|   | टीन की छत पर पहले एक छितराई-छितराई-सी आवाज़ हुई, जैसे किसी शैतान बच्चे ने 
                      कंकरियाँ उछाल दी हों एक क्षण एक बोझिल सन्नाटा - और फिर 
                      तरड़-तरड़, एक झटके के साथ बौछार खुल कर बरस पड़ी। मारिया 
                      चौंक कर उठ बैठी। अभ्यस्त हाथों ने तकिये के नीचे से चश्मा 
                      निकाल कर चढ़ा लिया और अपनी चुंधियाई आँखें मिचमिचाती, कुछ 
                      देर वह खिड़की के परे पड़ती बूँदों को ताकती रही। मौसम की पहली बरसात थी। एक 
                      गुनगुनी गर्मी लिए हुए ज़मीन का सोंधापन उठा और कमरे में भर 
                      गया। धारों की चमकीली निरंतरता में बीहड़ हवा आड़े-तिरछे 
                      'पैटर्न' बनाए जा रही थी! एक हल्की बौछार खिड़की की मुंडेर 
                      को भिगो गई टप-टप टप-टप कोने की टूटी नाली से चमकीली बूँदें 
                      काँप-काँप कर गिर रहीं थीं।  "अरी कम्बख्त उठ, देख तो 
                      कितनी प्यारी बरसात हो रही है।" - मारिया ने बगल की पलंग पर 
                      बेखबर सोती सोनिया का कम्बल खींचा।"चुप भी कर मारी - " उनींदी झिड़की के साथ सोनिया ने करवट 
                      बदल ली।
 मारी खिसियाई-सी कुछ देर नाखून कुतरती रही, फिर हाथ बढ़ाकर, 
                      कुर्सी से अपना काला 'हाउसकोट' उठा लिया और कमर का फ़ीता 
                      कसती, बाहर निकल आई। ऐन सीढ़ियों के पास छत फिर चूने लगी थी 
                      - "अं हं, यह घर भी कोई घर है! टपड़ा कहीं का!" वह बाथरूम से 
                      चिलमची लाने ममा के कमरे में घुस गई।
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