इस सप्ताह-
वर्षा ऋतु विशेषांक में |
अनुभूति
में-
विभिन्न रचनाकारों की विभिन्न विधाओं में लिखी गई वर्षा की
बौछारों से भीगी मौसमी रचनाएँ। |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
१
समकालीन कहानियों में भारत से
शुभ्रा उपाध्याय की कहानी
बारिश
आसमान काले-काले बादलों से भर
गया। ठंडी हवाओं ने तन मन को तरावट दी। उसका बेहद उकताया हुआ
मन जैसे नई ऊर्जा से उमग गया। अभी-अभी आग की बारिश करता मौसम
बिल्कुल बदल गया।
जैसे किसी ने जादू की छड़ी घुमा दी हो। कितनी देर से उसकी खीझ अपने से
होती हुई मौसम के वाहियात रवैये पर आकर अटक गई थी, किन्तु यहाँ
तो पल में सबकुछ छू मंतर हो गया। हवाएँ देह को सहलाती
धीरे-धीरे बह रही थीं...
बादलों की नमीं आँखों के सहारे मन की गहराइयों में उतर रही
थी...
और उसका मन बूँद-बूँद भीगता क्रमश: गीली मिट्टी में तब्दील
होता जा रहा था। उसने एक लम्बी साँस ली। आँखें
बंद कर। कुछ पल अपनी अनुभूतियों में समेट कर ऊपर देखा। बादल न
जाने किस देश दौड़े जा रहे थे। फिर भी वे इतने बेफिक्र भी न थे
कि मिलने वाले जलद खण्डों से खैरियत भी न पूछ सकें। उसने
स्पष्ट देखा- दो मेघदूतों को आपस में कहते-सुनते और रुककर
बतियाते। ...
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शरद तैलंग का व्यंग्य
पिया तू अब
तो आजा
*
डॉ. अश्विनी कुमार विष्णु की रचना-
छायावादी काव्य में वर्षा ऋतु
की उपस्थिति
*
उर्मिला शुक्ला का आलेख
भक्ति काल में वर्षा ऋतु
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पुनर्पाठ में प्रभात कुमार से जानकारी
मानसून प्रकृति का जीवन संगीत |
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पिछले सप्ताह-
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१
श्रीकांत मिश्र कांत की लघुकथा
सुरुचि और
सुसृष्टा
*
डॉ सरस्वती माथुर से पर्व परिचय-
नागों के सम्मान का पर्व
नागपंचमी
*
स्वाद और स्वास्थ्य में जानें
अच्छे स्वास्थ्य का आधार अंकुरित आहार
*
पुनर्पाठ में विनोद भारद्वाज का आलेख
महिमा मोनालीसा और लूव्र
संग्रहालय की
*
समकालीन कहानियों में भारत से
किरन राजपुरोहित नितिला की कहानी
छँटा कोहरा
‘‘कॉलेज
से आते ही माँ ने जैसे ही खबर दी कि नीति आई हुई है तो जैसे
मुझे तो पर ही लग गए। सीधी तुझ से मिलने चली आई...और बता न
कैसी है तू....सब लोग कैसे हैं...’’ चहकते हुए अभिधा ने बोलना
शुरु किया लेकिन बात पूरी न हुई उससे पहले ही उसे ये एहसास भी
हो गया कि मेरे चेहरे पर वो खुशी नहीं प्रकट हुई जो कि उसे
देखने पर होती थी । वो भी एकाएक बुझ सी गई। एकटक देखते हुए
सोचने लगी कि क्या बात है?
‘‘नीति क्या हुआ? इन आठ महीनों में ही तूने क्या हालत बना ली।
नई शादीशुदा लड़कियाँ भला ऐसे मुरझाती कब है? उनकी खुशी तो
सँभाले नहीं सँभलती है। तुझे क्या हुआ बता न! मेरा दिल बैठा जा
रहा है सब ठीक तो है ना।’’
अभिधा ने मेरा हाथ पकड़
गहरे अपनत्व से अपनी आँखों में मेरी पीड़ा लेने की कोशिश की...
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