कुछ
ही दिनों में गाँव का नक्शा बदल गया।
लाला की छोटी सी दुकान जिसमें जरूरत की हर चीज मौजूत रहती
थी, बड़े से बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर में बदल गई। निर्मल
सिंह का मुख्य सड़क के साथ खड़ा खोखा जहाँ सर्दियों में
चाय और पकौड़ा थाल में रखे रहते थे व गर्मियों में हँडिया
में मथनी से मथकर लस्सी भी पिला दी जाती थी, वहाँ पक्की
दुकान बन गई।
चाय काफी की मशीन लग गई। और कोल्ड ड्रिंक के क्रेट आने
लगे। कम्पनी फ्रिज भी लगा गई। मैलाराम की पान की टोकरी
जिसमें घर की बनी खैनी भी रहती थी, अब एक दुकान में बदल
गई। दुकान में न जाने कितनी तरह के शीशे लटके रहने लगे। एक
बैंक ने भी अपनी छोटी सी शाखा पंचायत की इमारत में खोल दी
थी। सरपंच के दस्तखत करते ही उधार मिल जाता था आसान
किश्तों पर।
किसान और उसके बीवी बच्चे जो कभी नीम और कभी बबूल की
डालियाँ तोड़ दातून कर लेते थे, अब हर महीने टीवी पर
विज्ञापन देख अपना ब्रश और पेस्ट बदलने लगे हैं। नहाने के
लिये साबुन भी कई तरह के इस्तेमाल होने लगे। बिजली की
सप्लाई अचछी न होने पर भी कई घरों में वाशिंग मशीनें आ
गईं। एक डेरी भी खुल गई।
आमदनी कुछ ही घरों में बढ़ी मगर जरूरत हर घर में कुछ
ज्यादा ही बढ़ गई। अब लोगों ने मेहमानों को आने पर दूध
मट्ठा देना बंद कर दिया। क्यों कि जरूरतों की आपूर्ति में
वे पूरा दूध डेरी पर पहुँचाने लगे थे। ब मेहमान आता तो
कोल्ड ड्रिंक मँगा देते। या चाय के साथ पैकेटों में आने
वाला नमकीन रख देते।
कई खेत मजदूरों के परिवार गाँव छोड़ शहर चले गए। क्यों कि
अब शहरी की तरह रहना है तो शहर में रहना ठीक रहेगा। वहाँ
काम भी पूरे साल रहता है। गाँव में रहकर क्या करेंगे जब
मट्ठा भी किसी घर से न मिले।
चुनाव के समय उस क्षेत्र के एम एल ए ने गाँव को आदर्श गाँव
करार देते हुए कहा,
“यह हमारी सरकार की उदार नीति की वजह से ही संभव हुआ। अब
हमारे ग्रामीण भाइयों को काम के लिये भागना नहीं पड़ता है।
बैंक उनके द्वार पर पहुँचकर कर्ज देने आते हैं। इस बार भी
अगर हमारी पार्टी को आपने सरकार बनाने का मौका दिया तो
आसपास का हर गाँव आदर्श गाँव बन जाएगा।
६ फरवरी २०१२ |