तनधारी
प्राणी चमगादड़, जिसका जंतु वैज्ञानिक नाम-'टैरोपस मीडिएस' है,
एक रात्रिचर प्राणी है। रात के अँधेरे में यह अपने शिकार की
तलाश में भटकता है। रात में उड़ते समय चमगादड़ अपने मुख से उच्च
आवृत्ति की पराध्वनिक तरंगें (२००० हर्ट्ज आवृत्तिवाली)
उत्पन्न करता है, जो सामने किसी ठोस वस्तु से परावर्तित होकर
तत्काल चमगादड़ के मस्तिष्क को संदेश प्रेषित करती हैं,
फलस्वरूप चमगादड़ अपनी दिशा बदल देता है। इसी कारण रात के
अँधेरे में चमगादड़ किसी वृक्ष, पहाड़ी या मकान से टकराये बगैर
अपने शिकार की तलाश में उड़ता चला जाता है।
बिलकुल
इसी तरंग पद्धति का इस्तेमाल चमगादड़ कीटों को पकड़ने में करता
है। ये उड़ते हुए कीटों और आसपास की चीजों को भी पहचान जाते हैं
और हवा में ही कीटों को झपट लेते हैं। अँधेरे में उड़ने की जो
क्षमता चमगादड़ों में है, वह दूसरे किसी जंतु में नहीं मिलती।
इसकी इस विचित्रता के कारण वैज्ञानिकों ने इन पर काफी प्रयोग
किये हैं। चमगादड़ों की आँखों को ढककर उन्हें ऐसे कमरे में छोड़ा
गया, जिसकी छत पर रस्सियाँ लटका दी गयीं थीं। उनके लिए
कीट-पतंगों और फलों का भी प्रबंध किया गया था। लेकिन चमगादड़
किसी भी रस्सी से बिना टकराये उसी तेजी के साथ उड़ते रहे जैसे
वे आँखें खुली रहने पर उड़ते हैं और न ही उनके शिकार करने में
कोई फर्क पड़ा। इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि चमगादड़ों को उड़ते
समय आँखों से विशेष मदद नहीं मिलती बल्कि कान और मुँह ही
महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
खतरे और सहयोग
कुछ पशु-पक्षियों में खतरों को पहले से भाँपने की क्षमता भी
पायी जाती है और वे जंगल के अपने दूसरे साथियों को प्रत्याशित
खतरे से सावधान कर देते हैं। यदि कौआ घबराहट में आकर काँव-काँव
करता है तो इस चेतावनी का अर्थ होता है कि पास ही कोई भेड़िया,
लोमड़ी या बाज मंडरा रहा है। कौए द्वारा दी गयी इस चेतावनी से
जंगल में बत्तख, मुरगी, तीतर जैसे छोटे-बड़े पक्षी सतर्क हो
जाते हैं और किसी सुरक्षित स्थान को चले जाते हैं।
मुटरी नामक जंतु की घबरायी हुई-सी चीख को सुनते ही जंगल के सभी
जानवर सावधान होकर अपने छिपने के लिए जगह ढूँढने में लग जाते
हैं, क्योंकि अधिकतर यह जीव किसी मनुष्य को देखकर ही चिल्लाता
है।
रामगंगरा
नामक पक्षी की हलकी 'टिस...टिस' ध्वनि एक चेतावनी होती है,
जिसे सुनकर जंगल के सभी पक्षी अपने-अपने घोंसलों में छिपकर बैठ
जाते हैं क्योंकि वो ये जान जाते हैं कि रामगंगरा ने किसी
शिकारी बाज को देख लिया है।
मुरगी के अहाते में यदि कोई चील आकर मंडराने लगती है तो मुरगा
तुरंत चिल्लाकर खतरे की सूचना देता है, नन्हें चूजे यह आवाजें
सुनते ही तुरंत या तो घास में छिप जाते हैं या अपनी माँ के
पंखों में। इतना ही नहीं यदि किसी मुरगी के अंडों को, जिनमें
से कुछ ही दिनों में चूजे निकलनेवाले हों, यदि मेज पर रखकर
वैसी ही ध्वनि निकाली जाए तो अंडे मेज पर लुढ़कने लगते हैं जो
यह प्रदर्शित करता है कि भ्रूणावस्था से ही बच्चों को खतरे के
संकेतों का ज्ञान रहता है। यही प्रक्रिया आस्ट्रेलिया के
