इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
1
मदनमोहन अरविंद,
प्रीत अरोड़ा, ऋषभदेव शर्मा, सोहनी और नवगीत कार्यशाला से चुनी
हुई रचनाएँ। |
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साहित्य और संस्कृति में- |
1
समकालीन कहानियों में भारत से
मनमोहन गुप्ता मोनी की कहानी-
जहाँ से चले थे
मुझे आज भी वो वैसी ही लगी थी। तीस वर्ष पूर्व की बिन्दु और
आज की बिन्दु में कोई विशेष अंतर नहीं था। कनपटियों के पीछे
के बालों और पहरावे पर गौर न करें तो कोई कह ही नहीं सकता था
कि बिन्दु पचपन के आसपास होगी। जिसे बचपन में चाहा और जिंदगी
के इस पड़ाव में आकर उससे भेंट हो जाए, तो समय लौट सा आता है।
मन उसी प्रकार उछलने लगता है जैसा कभी बचपन में होता था। लेकिन
ओढ़ी हुई मर्यादा किसी ओज़ोन की परत सी फैल जाती है। बिन्दु
पहले तो मुझे देखती रही। शायद इस इंतजार में थी कि चुप्पी
तोड़ूँ परंतु मैं बात का सिरा ढ़ूँढने में ही लगा था कि वह बोल
पड़ी -
'इत्ते दिन बाद दिखाई दिए?'
मेरे पास इसका कोई उत्तर नहीं था। अगर वो यह न पूछती तो शायद
मैं भी उससे यही सवाल पूछता। लेकिन उसने पहल कर डाली थी। सो,
उत्तर भी मुझे ही देना था। मैं उससे बस यह कह पाया-
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हीरालाल ठक्कर की लघुकथा
बच्चे
*
जूथिका राय की आत्मकथा का अंश
आज भी याद आता है
*
जयप्रकाश मान का ललित निबंध
काग के
भाग
*
पुनर्पाठ में हनुमान सरावगी का आलेख
लोक उद्धारक महावीर |
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पिछले
सप्ताह- |
आकुल की लघुकथा
चवन्नी नहीं चली
*
प्रभात रंजन की कलम से
फैंटम हुआ पचहत्तर
का
*
गिरीश पंकज का लेख
अज्ञेय की कविता- नई
दृष्टि, नए बिंब, नए इंद्रधनुष
*
डा. सच्चिदानंद झा की चेतावनी
सावधान मौसम बदल रहे हैं
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समकालीन कहानियों में
यू.के. से शैल अग्रवाल की कहानी-
एक बार फिर
श्रुति एक
बार फिर स्कूल में खेले नाटक की वही एलिस थी जो आज तक
वन्डरलैंड में ही घूम रही है।
कंचन, मधुर और रिया तीनों ही तो थीं साथ, उसकी अभिन्न और
प्यारी सहेलियाँ। तीस साल में पहली बार ऐसा हुआ था कि चारो
एकसाथ थीं, एक ही शहर में थीं और एक ही छत के नीचे थी। गरिमा
गर्ल्र्स कौलेज की चार होनहार छात्राएँ---- ऐसी छात्राएँ जिनसे
हर शिक्षिका को कई कई अपेक्षाएँ थीं, परन्तु हर अपेक्षा और
महत्त्वाकाँक्षा को झुठलाती, अपनी अपनी गृहस्थी में ही रमी रह
गईं थीं, चारों। कला और प्रतिभा को पुरानी किताब और कौपियों की
तरह ही वक्त की दराज में रखकर भूल चुकी थीं वे। इस मिलाप ने आज
फिर उन्ही मीठे दिनों की यादों को तरोताजा कर दिया था। आखिर
क्यों नहीं --पूरे तीस साल बाद मिली थीं वे ...
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अभिव्यक्ति
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