इस सप्ताह-
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अनुभूति
में-
डॉ. अजय पाठक, सुवर्णा
दीक्षित, विनोद तिवारी, विजय सिंह नाहटा और रूपहंस हबीब
की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हर मौसम में स्वास्थ्य वर्धक, मध्य-पूर्व के
लोकप्रिय सलादों की शृंखला में-
दही वाला सलाद जिसे
स्थानीय भाषा में 'सलत बि लबान' कहते हैं। |
बचपन की
आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में
संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु-
बालों की देखभाल।
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सुनो कहानी- छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के पाक्षिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
चित्रकला। |
- रचना और मनोरंजन में |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-२३ के नवगीतों का प्रकाशन
पूरा हो चुका है। जल्दी ही इसकी समीक्षा के बाद नए विषय
की घोषणा की जाएगी।
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लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत-
प्रस्तुत है पुराने अंकों से
२४ फरवरी २००३ को प्रकाशित भारत से डॉ. नरेश की कहानी—"पराजित
क्षण"।
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वर्ग पहेली-१०१
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
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सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
अपनी प्रतिक्रिया
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पढ़ें |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
१
समकालीन कहानियों में यू.के. से
तेजेन्द्र शर्मा की कहानी-
सपने मरते नहीं
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डिलीवरी की
दर्द सहते हुए भी इला बस एक आवाज़ सुनना चाहती थी – अपने पहले
बच्चे के रोने की आवाज़ !
लगभग अर्धमूर्छित इला ने ध्यान लगा कर सुनने का प्रयास भी
किया। उसकी चेतना उसका साथ छोड़ती महसूस हो रही थी। कमरे में
रौशनी थी मगर उसके लिये बस अंधेरा ही अंधेरा था।... आवाज़ हलक़
से बाहर नहीं आ पा रही थी। पहले से जानती थी कि पुत्र ही होने
वाला है... अल्ट्रासाउण्ड करते हुए डॉक्टर ने बता दिया था। आमतौर पर लंदन के
डॉक्टर पैदा होने वाले शिशु का सेक्स बताते नहीं हैं। इस समय
इला के मन में बस एक ही कामना थी कि वह अपने पुत्र के रोने की
आवाज़ सुन सके। अपनी पहली संतान की आवाज़ सुनने की चाह कैसी हो
सकती है... ! उसके हाथ का दबाव नीलेश के हाथ पर ढीला होता जा
रहा है। प्रसव की पीड़ा के समय उसने नीलेश के हाथ को कस कर
पकड़ लिया था। उसके नाख़ून लगभग नीलेश की हथेली के पिछले भाग
में धंस गये थे।
आगे-
*
भगवान वैद्य प्रखर की
लघुकथा- ताली
*
कुमुद शर्मा का आलेख
पीतांबर बड़थ्वाल
*
गोवर्धन यादव के साथ पर्यटन में
धरती पर अजूबा
पातालकोट
*
पुनर्पाठ- जानकी प्रसाद शर्मा का
संस्मरण- मजरूह सुल्तानपुरी |
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पिछले-सप्ताह- |
१
सुधीर ओखदे का व्यंग्य
खूबसूरत दुर्घटना
*
सामयिकी में प्रभु जोशी का आलेख
उनकी नजरों से देखेंगे अपना
सच
*
रंगमंच में मोतीलाल क्यूम से
जानें
कश्मीर- नाट्य
लेखन व मंचन
*
पुनर्पाठ- गुरमीत बेदी के साथ
पर्यटन में- भंगाहल का
तिलिस्मी संसार
*
समकालीन कहानियों में सूरीनाम से
भावना सक्सैना की कहानी-
खुले सिरों के जोड़
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थिर जल पर
बारिश की बूंदें गिरती हैं तो बस सतह को ही हिलाती हैं, अंतर
जल शांत रहता है। लेकिन टीन की छत पर टप-टप करती ये बूंदें तो
अंतर को बींध रहीं हैं और फिर एकत्र होकर परनाले से जो धार
बनकर नीचे गिर रही हैं तो बहाये ले जा रही हैं उसे अतीत की
ओर.... वह अतीत की ओर रुख करना नहीं
चाहती , वह आगे बढ़ना चाहती है, अतीत की परछाइयों से परे...
तो क्या आगे बढ़ने के लिए पंद्रह बरस बाद इस शहर में फिर
लौट आई है? बारिश के इस शहर में, जहाँ पंद्रह बरस पहले यहाँ की
बारिश ने उसे हर दिन अलग
अलग तरह से भिगोया, कभी तन को कभी मन को, रिश्तों में भिगोया,
दर्द में डुबोया। नहीं वह यहाँ स्वयं नहीं आई नियति उसे यहाँ
ले आई है, यदि यहाँ आने के प्रस्ताव को अस्वीकार करती तो अपने
प्रगतिवादी विचारों के आगे, स्वयं अपने आगे छोटी हो जाती। समय
के साथ उसकी आंतरिक पीड़ा कम तो...
आगे- |
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