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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है यू.एस.ए. से
सुधा ओम ढींगरा की कहानी— परिचय की खोज


मेरी भारत यात्रा के दौरान अक्सर अजय भनोट जालंधर में अपने घर पर गोष्ठी रख लेते हैं। उनकी गोष्ठियों में पुराने मित्रों से मिलना हो जाता है और नए उभरते रचनाकारों से परिचय। इस बार भी बहुत सी नई प्रतिभाओं से मिलना हुआ। उभरते उपन्यासकार मयंक भारती को देख कर लगा कि इसे पहले कहीं देखा है। पूरी गोष्ठी में याद नहीं आया कि उसे कहाँ देखा है..बहुत सोचती रही।

गोष्ठी की समाप्ति उपरांत वह मेरे पास आकर बोला, ''मैडम, पूरी गोष्ठी मैंने महसूस किया कि आप बार- बार मुझे देख रही थीं, जिस चेहरे को आप मेरे चेहरे में ढूँढ रही हैं...मैं उन्हीं का बेटा हूँ...अंत तक वे अपनी कहानी का इंतज़ार करती रहीं, आप ने भी औरों की तरह उनका विश्वास नहीं किया। इसी बात का दुःख उन्हें मरते दम तक रहा। वे आप को दूसरों से भिन्न समझती थीं। मरने से पहले वे मुझे अपने बारे में और आप के बारे में सब कुछ बता गईं।'' यह कह कर मयंक तो चला गया।

मुझे मेरी यादों की ठहरी हुई झील को तरंगित करने के लिए छोड़ गया.....पिछले कुछ वर्षों का पत्थर ज़ोर लगा कर मैंने उस झील में फैंका, तरंगें उठीं , दृश्य घूमने लगा ..और मेरी कलम पर उसका सच, उसका दर्द जो उसने उस दिन उड़ेला था, आ बैठा ....

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