चारों ओर से खूबसूरत पर्वतमालाओं से घिरा, व्यास नदी के तट पर
बसा मंडी नगर अपनी ऐतिहासिकता, भव्यता व गौरवमयी संस्कृति के
कारण न केवल हिमाचल अपितु देशभर में प्रसिद्ध हैं। श्रद्धालुओं व
पर्यटकों के लिए जहाँ मंडी आकर्षण का केंद्र हैं, वहीं
कलाप्रेमियों के लिए कौतूहल का विषय भी। यह वही नगरी है जहाँ
महर्षि वेद व्यास ने विश्व प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत की रचना
की थी। यह भी कहा जाता है कि महर्षि मांडव्य ने यहीं धूनी
रमाकर वर्षों तपस्या की थी, जिस कारण इस नगरी का नाम पहले
मांडव्य पड़ा जो कि बाद में अपभ्रंश होकर मंडी बन गया। इस नगरी
की माटी में जहाँ रजवाड़ाशाही की महक रची है, वहीं यहाँ के
वातावरण में भक्तिगीतों की सुर लहरियाँ गुंजायमान हैं।
आकर्षण का केन्द्र
समुद्र तल से ढाई हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित मंडी एक लंबे
अरसे तक सैन वंश के राजाओं के अधीन रहा। इन राजाओं की छत्रछाया
में न केवल यहाँ की लोक संस्कृति फली–फूली, बल्कि वहीं इन
राजाओं ने कई ऐतिहासिक दुर्गों, स्मारकों व मंदिरों का निर्माण
करवाया जो कि आज भी पर्यटकों व श्रद्धालुओं के आकर्षण का
केन्द्र हैं। मंडी जो कि सुकेत और मंडी दो पहाड़ी रियासतों के
एकीकरण से १५ अप्रैल, १९४८ को अस्तित्व में आया था, आज हिमाचल
का सर्वाधिक विकसित व
ख्यातिप्राप्त नगर है।
मंडी आकर पर्यटक कभी निराश नहीं होता। यहाँ के धार्मिक परिवेश
में जहाँ उसे अलौकिक सुख का अनुभव होता है, वहीं यहाँ के
पर्यटन स्थल उसे बार–बार आने का न्यौता देते हैं। एक अनुमान के
अनुसार मंडी में सौ से अधिक मंदिर हैं। इनमें से कुछ एक का
नियंत्रण भारतीय पुरातत्व विभाग के पास है। इतनी बड़ी संख्या
में यहाँ मंदिरों के स्थित होने के कारण श्रद्धालु इसे 'छोटी
काशी' का नाम भी दे देते हैं। भूतनाथ, एकादश रूद्र, नीलकंठ
महादेव, काली माता सिद्धकाली, त्रिलोकीनाथ, अर्धनारीश्वर,
भगवती टारना और सिद्ध भद्रा महामृत्यंजय यहाँ के प्रमुख मंदिर
हैं।
रिवालसर झील
रिवाल्सर झील मंडी घाटी की सुप्रसिद्ध झील है। मंडी से करीब २५
किलोमीटर दूर सड़क मार्ग से जुड़ी यह खूबसूरत झील १३५० मीटर की
ऊंचाई पर स्थित है और इसे सर्वधर्म संगम भी कहा जाता है। हिंदू
इसे स्कंध पुराण में वर्णित महर्षि लोमष की तपोभूमि मानते हैं
जो भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। एक किंवदंती के अनुसार महर्षि
लोमष की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान शिव ने उन्हें
कोई वर माँगने को कहा तो बजाय स्वयं के लिए कुछ माँगने के,
महर्षि लोमष ने अपनी तपोभूमि के लिए ही वरदान माँगा। बस तभी से
यहाँ झील में भूखंड तैरने लगे जिन्हें श्रद्धालु आज भी बड़ी
श्रद्धा से पूजते हैं। झील के तट पर स्थित भगवान शिव का
प्राचीन मंदिर शिखर शैली का अद्भुत नमूना है। तिब्बतियों के
