इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
सुरेन्द्र कुमार, ओमप्रकाश नदीम, कामिनी कामायनी, ज्योत्सना
शर्मा
और डॉ. भूतनाथ तिवारी की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- अंतर्जाल पर सबसे लोकप्रिय भारतीय
पाक-विशेषज्ञ शेफ-शुचि के रसोईघर से राजस्थानी व्यंजनों की
शृंखला
में- चूरमा। |
बचपन की
आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में
संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु-
मनपसंद कम्बल या खिलौना।
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बागबानी में-
बगीचे की देखभाल के लिये टीम अभिव्यक्ति के अनुभवजन्य अनमोल
सुझाव- इस अंक में-
सब्जियों का सूप। |
वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की
जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से-
१
जुलाई से १५ जुलाई २०१२ तक का भविष्यफल।
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- रचना और मनोरंजन में |
नवगीत की पाठशाला में-
आशा है कि कार्यशाला-२२ -
'गर्मी के दिन'
के लिये आमंत्रित नवगीतों पर समीक्षा इस सप्ताह
प्रकाशित हो जाएगी।
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साहित्य समाचार में-
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों,
सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें |
लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत-
प्रस्तुत है- १६ जुलाई २००४
को प्रकाशित भारत से संतोष गोयल की कहानी-
एक और कुआनो।
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वर्ग पहेली-०८८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
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सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
१
समकालीन कहानियों में संयुक्त भारत से
आभा सक्सेना की कहानी
अनुत्तरित प्रश्न
यों तो वे थे
मेरे दूर के रिश्ते के मामा ही पर, मेरी माँ ने ही उन्हें
पढ़ाया लिखाया या फिर यों कह लो उनकी सारी परवरिश ही मेरे
माँ-बाबूजी ने ही की थी। उसके बाद जब मेरे मामा विवाह योग्य
हुये तो उनका विवाह भी मेरे घर में ही हुआ। इस तरह मेरे
मामा-मामी ने मुझे इतना प्यार दिया कि वे लोग मुझे सगे
मामा-मामी जैसे ही लगने लगे। मेरी मामी बहुत ही सुन्दर थीं।
शायद थोड़ी बहुत पढ़ी लिखी भी। उनका सर्वश्रेष्ठ गुण यह था कि
उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान खिली रहती थी। कोई भी उन्हें डाँट
लेता फिर भी वह हमेशा मुस्करा कर ही सबको खुश कर लिया करतीं।
उनके विवाह के समय मेरी उम्र बहुत छोटी थी। बस इतनी कि मैं हर
समय शैतानियाँ करती इधर से उधर फुदकती रहती। घर में कोई भी
शादी ब्याह का माहौल होता मामी ढोलक-हारमोनियम लेकर बैठ जातीं
और तरह-तरह के बन्ने-बन्नियां गा-गा कर घर में एक शादी का सा
माहौल बना देतीं। उन्हें होली-सावन के गीत सुर लय ताल के साथ
याद थे।
विस्तार से पढ़ें
*
यशवंत कोठारी का व्यंग्य
मानसून, मच्छर, मलेरिया और मैं
*
सुरेश नौटियाल का आलेख
रियो+२० सम्मेलन के बाद
*
कुमार रवीन्द्र का संस्मरण
'गीत-लिखा-प्रीत-लिखा'-'पुलकित-मन'-भाई-भारतभूषण
*
पुनर्पाठ में अनिल विश्वास से बातचीत
आज का संगीत दैहिक हो गया है |
अभिव्यक्ति समूह
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पिछले सप्ताह-
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१
आनंदी रावत का प्रेरक प्रसंग
सत्कार और तिरस्कार
*
डॉ. जगदीश व्योम का आलेख
नवगीत में लोकतत्व की उपस्थिति
*
सुबोध नंदन के साथ पर्यटन
महातीर्थ गया
*
पुनर्पाठ में कला और कलाकार के अंतर्गत
जतीन दास से परिचय
*
समकालीन कहानियों में संयुक्त अरब इमारात से
पूर्णिमा वर्मन की कहानी
उड़ान
अल्बर्ट अबेला से कॉफी लेकर
जब साक्षी क्लास में पहुँची तब पहले ग्रुप के प्रेज़ेंटेशन का
अंत होने को था। यानी कॉफ़ी आराम से ख़त्म की जा सकती थी। मैम
आना गवासा की ओर हल्की सी गुड मार्निंग उड़ाकर वह अपने
व्याख्यान को मन ही मन दोहराने लगी। सामने वाले दूसरे छोटे
ऑडिटोरियम में सहर मसूद अपने लैपटॉप को प्रोजेक्टर से जोड़
प्रेजेंटेशन की तैयारी में लग चुका था। साक्षी को देख उसने
राहत की साँस ली।
“सब कुछ ठीक है ना?” साक्षी ने पूछा।
“अकीद।“ सहर मसूद ने थम्सअप वाली मुद्रा बनाई।
मैडम आना पहले वाले प्रेज़ेंटेशन के बाद पाँच मिनट के लिए अपने
ऑफ़िस में जाएँगी। उसके बाद शुरू होगा साक्षी और मसूद का
टेस्ट।
टेस्ट बढ़िया रहा। प्रेजेंटेशन में नए जोड़े गए एस.वी.जी.
ग्राफ़िक्स ज़बरदस्त थे। रातों रात मसूद ने इन्हें फ्रेंच
लाइब्रेरी से...
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