शुतुरमुर्ग व एमू पक्षियों के अंडों में देखी जा सकती है।
कुत्तों में भी मनुष्यों की भाँति परस्पर सहयोग की भावना देखी
जा सकती है। जब कई कुत्ते किसी छोटे जानवर का पीछा करते हुए
उसे बिल में जा छिपने को विवश कर देते हैं तब ये कुत्ते उस बिल
की खुदाई का काम शुरू करते हैं। एक कुत्ता खुदाई करते-करते जब
थककर अलग बैठ जाता है तो एक दूसरा कुत्ता उसकी जगह ले लेता है
और इस प्रकार काम जारी रहता है।
कौओं की पंचायत
आपने
देखा होगा कभी-कभी कई कौए मिलकर एक कौए को घेर लेते हैं और शोर
मचाते हैं। दरअसल उनमें से बीचवाला कौआ अस्वस्थ होता है तथा
अन्य कौए पंचायत लगाकर उसके बारे में विचार-विमर्श करते हैं और
अंत में निर्णय के आधार पर सभी कौए मिलकर उस बीमार कौए को
चोचों के द्वारा आहत करके मार डालते हैं, क्योंकि उनके अनुसार
उस कौए के लिए पीड़ा सहन करना दुष्कर होता है।
डॉल्फिन
डॉल्फिन समुद्रों में पायी जाती है, फिर भी यह एक मछली न होकर
एक स्तनधारी प्राणी है। यह व्हेल परिवार की सदस्य है। डॉल्फिन
बहुत ही भावुक और बुद्धिमान प्राणी होते हैं। ये आपस में ध्वनि
संप्रेषण के लिए विभिन्न तीस ध्वनियों का इस्तेमाल करती हैं
जैसे- सीटी बजाना, चहचहाना, खिलखिलाना, गुर्राना आदि। यदि आप
डॉल्फिन के सामने सीटी बजाएँगे तो वह भी सीटी बजाने लगेगी। यदि
आप हँसेंगे तो वह भी हँसने लगेगी। ये सैकड़ों की संख्या में एक
साथ दल बनाकर रहती हैं और यदि कोई डॉल्फिन मुसीबत में होती है
तो दल की अन्य सदस्य हमेशा उसकी सहायता करती हैं। जब कोई
डॉल्फिन बीमार या घायल हो जाती है तो ये जानती हैं कि उसे
जीवित रखने के लिए उन्हें क्या करना है? वे उसको सहारा देकर
साँस लेने के लिए पानी की सतह तक लाती हैं और उस समय तक उसकी
सेवा करती हैं, जब तक वह अपनी मदद स्वयं करने योग्य नहीं हो
जाती।
झाऊ चूहे के काँटे
झाऊ
चूहे भारत के अतिरिक्त यूरोप और एशिया के अन्य देशों में भी
पाये जाते हैं। ये स्तनधारी वर्ग के 'यूथीरिया' उपवर्ग के
प्राणी होते हैं। झाऊचूहा अपने शत्रुओं से बचने के लिए अपने
शरीर के नुकीले काँटों का सहारा लेता है। खतरे का आभास होते ही
यह अपने काँटों को खड़ा कर लेता है और गोल गेंद-जैसा बनकर शरीर
के सारे कोमल अंगों को पेट के नीचे छिपा लेता है। ऐसी हालत में
यदि शत्रु उस पर हमला करता है तो नुकीले काँटों से जख्मी हो
जाता है और झाऊ चूहे को कोई हानि नहीं होती।
गैंडे का कीचड़ प्रेम
जमीन
पर रहने वाले बड़े डील-डौल के जंतुओं में हाथी के बाद विशालकाय
गैंडे का ही नंबर आता है। इस विचित्र जंतु की नाक के ऊपर एक या
दो मजबूत सींग होते हैं। ये सींग वास्तव में, नाक पर उगे मोटे
बाल ही होते हैं जो टूट जाने पर पुनः उग आते हैं। गैंडे के
संबंध में एक अजीबोगरीब तथ्य लोकप्रिय है। ये भारी-भरकम शरीर
वाले प्राणी प्रायः ऐसी जगह नहाना पसंद करते हैं, जहाँ कीचड़ भी
हो। जब यह पानी से बाहर आता है तो इसका पूरा शरीर कीचड़ से पुता
होता है। शरीर पर लगी यह कीचड़ की परत इसको मच्छरों के काटने से
बचाती है और शरीर को काफी समय तक ठंडा भी रखती है।
२३ दिसंबर २०१३ |