लिए भी यह स्थल श्रद्धा का केंद्र हैं। यहाँ पर बौद्ध गुरू
पद्मसंभव का एक प्राचीन गोंपा भी है। एक लोक मान्यता के अनुसार
८वीं सदी में इस झील के किनारे पद्मसंभव ने पद्मासन में बैठकर
चिंतन किया था। सिखों के लिए भी रिवाल्सर किसी पुण्य स्थल से
कम नहीं हैं। झील के सामने पहाड़ी पर सिखों के दशम गुरू गोविंद
सिंह जी का ऐतिहासिक गुरूद्वारा बना हुआ है, कहा जाता है कि
उन्होंने यहीं पर पहाड़ी राजाओं की एक सभा बुलाकर मुगल शासन के
खिलाफ रणनीति तैयार की
थी।
झीलों और प्राकृतिक संपदा से ओतप्रोत यह स्थान शांति और
अध्यात्म का भी एक केन्द्र हैं। बौद्धों के रहन–सहन तथा बौद्ध
धर्म से संबंधित अनेक पहलुओं का यहाँ प्रत्यक्ष अध्ययन किया जा
सकता है।
रिवाल्सर पहुँचने पर यहाँ सबसे पहले जो चीजें ध्यान आकृष्ट
करती हैं, वे हैं झील के किनारे लटकते कपड़ों के टुकड़े। इन
टुकड़ों पर बौद्ध धर्म ग्रंथ के चिह्न अंकित हैं। मान्यता है कि
हवा के इन कपड़ों से स्पर्श करने पर यहाँ का वातावरण शुद्ध तथा
प्रदूषण खत्म हो जाता है।
कला के अद्भुत साँचे में ढले विशाल बौद्ध मठ पर्यटकों का मन
बरबस मोह लेते हैं। मठ में रोज प्रातः विशेष वाद्य यंत्र
'तुरही' के बजने से पर्यटकों की नींद अपने आप खुल जाती है। मठ
के भीतर की दीवारें बौद्ध धर्म से जुड़े चित्रों और कलाकृतियों
से भरी हुई हैं। यही हाल मठ के बाहर भी हैं जहाँ, शांति,
सौंदर्य और अध्यात्म तीनों का आनंद लिया जा सकता है। मठ परिसर
में एक कक्ष है जिसमें भक्तों द्वारा
रोज दो हजार तेल के दीये जलाये जाते हैं।
यहाँ माँ काली एक मंदिर भी है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर मानव
खोपड़ियों के चित्र अंकित हैं। मठ के पास विद्यालय की एक भव्य
इमारत भी है जहाँ बौद्ध शिक्षा दी जाती है। इसके अतिरिक्त यहाँ
एक भव्य गुरूद्वारा भी है। जिसे देखने और अरदास करने यहाँ
देश–विदेश से पर्यटक आते हैं।
भीड़ और कोलाहल से दूर छुट्टियों के समय यहाँ आने पर मन और
मस्तिष्क दोनों को आराम मिलता है और एक सुखद–शांति की अनुभूति
होती है।
पराशर झील
पराशर झील मंडी नगर से चालीस किलोमीटर दूर उत्तर–पूर्व में नौ
हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। दूर से देखने पर इस झील का
आकार एक तालाब की तरह लगता है लेकिन इस झील की वास्तविक परिधि
आधा किलोमीटर से कुछ कम है। इस झील के चारों ओर ऊंची–ऊंची
पहाड़ियाँ देखने में ऐसी प्रतीत होती हैं मानो प्रकृति ने इस
झील की सुरक्षा के लिए इन पहाड़ियों की गोलाकार दीवार खड़ी कर दी
हो। यह झील जनबस्तियों से काफी दूर एकांत में हैं। झील के
किनारे 'पगोड़ा शैली' में
निर्मित ऋषि पराशर का तीन मंजिला मंदिर है। एक अनुमान के
अनुसार इस मंदिर का निर्माण तेरहवीं शताब्दी में तत्कालीन मंडी
