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शिशु का सोलहवाँ सप्ताह
—
इला
गौतम
ठोस आहार का समय
शिशु के जीवन के पहले ४ से ६ महीने तक उसे स्तनपान या
पाऊडर वाले दूध से सारे आवश्यक पोषक तत्व मिल जाते हैं।
फिर भी माता पिता शिशु को ठोस आहार शुरु कराने के लिए
उत्सुक रहते हैं। यह सही है कि शिशु का पाचन तंत्र जन्म से
अधिक विकसित है और उसका दूध के सिवा हर चीज़ को जीभ द्वारा
मुँह से बाहर निकाल देने की स्वाभाविक प्रक्रिया भी खत्म
हो गई है इसलिए यह शिशु का ठोस आहार शुरू करने का सही समय
है जैसे दाल का पानी, बेबी सीरीयल आदि। लेकिन
इन्तज़ार करने की भी वजह हैं।
शिशु का ठोस आहार देर से शुरू करने से उसे एलर्जी होने की
सम्भावना कम रहेगी और स्तनपान या पाऊडर का दूध उसके आहार
से घटेगा नही। यदि आप सोच रहे हैं कि ठोस आहार शुरू करने
से शिशु पूरी रात सो जाएगा तो अध्यन बताते हैं कि इस बात
की कोई गारन्टी नही है। ठोस आहार शुरू करने का सही समय
जानने के लिये डाक्टर की सलाह लेना भी अच्छा
है।
आहार के बीच
लंबे अंतर
शिशु
का पेट अब पहले से बड़ा है इसलिए वह ४ से ५ बार ही दूध
पियेगा। हालाकि जो शिशु स्तनपान कर रहे हैं वह अब भी दिन
में ६ से ८ बार दूध पियेंगे।
शिशु का वज़न अब जन्म के समय से दुगना हो गया होगा। फिर भी
शिशु से बड़ों जैसी खाने की आदतों की उमीद नही रखनी चाहिए।
शिशु का ध्यान बहुत जल्दी दूध पीने से हट जाता है। कभी वह
अपने भाई या बहन को देखने के लिए रुक जाता है तो कभी बाहर
से आती आवाज़ सुन कर। इसलिए शिशु को दूध पिलाना खीझ पैदा
करने वाला काम हो जाता है। ऐसा न हो इसके लिए शिशु को एक
शांत, कम रोशनी वाले कमरे में दूध पिलाना अच्छा रहता है।
एकांत में
मस्ती-
अब शिशु अपने हाथ और पैर से
कुछ देर तक अपने आप खेल सकता है। उसको एक ही क्रिया
बार-बार करना बहुत अच्छा लगता है जबतक उसे परिणाम पर पूरा
यकीन नही हो जाता। फिर वह उस क्रिया को थोड़ा अलग तरह से
करेगा यह देखने के लिए कि उसका परिणाम कुछ अलग होता है या
नही।
अचानक आपको एहसास होगा कि कमरा बहुत शांत है, पता चलता है
कि शिशु, जिसे अब तक उठते ही माँ की ज़रूरत पड़ती थी, अपने
पालने में आराम से खेल रहा है। यह देख कर आप फिर से अपना
सुबह का अखबार पढ़ सकते हैं - शायद सिर्फ़ सुर्खियाँ।
खेल खेल खेल-
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लगभग
४ माह का शिशु अपने नाना, नानी, दादा, दादी, भाई, बहन,
दोस्त सबके नाम बार-बार सुनना बहुत पसंद करता है। शिशु
को झूले वाली कुर्सी पर बिठाकर, उसका हाथ अपने हाथ में
लेकर और एक-एक अँगुली पकड़कर कहें "ये नाना की", "ये
नानी की", "ये दादी की" आदि। और आखिर में कहें "पूरी
दुनिया (शिशु का नाम) की। यद्यपि सबकुछ शिशु ठीक से
नहीं समझता है तो भी इस खेल से शिशु की संज्ञानात्मक,
श्रवण और मौखिक कौशल विकसित होंगे। झूले के बिना भी यह
खेल रुचिकर हो सकता है।
याद रखें, हर बच्चा अलग होता है
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बच्चे अलग होते हैं और अपनी गति से बढते हैं। विकास के
दिशा निर्देश केवल यह बताते हैं कि शिशु में क्या सिद्ध
करने की संभावना है - यदि अभी नही तो बहुत जल्द। ध्यान
रखें कि समय से पहले पैदा हुए बच्चे सभी र्कियाएँ करने में
ज़्यादा वक्त लेते हैं। यदि माँ को बच्चे के स्वास्थ
सम्बन्धित कोई भी प्रश्न हो तो उसे अपने स्वास्थ्य केंद्र
की सहायता लेनी चाहिए।
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