इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
देवेन्द्र कुमार, रोहित
कुमार 'हैप्पी',
विनीता जोशी, डॉ. जगदीश व्योम और सचित्र हाइकु महोत्सव की
ढेर-सी रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- सर्दियों के मौसम में पराठों के क्या कहने ! १५ व्यंजनों की स्वादिष्ट
शृंखला- भरवाँ पराठों में इस सप्ताह प्रस्तुत हैं-
टोफू के पराठे।
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बचपन की
आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में
संलग्न इला गौतम से जानें यदि शिशु एक साल का है-
शिशु के साथ यात्रा।
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बागबानी में-
सलीके से रखा जाय तो कुछ भी बेकार नहीं
होता- एक पुराना बर्तन, चौकी, तिपाई या गमला जो गंदा लगता हो
या उपयोग में नहीं आ रहा... |
वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की
जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से-
१ फरवरी से
१५ फरवरी २०१२ तक का भविष्यफल।
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- रचना और मनोरंजन में |
साहित्य समाचार में-
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों,
सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशाला-२० में संक्रांति के उत्सव का आनंद बाँटते नवगीतों का प्रकाशन
इस सप्ताह पूरा हो चुका है।- |
लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत-
प्रस्तुत है-
२४ अप्रैल २००६ को प्रकाशित, यू.एस.ए से
इला प्रसाद की कहानी—
सेल।
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वर्ग पहेली-०६७
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
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सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
1
प्रसिद्ध लेखकों की चर्चित
कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में भारत से चित्रा मुद्गल की
कहानी- गेंद
"अंकल...ओ अंकल ! ... प्लीज सुनिए न अंकल...!
सँकरी सड़क से लगभग सटे बँगले की फेंसिंग के उस ओर से किसी
बच्चे ने उन्हें पुकारा।
सचदेवा जी ठिठके, आवाज कहाँ से आयी भाँपने लगे। कुछ समझ नहीं
पाए। कानों और गंजे सिर को ढके कसकर लपेटे हुए मफलर को
उन्होंने तनिक ढीला किया। मधुमेह का सीधा आक्रमण उनकी
श्रवण-शक्ति पर हुआ है। अकसर मन चोट खा जाता है जब उनके न
सुनने पर सामने वाला व्यक्ति अपनी खीज को संयत स्वर के बावजूद
दबा नहीं पाता।
सात-आठ महीने से ऊपर हो रहे होंगे। विनय को अपनी परेशानी लिख
भेजी थी उन्होंने। जवाब में उसने फोन खटका दिया। श्रवण-यन्त्र
के लिए वह उनके नाम रुपए भेज रहा है। आश्रम वालों की सहायता से
अपना इलाज करवा लें। बड़े दिनों तक वे अपने नाम आने वाले
रुपयों का इन्तजार करते रहे। गुस्से में आकर उन्होंने उसे एक
और खत लिखा। जवाब में उसका एक और फोन आया। एक पेचीदे काम में
उलझा हुआ था।
विस्तार
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*
विजय की लघुकथा
आदर्श गाँव
*
मोहन राकेश के विचार
नाटककार
और रंगमंच
*
कुमार रवीन्द्र से जानें
नवगीत का शृंगार बोध
*
पुनर्पाठ में दीपिका जोशी
के साथ देखें- एक टुकड़ा
राजस्थान |
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पिछले सप्ताह-
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1
राज चड्ढा का व्यंग्य
आग तापने का सुख
*
पत्रकार डॉ. सौरभ मालवीय का आलेख
समाचार पत्रों में सांस्कृतिक
राष्ट्रवाद की उपेक्षा...
*
कला और कलाकार में
डॉ. लाल रत्नाकर से परिचय
*
समाचारों में
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ
*
समकालीन कहानियों में भारत
से प्रभु जोशी
की कहानी
सविता
बनर्जी - एक डायरी का नाम
परसों दिन भर इन्दौर के टेम्पो, टैक्सियों में,
सिटी बसों और उनके स्टाप्स पर घूमते हुए मैंने लगभग हर उस
लड़की से बेसाख्ता पूछा, जो एक नजर में दूर से सलीकेदार जान पड़ती थी कि-‘क्या आप सविता बनर्जी हैं?‘ और, शाम
होते-होते मुझे किसी भी लड़की से पूछने के पहले दहशत होने लगी
थी, इस बात को सोचकर कि वह बेलिहाज हो कर इनकार देगी।
यह बात शुक्रवार की शाम की है। इन्दौर में मुझे धुआँरी शामें,
शोर और भीड़ के बीच होल्करों के, राजबाड़े की पुरानी इमारत की
दीवारें देखकर हमेशा लगता है, जैसे सामन्त-समय की मुँडेर पर
बैठा इतिहास बहुत खामोश होकर वक्त की रफ्तार का जायजा ले रहा
है।
मैं राजवाड़े से जी.पी.ओ. (जनरल पोस्ट ऑफिस) की तरफ जाने के लिए
एक तिपहिया टेम्पो में बैठा ही था कि अचानक सिटी बस आ गई। बस
को आता देखकर सहसा मेरे सामने की सीट से एक साँवली-सी दोशीजा
आँखों वाली लड़की
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