नरेश बाणसेन द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर में की गयी काष्ठ
कला इतनी बेजोड़ है कि कलाप्रेमी 'वाह–वाह' किये बिना नहीं
रहता। मंदिर में महर्षि पराशर की
भव्य पाषाण प्रतिमा के अलावा विष्णु, महिषासुरमर्दिनी, शिव व
लक्ष्मी की कलात्मक प्रस्तर मूर्तियाँ भी स्थित हैं। झील का
सौंदर्यावलोकन करने आये पर्यटक स्वयंमेव ही इस मंदिर में
आकर
नतमस्तक हो जाते हैं। वैशाख मास में यहाँ एक भव्य मेला लगता है
जिसे 'काशी मेला' के नाम से जाना जाता है।
अन्य प्रमुख पर्यटन स्थल
घाटी के प्रमुख पर्यटन स्थलों में रिवाल्सर, कमरूनाग, पराशर
झीलों के अलावा कमलागढ़, जंजैहली घाटी, करसोग घाटी, बरोट,
जोगिंद्रनगर का नाम गिना जा सकता है। ये स्थल जहाँ सौंदर्य
प्रेमियों व श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र हैं, वहीं
पर्वतारोहण के शौकिन भी देशभर से यहाँ आते हैं।
यहाँ के ऐतिहासिक पड्डल मैदान में तो मानो इस शहर का दिल धड़कता
है। व्यास और सुकेती नदियों के किनारों को छूता यह विशालकाय
मैदान शहर के एकांत छोर पर है। हरे–भरे पेड़ों से घिरा यह मैदान
यहाँ बुजुर्गों के लिए अपने हम उम्रों के साथ बैठकर दुःख–सुख
बांटने की सर्वाधिक उपयुक्त जगह हैं, वहीं युवाओं के लिए तफरीह
का केन्द्र। इस मैदान में
ही खिलाड़ी अपना 'स्टैमिना' बनाते हैं
और यहीं जुटता है हर साल शिवरात्रि को पर्यटकों व श्रद्धालुओं
का समंदर। इतना ही नहीं, यह मैदान हर साल देवताओं के स्पर्श से
धन्य हो उठता है। बात चौंकानेवाली भले ही हो लेकिन वास्तविकता
यह है कि ये देवी–देवता कोई स्वर्ग से इस मैदान में नहीं
उतरते। बल्कि ये तो मंडी के ग्रामीण देवी–देवता हैं जिन्हें
श्रद्धालु पालकियों मे सजा–संवारकर ढोल–नगाड़ों के साथ
शिवरात्रि मेले में यहाँ लाते हैं। उत्तरी भारत में इसे
देवसमागम का सबसे
बड़ा मेला कहा जाता है।
गरम जल के चश्मे
कमरूनाग इस घाटी की तीसरी प्रमुख झील है। मंडी नगर से ५१
किलोमीटर दूर करसोग घाटी में स्थित यह झील समुद्र्र तल से नौ
हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। देवदार के घने जंगलों से घिरी
यह झील प्रकृति प्रेमियों को अभिभूत कर देती हैं। इस झील तक
पहुँचने का रास्ता भी बहुत सुरम्य है और यहाँ के लुभावने
दृष्यों को देख पर्यटक अपनी सारी थकान भूल जाता है। झील के
किनारे पहाड़ी शैली में निर्मित कमरूनाग देवता का प्राचीन मंदिर
भी है जहाँ पत्थर की प्रतिमा स्थापित है। जून माह में यहाँ
भारी मेला लगता है। करसोग से शिमला की ओर जाते हुए राह में
तत्तापानी नामक खूबसूरत स्थल है। यह स्थल सल्फरयुक्त गरम जल के
चश्मों के लिए मशहूर है। एक तरफ बर्फ की तरह सतलुज का ठंडा जल
अगर शरीर को सुन्न कर देता है तो वहीं इस नदी के आगोश से फूटता
गरम जल पर्यटकों के लिए किसी अजूबे से कम नहीं है।
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