वार्तालाप
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२५. ४. २०११

इस सप्ताह-

अनुभूति में- शिवबहादुर सिंह भदौरिया, सिद्धेश्वर सिंह, डॉ.रूपचंद्र शास्त्री मयंक, अमिताभ मित्रा और काव्य संगम में मलयालम रचनाएँ।

- घर परिवार में

मसालों का महाकाव्य- देश-विदेश में लोकप्रिय चटपटे मिश्रणों के बारे में प्रमाणिक जानकारी दे रहे हैं शेफ प्रफुल्ल श्रीवास्तव। इस अंक में- किमची

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम की डायरी के पन्नों से- शिशु का सत्रहवाँ सप्ताह।

स्वास्थ्य सुझाव- भारत में आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग में शोधरत अलका मिश्रा के औषधालय से- अपच के लिये चटनी

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १६ अप्रैल से ३० अप्रैल २०११ तक का भविष्य फल।

- रचना और मनोरंजन में

कंप्यूटर की कक्षा में- विंडोज+E दबाने पर विंडोज एक्सप्लोरर खुल जाता है। इस युक्ति के द्वारा हमें स्टार्ट बटन या माई कंप्यूटर ढूँढने की ज़रूरत...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- १५ नवगीतों का प्रकाशन इस सप्ताह पूरा हो जाएगा। अगले सप्ताह होगी नए विषय की घोषणा।

वर्ग पहेली-०२६
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

शुक्रवार चौपाल- इस बार नाटक सत्र की कार्यसूची में थीं- असगर वजाहत की कुछ लघुकथाएं और एक कहानी, फैज अहमद फैज के विषय में... आगे पढ़ें...

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य और संस्कृति में-

1
समकालीन कहानियों में भारत से
अभिज्ञात की कहानी- सोने की आरामकुर्सी

रोज़ की तरह सुरेश आठ घंटे की क्लर्की की ड्यूटी बजाने के बाद घर लौटा था। वह एक निज़ी जूट मिल में कार्यरत था, जहाँ मज़दूरों और बाबुओं के वेतन में कोई खास फर्क नहीं था। प्रबंधन के लिए सभी नौकर एक जैसे थे और वेतन भी एक जैसा। भले वे अलग-अलग काम जानते और करते हों। इसलिए मज़दूर, झाड़ूदार, दरबान और क्लर्क सबके वेतन में लगभग समानता थी। सुरेश का जीवन-स्तर भी मजदूरों से कुछ भिन्न नहीं था। उसके पिता को अफसोस था कि बेमतलब ही उन्होंने बेटे को एमए तक पढ़ाया। यदि मैट्रिक के बाद ही दरबानी के काम पर लगा दिया होता आज उसका वेतन कुछ ज्यादा ही होता। खैर पिता तो अब रहे नहीं, सुरेश एक बेटी, एक बेटे और पत्नी के साथ एक झोपड़पट्टीनुमा मकान में अपना जीवन बसर कर रहा था। यह डेढ़ कट्ठा जमीन भी उसके पिता ने जैसे-तैसे खरीदी थी और उस पर एक कामचलाऊ मकान यह सोचकर...  पूरी कहानी पढ़ें...
*

गिरीश बिल्लौरे मुकुल का व्यंग्य
उफ़ ये चुगलखोरियाँ
*

डॉ चैत्यन्य सक्सेना का आलेख
ऐतिहासिक बूँदी की सांस्कृतिक यात्रा

*

पुनर्पाठ में अर्बुदा ओहरी की कलम से
एक दिन माँ के लिये
*

समाचारों में
देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ

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पिछले सप्ताह-

1
हीरालाल ठक्कर की लघुकथा
बच्चे
*

जूथिका राय की आत्मकथा का अंश
आज भी याद आता है

*

जयप्रकाश मानस का ललित निबंध
काग के भाग
*

पुनर्पाठ में हनुमान सरावगी का आलेख
लोक उद्धारक महावीर

*

मकालीन कहानियों में भारत से
मनमोहन गुप्ता मोनी की कहानी- जहाँ से चले थे

मुझे आज भी वो वैसी ही लगी थी। तीस वर्ष पूर्व की बिन्‍दु और आज की बिन्‍दु में कोई विशेष अंतर नहीं था। कनपटियों के पीछे के बालों और पहरावे पर गौर न करें तो कोई कह ही नहीं सकता था कि बिन्‍दु पचपन के आसपास होगी। जिसे बचपन में चाहा और जिंदगी के इस पड़ाव में आकर उससे भेंट हो जाए, तो समय लौट सा आता है। मन उसी प्रकार उछलने लगता है जैसा कभी बचपन में होता था। लेकिन ओढ़ी हुई मर्यादा किसी ओज़ोन की परत सी फैल जाती है। बिन्‍दु पहले तो मुझे देखती रही। शायद इस इंतजार में थी कि चुप्‍पी तोड़ूँ परंतु मैं बात का सिरा ढ़ूँढने में ही लगा था कि वह बोल पड़ी -
'इत्‍ते दिन बाद दिखाई दिए?' मेरे पास इसका कोई उत्‍तर नहीं था। अगर वो यह न पूछती तो शायद मैं भी उससे यही सवाल पूछता। लेकिन उसने पहल कर डाली थी। सो... पूरी कहानी पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
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सहयोग : दीपिका जोशी

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