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११. ७. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
गीता पंडित, मदनमोहन उपेन्द्र, मीरा ठाकुर, सरोजिनी प्रीतम और  उदय खनाल उमेश की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- टिक्की, कवाब व पकौड़े- बारह चटपटे और स्वादिष्ट व्यंजनों की शृंखला में इस सप्ताह प्रस्तुत है- मटर से भरी आलू की टिक्की

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का २८वाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से-
खुजली की घरेलू दवा

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १ जुलाई से १५ जुलाई २०११ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- एक से अधिक विंडो खुली होने पर उनमें घूमने के लिए Alt + Tab का प्रयोग करते हैं। विन्डोज़ विस्टा तथा विन्डोज़ ७ में...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला-१७ का विषय है शहर का एकांत। रचनाएँ भेजने की अंतिम तिथि है २० जुलाई।

वर्ग पहेली-०३७
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपाल- छुट्टियों के बावजूद इस बार चौपाल में रौनक रही। उपस्थित सदस्यों ने मिलकर मौलियर के नाटक बिच्छू का पाठ किया।... आगे पढ़ें...

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य व संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में मलेशिया से
सुमति सक्सेना लाल की कहानी-
फिर वही सवाल

लान की घास के ऊपर पत्तियों का कालीन सा बिछ गया है। यह पतझड़ का मौसम.... माली परेशान हो जाता है। वह सूखी पत्तियाँ झाड़ रहा है... क्यारियों में से कूड़ा उठा कर टोकरे में जमा कर रहा है... बेचारा! कल तक यह कूड़ा ऐसे ही, इतनी ही मात्रा में फिर जमा हो जाएगा। रंजन इस लान का पूरा सदुपयोग करते रहे हैं। आफिस से आते ही कपड़े बदल एक हाथ में चाय का मग और दूसरे हाथ में ट्यूब लेकर फूल-पत्ती घास को देर तक छिड़कते रहते... यों उन्हें पौधों को सींचना और अपने आप को भिगोना बेहद अच्छा लगता...। हर दिन चेहरे पर शिशु जैसा उल्लास आ जाता... कहते ‘‘हम लोग कितने अभागे थे कि हम दोनों का ही बचपन ऊपर के बंद घर में बीत गया... बेचारे हम... है न मीनाक्षी? नीचे के घर का कुछ मज़ा ही और है।’’ मैं हँस देती... कुछ कहती नहीं। दो तरफ के बड़े-बड़े लान... एक तरफ के ड्राइव वे के बीच बनी पापा की बड़ी सी कोठी याद आती। पर उसमें भी रही कहाँ हूँ... बस गई हूँ।  पूरी कहानी पढ़ें...
*

आकुल का प्रेरक प्रसंग
कोई अन्याय नहीं किया

*

उषा राजे सक्सेना का आलेख
ब्रिटेन की हिंदी कहानी के तीस वर्

*

पवन कुमार की दृष्टि में
पंकज सुबीर का उपन्यास- ये वो सहर तो नहीं
*

दीपिका जोशी का आलेख
हरिशयनी एकादशी

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पिछले सप्ताह-

1
वीरेन्द्र जैन का व्यंग्य
पागलपन के पक्ष में

*

मनोज श्रीवास्तव की पड़ताल-
प्रवासी हिंदी साहित्य में परंपरा, जड़ें और देशभक्ति

*

गुरमीत बेदी के साथ पर्यटन में
श्रद्धा और सौंदर्य का संगम मंडी
*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

*

समकालीन कहानियों में भारत से
जयनंदन की कहानी- पनसोखा

जब भी गाँव गया बासो ठाकुर को अलग-अलग वेश में देखा। कभी मिलिट्री के लिबास में, कभी सिपाही के, कभी करखनिया मजदूर के, कभी रेलवे कुली के। अपना यह बहुरूप वे हास्य पैदा करने के लिए नहीं बल्कि वस्त्रहीनता की स्थिति में हास्यास्पद बनने से बचने के लिए अख्तियार करते थे। बासो ठाकुर हमारे गाँव के नौकरियाहों के आईना थे, जिन्हें देखकर बहुत हद तक अनुमान लगाया जा सकता था कि यहाँ किस-किस महकमे में काम करने वाले लोग हैं। बेले-मौके आये नौकरियाहों की विशेष सेवा-टहल करके वे उनकी देह-उतरनों को प्राप्त करते थे, जो तुरंत चढ़ जाता था उनके अधनंगे बदन पर। चूँकि अक्सर दूसरे के मिलने तक पहला तार-तार हो चुका होता था। एक बार तो हद ही हो गयी जब चूहे द्वारा कई जगह काट दिये जाने की वजह से राजसी पोशाक और सैकड़ों कतरन से बनायी हुई जोकर ड्रेस को नाटक-मंडली के लड़कों ने...  पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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