सप्ताह
का
विचार-अभद्र परिहास,
दंभ, इच्छा व
क्रोध, पर नियंत्रण रखते हुए संयम के साथ आत्मालोचन से सच्ची
प्रसन्नता मिलती है।- स्वामी शिवानंद |
|
अनुभूति
में-
जयकृष्ण राय तुषार, ओमप्रकाश यती, पुष्पा तिवारी, हरकीरत हीर और
सरिता शर्मा की रचनाएँ। |
|
|
इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में भारत से
भारत से
सुरेखा ठक्कर की कहानी
परिचय
काफी देर तक
मैं डायरेक्टरी में उर्मि जैन का नम्बर ढूँढती रही।
उनसे कल का अपॉइन्टमेंट लेना था और शाम को ही वह साक्षात्कार
लिखकर तैयार रखना था। इतनी बड़ी सामाजिक कार्यकर्ता का नम्बर
डायरेक्टरी में नहीं है ? मैंने अपनी याददाश्त पर ज़ोर डाला।
उन्होंने ५६०७३ नम्बर कहा था या ५६७०३ कहा था?
उस दिन डायरी साथ न ले गई, सो नम्बर कहीं लिखा नहीं था। खैर,
डायरेक्टरी लौटाकर मैं टेलीफोन बूथ की ओर मुड़ी। पर्स से
सिक्का निकाला और ५६०७३ नम्बर घुमाया। हलो की आवाज़ आते ही
मैंने सिक्का घेरे में डाल दिया,
‘‘क्या में उर्मिजी से बात कर
सकती हूँ ?’’
‘‘जी हाँ, आप उन्हीं से बात कर रही हैं!’’
चलो सही नम्बर लगा - ‘‘उर्मिजी हमारी पत्रिका ‘अक्षर’ के लिए
मैं आपसे भेंट करना चाहती हूँ। मैं... स्नेहा गुप्ता। अगर आप
कल सुबह १० से पहले का समय दें, तो बड़ी कृपा होगी।’’...
पूरी कहानी पढ़ें...
*
अमिताभ ठाकुर का व्यंग्य
उसका पसंदीदा देश
*
सुषम बेदी का आलेख
अमेरिका में
हिंदी: एक सिंहावलोकन
*
बलराम अग्रवाल से जितेन्द्र जीतू
की बातचीत-
समझ लघुकथा की
*
पर्यटक के साथ देखें
ऐतिहासिक इमारतों में
बसा एडिनबर्ग |
|
|
पिछले सप्ताह
रामवृक्ष सिंह का व्यंग्य
कसम का टोटका
*
प्रौद्योगिकी में रश्मि
आशीष का आलेख-
कहानी
ब्राउज़रों की
*
महेश परिमल का निबंध-
कोई मुझे थोड़ा सा समय दे दे
*
समाचारों में
देश-विदेश से
साहित्यिक-सांस्कृतिक सूचनाएँ
*
समकालीन कहानियों में संयुक्त
अरब इमारात से
पूर्णिमा वर्मन की कहानी
फुटबाल
लॉन की घास नर्म और गुदगुदी होने लगी थी। क्यारियों में
पिटूनिया के नन्हें पौधे आँखें खोलने लगे थे,
धूप
धीमा धीमा गुनगुनाने लगी थी मौसमी चिड़ियों के झुंड कनेर के पेड़ों पर
चहचहाने लगे थे कुल मिला कर यह कि डाइनिंग रूम से बाहर की ओर खुलने वाले
बड़े दरवाजे के काँच में से दिखता बगी़चा गुलज़ार नज़र आने लगा था। नवंबर
का आखिरी हफ्ता था और आकाश कह रहा था कि सर्दियों का मौसम शुरू हो गया।
नीलम किरण विरमानी ने बाहर की ओर एक नज़र देखा और लस्सी
बिलोने लगीं- मटकी में नहीं, मिक्सी में। स्विच की
छोटी सी क्लिक, ज़ूम की तेज़ आवाज़ और शांति,
लस्सी तैयार। उन्होंने अपनी गोरी चिट्टी कलाई पर बँधी बड़ी सी घड़ी
में समय देखा- सात बज कर अट्ठाइस मिनट। लस्सी को गिलास में पलट कर उन्होंने
बेसन के पराठों ..पूरी कहानी पढ़ें... |