कहानी
ब्राउज़रों की
रश्मि
आशीष
इन्टरनेट-
आधुनिक विश्व का एक ऐसा चमत्कार जिसके बिना ज़िन्दगी अधूरी
है - नयी जानकारी चाहिए हो, सगे सम्बन्धियों को संदेश
भेजना हो या बात करनी हो, बैंक का काम हो, बच्चों को पैसे
भेजने हों, यात्रा करनी हो या खरीदारी या सिर्फ मन बहलाना
हो -इन्टरनेट पर सब कुछ आपके घर में, आपके सामने, बिना उठे
बस उँगली हिला के हो जाता है।
इस चमत्कारी इन्टरनेट पर काम करने का बस एक ही ज़रिया है -
वॆब ब्राऊज़र। अगर आपने खुद से कोई कोई ब्राऊज़र डाउनलोड
या इन्सटॉल नहीं किया है तो शायद आपको पता ही न हो कि
कितने और कितने प्रकार के अलग-अलग क्षमताओं वाले
ब्राऊज़र्स उपलब्ध हैं। आइए इन विभिन्न ब्राऊज़रों के बारे
में जानकारी बढ़ाते हैं। पहले इन ब्राऊज़रों का थोड़ा सा
इतिहास जान लें।
पहला लोकप्रिय जी यू आई ब्राऊज़र एन सी एस ए (नेशनल सेंटर
फ़ॉर सुपरकंप्यूटिंग एप्लिकेशंस) मोज़ैक था, जिसे एन सी एस
ए के तत्वाधान में मार्क ऍन्द्रीस्सन के नेतृत्व में एक
समूह ने बनाया था। इन्हीं लोगों ने एन सी एस ए से बाहर आकर
नेटस्केप नाम की कम्पनी खोली तथा नैटस्केप ब्राऊज़र का
निर्माण किया। ९० के दशक तक नैटस्केप सबसे ज़्यादा प्रयोग
होने वाला ब्राऊज़र था। ९० के दशक में कारोबारी
प्रतिस्पर्द्धा के चलते माईक्रोसॉफ़्ट ने ब्राउज़र बनाने
वाली एक और कंपनी स्पाईग्लास से उनके ब्राउज़र को प्रयोग
तथा विकसित करने की अनुज्ञा (लाईसेंस) को खरीद लिया तथा
इसे नाम बदल के इन्टरनेट एक्सप्लोरर के नाम से अपने
विंडोज़ ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ मुफ्त देना चालू किया।
इन्टरनेट एक्सप्लोरर ब्राऊज़र मुफ्त में मिलने के कारण
नैटस्केप की आमदनी बन्द हो गयी तथा कम्पनी की दशा बिगड़
गयी। एक चीज़ के साथ दूसरी जबरदस्ती बेचने के आरोप में
माईक्रोसॉफ़्ट पर मुकदमा चला लेकिन अत्यन्त जटिल तकनीकी
पहलू होने के कारण जब तक इसका निर्णय नैटस्केप के पक्ष में
आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इन्टरनेट एक्सप्लोरर ९५%
बाज़ार पे कब्ज़ा कर चुका था। नैटस्केप कम्पनी अनेक बार
बिकी तथा बन्द भी हो गयी। बन्द होने से कुछ पहले नैटस्केप
को ओपेन सोर्स कर दिया गया। इसके अच्छे परिणाम देखकर
कम्पनी बन्द होने पर इसकी टीम ने इसे ओपेन सोर्स ब्राऊज़र
के स्वरूप में जीवित रखने का निश्चय किया तथा इसका नाम
अपनी चिता से पुनर्जीवित होने वाली चिड़िया के नाम पर
फ़ीनिक्स रखा। ट्रेडमार्क विवादों के चलते इसका नाम पहले
फ़ायरबर्ड तथा फिर फ़ायरफ़ॉक्स रखा गया।
प्रमुख ब्राऊज़र -
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३. क्रोम - यह गूगल का
बनाया ओपेन सोर्स ब्राऊज़र है। सबसे नया होने के
बावजूद लोकप्रियता में यह तेज़ी से बढ़ा है और तीसरे
नंबर पर है। क्रोम वैब किट पर आधारित है। टूलबार तथा
मेन्यू को काफ़ी कम और जालपृष्ठ को अधिक जगह देने के
कारण यह स्क्रीन का सबसे अच्छा सदुपयोग करता है। क्रोम
काफ़ी तेज़ ब्राऊज़र है और कई जालघर (वैबसाइट) जिनपर
जावास्क्रिप्ट का अधिक प्रयोग हुआ है क्रोम ही प्रयोग
करने की सलाह देते हैं
(http://www.chromeexperiments.com,
http://processingjs.org/exhibition)। काफ़ी समय तक
इसकी तेज़ी का कोई सानी नहीं था पर अब फ़ायरफ़ॉक्स तथा
ऑपेरा इससे थोड़ा ही पीछे हैं। पहले इसमें ऐक्सटेंशन
नहीं थे पर अब इसमें यह क्षमता जोड़ी गई है और कई
ऐक्सटेंशन अब उपलब्ध हैं। यह मैक ओ एस, विन्डोज़,
लिनक्स सभी ऑपरेटिंग सिस्टम पर उपलब्ध है।
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४. ऑपेरा - यह ब्राउज़र
तकनीकी रूप से सबसे समृद्ध माना जाता है। कई नई
क्षमताएँ सबसे पहले इसी ब्राउज़र में आई हैं - जैसे एक
ही विंडो में कई पृष्ठ दिखाने के लिए टैब का प्रयोग।
यह मैक ओ एस, विन्डोज़, लिनक्स सभी ऑपरेटिंग सिस्टम पर
उपलब्ध है। पीसी पर अधिक प्रयोग न होने के बावजूद इसकी
उपस्थिति मोबाईल फ़ोन, स्मार्टफ़ोन तथा पीडीए (डिजिटल
डायरी) पर काफ़ी ज़्यादा है। माएमो, ब्लैकबेरी,
सिंबियन, विंडोज़ मोबाइल, ऐण्ड्रॉयड तथा आईफ़ोन के
साथ-साथ जावा एम ई का प्रयोग करने वाले उपकरणों पर भी
यह ब्राउज़र उपलब्ध है।
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५. सफ़ारी - यह ब्राऊज़र
ऐप्पल ने अपने मैक औपरेटिंग सिस्टम के लिए बनाया था पर
अब यह विन्डोज़ तथा लिनक्स पर भी उपलब्ध है। यह भी वैब
किट पर आधारित है। इसका मुख्य आकर्षण यह है कि अगर आप
मैक औपरेटिंग सिस्टम इस्तेमाल करते हों तो विन्डोज़
तथा लिनक्स पर भी आपको वही वातावरण मिल सकता है।
२९
नवंबर २०१० |