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तिलक राज पाँचवी कक्षा का हमारा साथी था।
बहुत पहले तिलक
राज का परिवार अपनी तीन बहनों तथा माँ के साथ
हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बँटवारे से प्रभावित होकर अलीगढ़ मे
आकर बसा था। माँ ही घर की मुखिया थी, पिता की मृत्यु बहुत पहले
ही हो गई थी। हम लोग साथ-साथ स्कूल जाते।
समय से पहले हम तिलक राज के घर पहुँच जाया करते। पन्द्रह
सीढ़ियों को चढ़ने के बाद दरवाजे से होते हुये ठीक उसके आँगन
में पहुँच जाते। पहली सीढ़ी से ही पराठों के बनने से निकलने
वाली घी के धुएँ की सुगन्ध नाक में आती। दो-तीन पराठों का
नाश्ता करता तिलक राज। तीन पर्तों वाले लाल-लाल सिके पराठों को
माँ गोल सा करके गुपली बना कर तिलक राज के हाथों में दे देती।
तिलक राज पहले पराठे का बड़ा सा गस्सा खाता, फिर उसके बाद
लम्बे गिलास में भरी चाय के दो घूँट भरता।
बीच-बीच में तिलक राज की तीन बहनों में से एक उसके सर में
तेल डाल जाती, तो दूसरी कंघे से उसके बाल काढ़ जाती और तिलक
राज बिना यह ख्याल किए कि स्कूल को देर हो रही है, पराठे की
गोल गुपली से गस्सा खाता, फिर उसके बाद चाय के दो घूँट। |