इस सप्ताह- |
1
अनुभूति
में-
नववर्ष के अवसर पर अनेक
विधाओं नए-पुराने रचनाकारों की विविध
रचनाएँ। |
|
साहित्य एवं
संस्कृति में- |
1
नववर्ष के अवसर पर अज्ञेय का
उपन्यास
अपने अपने अजनबी
एकाएक सन्नाटा छा गया। उस सन्नाटे में ही योके ठीक से समझ सकी कि उससे निमिष भर
पहले ही कितनी जोर का धमाका हुआ था-बल्कि धमाके को मानो अधबीच में दबाकर ही
एकाएक सन्नाटा छा गया था। वह क्या उस नीरवता के कारण ही था, या कि अवचेतन रूप से सन्नाटे का ठीक-ठाक अर्थ
भी योके समझ गयी थी, कि उसका दिल इतने जोर से धडकने लगा था? मानो सन्नाटे के
दबाव को उसके हृदय की धडकन का दबाव रोककर अपने वश कर लेना चाहता हो।
बर्फ तो पिछली रात से ही पड़ती रही थी। वहाँ उस मौसम में बर्फ का गिरना, या
लगातार गिरते रहना, कोई अचम्भे की बात नहीं थी। शायद उसका न गिरना ही कुछ
असाधारण बात होती। लेकिन योके ने यह सम्भावना नहीं की थी कि बर्फ का पहाड़ यों
टूटकर उनके ऊपर गिर पड़ेगा और वे इस तरह उसके नीचे दब जाएँगे। जरूर वह बर्फ के
नीचे दब गयी है, नहीं तो उस अधूरे धमाके और...
विस्तार
से पढ़ें...
|
अभिव्यक्ति समूह
की निःशुल्क सदस्यता लें। |
|
पिछले सप्ताह- |
पुनर्पाठ में- अंबरीश मिश्र का
संस्मरण- सुनंदा भाभी
*
समकालीन कहानियों में यू.एस.ए. से
सुधा ओम ढींगरा की कहानी-
परिचय की खोज
मेरी भारत
यात्रा के दौरान अक्सर अजय भनोट जालंधर में अपने घर पर गोष्ठी
रख लेते हैं। उनकी गोष्ठियों में पुराने मित्रों से मिलना हो
जाता है और नए उभरते रचनाकारों से परिचय। इस बार भी बहुत सी नई
प्रतिभाओं से मिलना हुआ। उभरते उपन्यासकार मयंक भारती को देख
कर लगा कि इसे पहले कहीं देखा है। पूरी गोष्ठी में याद नहीं
आया कि उसे कहाँ देखा है..बहुत सोचती रही। गोष्ठी की समाप्ति
उपरांत वह मेरे पास आकर बोला, ''मैडम, पूरी गोष्ठी मैंने महसूस
किया कि आप बार- बार मुझे देख रही थीं, जिस चेहरे को आप मेरे
चेहरे में ढूँढ रही हैं...मैं उन्हीं का बेटा हूँ...अंत तक वे
अपनी कहानी का इंतज़ार करती रहीं, आप ने भी औरों की तरह उनका
विश्वास नहीं किया। इसी बात का दुःख उन्हें मरते दम तक रहा। वे
आप को दूसरों से भिन्न समझती थीं। मरने से...
विस्तार
से पढ़ें... |
अभिव्यक्ति से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ |
|