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काफी देर तक
मैं डायरेक्टरी में उर्मि जैन का नम्बर ढूँढती रही।
उनसे कल का अपॉइन्टमेंट लेना था और शाम को ही वह साक्षात्कार
लिखकर तैयार रखना था। इतनी बड़ी सामाजिक कार्यकर्ता का नम्बर
डायरेक्टरी में नहीं है ? मैंने अपनी याददाश्त पर ज़ोर डाला।
उन्होंने ५६०७३ नम्बर कहा था या ५६७०३ कहा था?
उस दिन डायरी साथ न ले गई, सो नम्बर कहीं लिखा नहीं था। खैर,
डायरेक्टरी लौटाकर मैं टेलीफोन बूथ की ओर मुड़ी। पर्स से
सिक्का निकाला और ५६०७३ नम्बर घुमाया। हलो की आवाज़ आते ही
मैंने सिक्का घेरे में डाल दिया, ‘‘क्या में उर्मिजी से बात कर
सकती हूँ ?’’
‘‘जी हाँ, आप उन्हीं से बात कर रही हैं!’’
चलो सही नम्बर लगा - ‘‘उर्मिजी हमारी पत्रिका ‘अक्षर’ के लिए
मैं आपसे भेंट करना चाहती हूँ। मैं... स्नेहा गुप्ता। अगर आप
कल सुबह १० से पहले का समय दें, तो बड़ी कृपा होगी।’’
‘‘लेकिन मैं तो अभी छोटी हूँ।’’ |