शिशु का सत्रहवाँ सप्ताह
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इला
गौतम
हँसी का पिटारा
इस उम्र में शिशु अपनी बात मुख्य रूप से रोकर बताता है।
लेकिन इस महीने में वह अपनी हँसोड़पन-भावना भी विकसित कर
लेगा। सम्भव है कि शिशु एक सुखद अचरज पर हँस दे जैसे कंबल
में से माँ का चेहरा निकल आने पर, एक डब्बे में से जोकर
निकल आने पर, बशर्ते कि यह सारे अचरज ज़्यादा शोर वाले या
चौंकाने वाले न हों।
तरह-तरह के चेहरे बनाकर शिशु की हँसी, खिलखिलाहट और
मुस्कुराहट को प्रोत्साहित करें। बच्चों को विभिन्न प्रकार
की आवाज़ें सुनने में बहुत मज़ा आता है और इसके लिए किसी
विशेष खिलौने या यंत्र की ज़रूरत नही है। बस चटकारे लें,
सीटी बजाएँ, या जानवरों की आवाज़ें निकालें - शिशु बहुत
प्रसन्न हो जाएगा।
सीखना और
समझना
शिशु को तरह-तरह की वस्तुओं के
साथ खेलने के लिए और उनकी खोज करने के लिए प्रोत्साहित
करें। साधारण से साधारण वस्तु जैसे कपड़े की साफ़ नैपी के
साथ भी शिशु कई मिनटों तक व्यस्त रह सकता है। देखिए वह
कैसे उसे चूसता है, पकड़ता है, और यह जानने कि कोशिश करता
है कि उसको मुट्ठी में लेकर सिकोड़ने से क्या होता है।
शिशु
को एक झुनझुना पकड़ाएँ और फिर देखें वह कैसे उस आवाज़ के
मज़े लेता है जो उसके झुनझुना हिलाने से आती है। एक
काम-कोना या पालने की व्यायामशाला उम्र के इस चरण पर शिशु
के लिए एक अच्छा चुनाव रहेगा। इससे वह लीवर हिलाने या घंटी
बजाने के कारण और प्रभाव समझने लगेगा।
दुनिया रंग
रंगीली-
जन्म से ही शिशु रंगों को
देख सकता है लेकिन उसे सामान्य टोन से रंगों, जैसे लाल और
नारंगी, में भेद करने में मुश्किल होती है। (शिशु बहुत अलग
रंगों में भेद बता सकता है जैसे लाल, नीला और हरा)। इसलिए
४ महीने से छोटे बच्चे सफ़ेद और काली चीज़ें या विपरीत
रंगों वाली वस्तुएँ पसंद करते हैं।
इस उम्र के बच्चे सामान्य टोन के रंगो में भेद करने लगते
हैं जैसे शिशु लाल कमीज़ में से लाल बटन खोज लेगा। शिशु को
किताबों, खिलौनों और कपड़ो में ढेर सारे रंग दिखाएँ।
खेल खेल खेल-
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लगभग
४ माह का शिशु साबुन के बुलबलों के बीच आनंद लेना सीख
जाता है। इस खेल से शिशु का हाथ और आँख का समन्वय कौशल
विकसित होता है। एक बुलबुले बनाने वाला यंत्र लेकर कुछ
बुलबुले शिशु की ओर उड़ाएँ और उसको उन्हें पकड़ने या
फोड़ने दें (ध्यान रखें की साबुन का पानी शिशु की
आँखों में न जाए)। थोड़ी देर में शिशु बुलबुलों के
व्यवहार को समझने लगेगा। अब वह शरीर के अंगो वाला खेल
खेलने के लिए तैयार है। शिशु के हाथ की तरफ़ निशाना
लगाकर बुलबुला बनाएँ और कहें "मुन्ने के हाथ पे
बुलबुला" फिर पैर पर बुलबुला बनाएँ और कहें "मुन्ने के
पैर पर बुलबुला"। थोड़े महीनों बाद जब वह बैठने लगेगा
तब यह खेल शिशु को नहाते समय खेलने में बहुत मज़ा आएगा।
साबुन के बुलबुलों का एक गुण यह होता है कि वह गीली
त्वचा पर जल्दी नही फूटते। इस कारण शिशु को बुलबुलों
को पकड़ने का, देखने का और फोड़ने का समय मिल जाता है।
यदि बुलबुले बनाने के लिए बड़ी रिंग का इस्तेमाल किया
जाए तो बड़े बुलबुलों को फोड़ने में शिशु को और भी
अधिक आनंद आएगा।
याद रखें, हर बच्चा अलग होता है
सभी
बच्चे अलग होते हैं और अपनी गति से बढते हैं। विकास के
दिशा निर्देश केवल यह बताते हैं कि शिशु में क्या सिद्ध
करने की संभावना है - यदि अभी नही तो बहुत जल्द। ध्यान
रखें कि समय से पहले पैदा हुए बच्चे सभी र्कियाएँ करने में
ज़्यादा वक्त लेते हैं। यदि माँ को बच्चे के स्वास्थ
सम्बन्धित कोई भी प्रश्न हो तो उसे अपने स्वास्थ्य केंद्र
की सहायता लेनी चाहिए।
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