इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
1
होली के अवसर पर विभिन्न
विधाओं में अनेक रनाकारों की की ढेर सी फागुनी रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- त्योहारों के अवसर
के लिये तैयार की गई
मिठाइयों व नमकीनों की सरल व्यंजन विधियाँ विशेष रूप से
होली विशेषांक के लिये। |
बचपन की
आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में
संलग्न इला गौतम से जानें एक साल के शिशु में
अचानक डर।
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बागबानी में-
फूलों के
रंग
अगर घर के बगीचे से पर्याप्त फूल निकलते हैं,
जिनमें गुलाब और गेंदे भी हैं तो उनसे इस होली के लिये रंग
... |
वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की
जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से-
१ मार्च से
१५ मार्च २०१२ तक का भविष्यफल।
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- रचना और मनोरंजन में |
नवगीत की पाठशाला में-
समीक्षा में देर के कारण
कार्यशाला-२१ के विषय की घोषणा कर रहे हैं। समीक्षा मिलते ही
प्रकाशित कर देंगे। विस्तार से देखें- |
साहित्य समाचार में-
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों,
सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें |
लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत-
प्रस्तुत है-
१७ मार्च २००८
को प्रकाशित, भारत से
राजीव तनेजा की कहानी—
आसमान से गिरा।
|
वर्ग पहेली-०७१
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
|
सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- होली के अवसर पर |
1
समकालीन कहानियों में भारत
से
शीला इंद्र की कहानी-
मिठाई सिठाई
इतनी छोटी-सी तो हूँ मैं। मैं क्या
कहानी-किस्सा कुछ कह पाती हूँ? पर
बात यह हुई कि इस बार होली पर हमारी नई-नई चाची, जिनकी अभी चार
महीने पहले ही शादी हुई है, हमारे यहाँ आने वाली थीं। पर शायद
यह भी कहने की कोई बात नहीं है। मुझे जहाँ तक मालूम है शुरु
में सभी बहुएँ जब मायके से आती हैं, तो थोड़ी-बहुत मिठाई साथ
लाती ही हैं। पिंकी की भाभी दस किलो मोतीचूर के लड्डू लाई थीं।
लाईं तो वह दो-ढाई किलो गुलाबजामुन भी थीं। पर पिंकी मुझे बता
रही थी कि उसकी अम्मा ने सारी गुलाबजामुन छिपा ली थीं, किसी को
भी बताया नहीं। और पाँचू की मामी जब आई थीं, वह भी अपनी माँ के
घर से टोकरों मिठाई लाई थीं। उसकी ननिहाल के शहर के घर-घर में
इतनी मिठाई बाँटी गई कि लोग मिठाई के नाम से भी ऊबने लगे।
जब कभी भी मिठाइयों की बात चलती है, तो पाँचू हम लोगों को अपनी
मामी के साथ आई एक-एक मिठाई की बातें ऐसे सुनाता है कि हमारे
सबके मुँह में पानी भर कर जाता।
विस्तार
से पढ़ें...
*
पीयूष पांडेय का व्यंग्य
क्यों न मना सका गब्बर होली
*
सुधा अरोड़ा का संस्मरण
होली की वह दोपहर- जब मैं हवा थी
*
अनुराग शुक्ला व योगेंद्र ठाकुर से जानें
बस्तर और छत्तीसगढ़ की होली
*
पुनर्पाठ में ब्रजेशकुमार शुक्ल
का आलेख- होली खेलें
रघुवीरा |
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पिछले सप्ताह-
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1
सुबोध
कुमार श्रीवास्तव का व्यंग्य
गणेशीलाल का गमछा प्रेम
*
प्रभाकर श्रोत्रिय से जानें
साहित्य के प्रश्न
*
सुषम बेदी की कलम से
जापान का हिंदी संसार
*
पुनर्पाठ में शारदा पाठक का आलेख
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
*
समकालीन कहानियों में भारत
से
दीपक शर्मा की कहानी-
मिर्च का
दाना
हरिगुण को मैंने फिर देखा। रश्मि
के दाह-संस्कार के अन्तर्गत जैसे ही मैंने मुखाग्नि दी, उसकी
झलक मेरे सामने टपकी और लोप हो ली। पिछले पैंतीस वर्षों से
उसकी यह टपका-टपकी जारी रही थी। बिना चेतावनी दिए किसी भी भीड़
में, किसी भी सिनेमा हॉल में, रेलवे स्टेशन के किसी भी
प्लेटफ़ार्म पर या फिर हवाई जहाज के किसी भी अड्डे पर, बल्कि
सर्वत्र ही, वह मेरे सामने प्रकट हो जाता। अनिश्चित लोपी-
बिन्दु पर काफ़ूर होने के लिये।
अवसर मिलते ही मैंने आलोक को जा पकड़ा, “हरिगुण को सूचना तुमने
दी थी?”
“हरिगुण कौन?” आलोक ने अपने कंधे उचकाए, मेरे साथ बात करने में
उसकी दिलचस्पी शुरू से ही न के बराबर रही है।
‘‘तुम्हारे कस्बापुर में रहता है। रश्मि ने मुझे उससे मिलवाया
था। उधर अमृतसर में।”
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