इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
ओम नीरव, नीरज गोस्वामी, अजय ठाकुर, मनु मनस्वी और सुमन कुमार
घई की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर
रही हैं गर्मी के मौसम में लौकी के व्यंजनों की विशेष शृंखला।
इस अंक में प्रस्तुत है-
लौकी की सब्जी। |
रूप-पुराना-रंग
नया-
शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें
रूप बदलकर-
खाली दीवार का सौंदर्य। |
सुनो कहानी- छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
खेल बुलबुलों का। |
- रचना और मनोरंजन में |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला- २७ मैं पेड़ नीम का छायावाला विषय पर
नवगीतों का प्रकाशन जारी है। टिप्पणियों के लिये कृपया
यहाँ जाएँ। |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें। |
लोकप्रिय
कहानियों
के
अंतर्गत- प्रस्तुत है १ मई २००६
को प्रकाशित मुशर्रफ़ आलम जौकी
की कहानी— 'धूप
के मुसाफ़िर'।
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वर्ग पहेली-१३५
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
|
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य
एवं
संस्कृति
में-
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साहित्य संगम में सुमतीन्द्र नाडिग की
कन्नड़ कहानी का हिन्दी रूपान्तर-
रेल दुर्घटना
यह कहानी
मुझे चौहत्तर वर्षीय धर्मय्याजी ने सुनाई थी। यह घटना १९४० में
किसी समय घटी थी। उन दिनों मैंने अपना कैलाश शहर छोड़कर बंगलौर
में एक दुकान खोली थी। मेरी समझ में नहीं आता कि मेरे पिता ने
मेरा नाम धर्मय्या क्यों रखा, मैं नहीं समझता कि मैंने किसी के
साथ कभी कोई अन्याय किया हो। शायद मेरे अमीर न होने का कारण हो
सकता है। लेकिन मुझे कभी खाने-पीने, कपड़े-लत्ते और बच्चों को
पढ़ाने-लिखाने में दिक्कत नहीं हुई। इस सब में भगवान मेरा
मददगार रहा है। कई बार मैं सोचता हूँ कि क्या सचमुच भगवान है?
मैं पूजा-पाठ जरूर करता हूँ। जानता हूँ कि ज़िन्दगी में
रुपए-पैसे का बहुत महत्व है। लेकिन फिर भी मैंने न तो ज़्यादा
लाभ कमाने की कोशिश की और न ही एकाएक अमीर बनने की। यह सब मैं
इसलिए बता रहा हूँ कि उन दिनों मेरा एक व्यापारी मित्र था। जब
मैंने उसे मात्र एक गलती के लिए तकलीफ पाते देखा तो मुझे लगा
कि ऐसी कोई शक्ति जरूर है जो हमारे कर्मों को तौलकर सही और ग़लत
की पहचान करती है। अनुभव होता है ग़लत व्यक्ति को एक न एक दिन
सज़ा जरूर मिलती है। ...आगे-
*
अशोक गौतम का व्यंग्य
जुगाड़ कर
*
मनोहर पुरी की कलम से श्रद्धांजलि
हिन्दी पत्रकारिता के पुरोधा बालेश्वर अग्रवाल
*
गोवर्धन यादव का आलेख
तितली तरह तरह की
*
पुनर्पाठ में कला और कलाकार के
अंतर्गत- लक्ष्मण पै से
परिचय
1 |
अभिव्यक्ति समूह
की निःशुल्क सदस्यता लें। |
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पिछले
सप्ताह-
नीम विशेषांक के अंतर्गत |
१
सीमा
अग्रवाल की
लघुकथा-
अलग कमरा
*
नरेन्द्र पुंडरीक का संस्मरण
नीम नदी और मैं
*
डॉ. राकेश कुमार प्रजापति से
प्रकृति और पर्यावरण में-
बहूपयोगी नीम
*
पुनर्पाठ
में राजेंद्र प्रसाद सिंह से जानें
भोजपुरी में नीम, आम और जामुन
*
समकालीन
कहानियों में भारत से
श्रीकान्त मिश्र कान्त
की कहानी अस्तित्व
इस बार बारिश खूब जम के हुई थी।
सारे गाँव में खूब हलचल रही, पूरे मौसम भर..। बरसात का मौसम कब
खत्म हुआ पता ही नहीं चला। लोगों के घरों में पुरानी रजाइयाँ
आँगन में पड़ी खाट पर धूप के लिये फैलने लगीं। नये पुराने
स्वेटरों की बुनावट और मरम्मत के लिये जानकार बहू बेटियों की
तलाश उन दिनों जोरों पर होती। ऐसे में हम सब अपनी बाल मण्डली
के साथ खाट पर फैली रजाइयों में नमी की चिर परिचित गन्ध सूँघते
हुए लुका छिपी खेला करते। आसमान में उड़ते हुए बादलों और नयी
पुरानी रुई समेटती हुई अपनी दादी के सामने धूप में चटाई पर
फैली रुई के सफेद गालों में न जाने क्या क्या साम्य ढूँढा
करते। मेरे आँगन को बाहर के अहाते से अलग करने वाली कच्ची
दीवार इस बार बरसात के मौसम में ढह गई थी। मौसम की भेंट चढ़
चुकी दीवार पर फिसलते हुये हम खूब खेला करते। अधगिरी दीवार की
तुलना मैं पहाड़ की चोटियों से करते हुये अक्सर खुद को
पर्वतारोही समझता। कई बार मैं भगवान से प्रार्थना करता कि हे
भगवान..! इस दीवार को...आगे- |
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