इस सप्ताह- |
अनुभूति में-
भोलानाथ, खान हसनैन आकिब, शेषनाथ प्रसाद, प्रो. विश्वंभर शुक्ल और
सौमित्र सक्सेना की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- होली गई और नवरात्र आ गए। इस अवसर पर शुचि
प्रस्तुत कर रही हैं फलाहारी व्यंजनों की शृंखला में-
फलाहारी थालीपीठ। |
रूप-पुराना-रंग
नया-
शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर
फिर से सहेजें रूप बदलकर-
फिर-से नए जूते के फीते। |
सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी
कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी-
वाटर पार्क। |
- रचना और मनोरंजन में |
नवगीत की पाठशाला में-
अभी आराम का समय है। अगली कार्यशाला के अगले विषय की घोषणा
होने की प्रतीक्षा है। |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें |
लोकप्रिय
कहानियों
के
अंतर्गत-
१ जुलाई २००६ को प्रकाशित
पद्मा सचदेव की डोगरी कहानी का हिन्दी रूपांतर
फुटबाल।
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वर्ग पहेली-१२९
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
|
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य
एवं
संस्कृति
में-
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समकालीन कहानियों में सूरीनाम से
भावना सक्सैना
की
कहानी-
समानांतर
बरसों से खुल कर हँसा नहीं हूँ मैं, यदा कदा कर्तव्य स्वरूप
मुस्कुराहट ज़रूर आ जाती है। कहा जाता है मैं अवसाद का शिकार
हूँ। यूरोप के एक बड़े से शहर के अनेक डॉक्टरों ने मेरा हर
संभाव इलाज किया किन्तु मेरी उदासी की घटाओं पर कोई सुनहरा
किनारा दिखाई नहीं दिया। मैं अपना हृदय किसी के समक्ष खोल नहीं
सकता, सभ्य समाज का प्राणी हूँ। किन्तु आज के समाचार-पत्र में
छपे एक आलेख ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया – आलेख था – "फिर भी
दिल है हिन्दुस्तानी"। हजारों मील दूर एक देश के वासियों की
गाथा जिन्होंने अपनी संस्कृति अपनी भाषा को जीवित रखा। उनका
दिल हिन्दुस्तानी है, हाँ बस दिल ही तो! ऐसे दिल से मैं टकरा
गया था बरसों पहले... विश्वविद्यालय में दूर देश से आई परी सी
एक लड़की... कहती थी अमरीका से, पर पहनती थी साड़ी! जब हमारी
हमउम्र लड़कियाँ चौड़े पाँयचों वाली बेलबौटम और कसे हुए ब्लाउज,
बड़े फूलों वाली मैक्सी व काफ्तान के साथ नव प्रयोग कर रही थी,
सादगी की उस प्रतिमा पर मैं दिल हार गया था। ...आगे-
*
सुरेन्द्र चतुर्वेदी का व्यंग्य
हमारा पप्पू पास क्यों नहीं होता
*
सामयिकी में लीना मेंहेंदले के विचार
हमारा गो-धन और सरकारी
नीतियाँ
*
नलिन चौहान का नगरनामा
कहानी
राजधानी (दिल्ली) की
*
प्रकृति के अंतर्गत प्रभात कुमार से जानें
सागर की संतानें- अल नीना
और अल नीनो
1 |
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पिछले
सप्ताह- |
१
संजीव सलिल की लघुकथा
मुखौटे
*
शंभु शरण मंडल का आलेख
कविवर गोपाल सिंह
नेपाली
*
प्रकृति और पर्यावरण में पी
सुधाराव का आलेख
प्यासी धरती प्यासा मानुस पानी पानी रे
*
पुनर्पाठ में चंदन दास के साथ देखें-
बूँदों में
खिलता बूँदी का रूप
*
समकालीन कहानियों में भारत से
स्नेहलता की
कहानी- वापसी
साढ़े आठ बजे
सुबह गाड़ी छूटने का टाइम था। गाड़ी सही समय पर छूटी। पुष्पक
एक्सप्रेस में चाहे जिस मौसम में जाओ भीड़ होती है। पता नहीं
लोग कहाँ-कहाँ की सैर करने करते हैं। मैं भी जैसे-तैसे अपनी
सीट पर पहुँची। सैकन्ड ए.सी. में केबिन की सीट थी। मेरी और
मेरे पतिदेव की नीचे-ऊपर की बर्थ थी।
हम मुम्बई घूमने आए थे। मुंबई महानगरी का नाम आते ही एक भागते
हुए शहर की तस्वीर मन में उभरती है, मुम्बई ऐसा शहर है जहाँ बस
सब लोग चलते रहते है एक निश्चित गति से। हर किसी की अपनी जीवन
शैली है और वह उसी में मगन है। आँखों में ऊँची उड़ान के सपने
हैं पर कदमों तले बमुश्किल जमीन हासिल होती है। हिन्दुस्तान के
चाहे किसी भी शहर से कोई क्यों न आया हो जल्दी ही वह वहाँ के
रंग में रँग जाता है। मैंने भी छह दिन मुम्बई में बिताए और
काफी अच्छे बिताए। घूमने के लिहाज से आए थे और घूमे भी खूब।
अच्छी लगी मुम्बई, अब वापस जा रहे हैं। ...
आगे- |
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