सामयिकी भारत से

विमल कुमार सिंह द्वारा- स्वराजी गाँव हिवरे बाजार पर निर्मित फिल्म के विषय में आलेख-


गाँव देखो! स्वराज देखो! हिवरे बाजार देखो


फिल्में सपनों की दुनिया में ले जाती हैं, हर उम्र और वर्ग के लोग फिल्में देख-देखकर सपनों में जीते रहे हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश, हरियाणा, बिहार, मध्यप्रदेश आदि कई राज्यों के गाँवों में आजकल एक ऐसी फिल्म लोकप्रिय हो रही है जो वर्षों पुराने एक सपने को सच करने के लिए प्रेरित कर रही है, यह सपना है स्वराज का सपना। देश में सच्चे लोकतंत्र की स्थापना का सपना, जहाँ आम आदमी व्यवस्था का मालिक सिर्फ लोकतंत्र की परिभाषा में ही नहीं बल्कि हकीकत में भी हो।

यह सपना आजादी के संघर्ष में गाँधी जी सहित तमाम लोगों ने देखा था, उसके बाद भी अनेक नेताओं और सामाजिक मनीषियों ने यह सपना देखा कि देश में आजादी तो आ गई लेकिन अब स्वराज्य भी स्थापित हो, जनता का राज स्थापित हो।

यह फिल्म वस्तुत: २३ मिनट की एक डाक्यूमेंट्री फिल्म है जो महाराष्ट्र के हिवरे बाजार गाँव में पिछले २० साल में आए चमात्कारिक परिवर्तन का मंत्र खुद उस गाँव के लोगों की जबानी बयाँ करती है। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में बसा यह हरा-भरा गाँव आज ग्रामीण विकास का एक ऐसा आदर्श बन गया है जिसे देखने देश-विदेश से रोजाना करीब-करीब २०० लोग आ रहे हैं, जबकि १९८९ तक यह गाँव पूरी तरह सूखाग्रस्त था, लोग भूखे मर रहे थे और शराब पीकर आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। इस गाँव के लोगों का मानना है कि यह चमत्कार इसलिए हुआ क्योकि यहाँ हर महीने कम से कम एक ग्राम सभा की एक बैठक जरूर होती है। ग्राम सभा की बैठक में ही तय होता है कि गाँव की जरूरतें क्या हैं और वो कैसे पूरी होंगी? ग्राम सभा फैसले लेती है और पंचायत उन पर अमल करती है। आज इस गाँव में पानी है, समृद्धि है, मेल-मिलाप है, शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, सड़क की बेहतरीन व्यवस्था है। यह सब अपने दम पर है, फिल्म में दिखाया गया गाँव का प्रवेश द्वार और इसके ठीक सामने संसद की शक्ल में बना ग्राम चौपाल भवन जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है ”ग्राम संसद” लोगों को सहज ही आकर्षित करता है। यह गाँव गाँधी के ग्राम गणराज्य का साक्षात नमूना है।

स्वराज्य की बात लंबे समय से किसी न किसी रूप में समाज में चलती रही है। लोकमान्य तिलक ने कहा, गाँधी ने कहा, पंचायती राज के रूप में आजाद भारत की सरकारों ने कहा, समाजसेवियों ने कहा… सबने कहा, लेकिन स्वराज व्यवस्था हो तो गाँव कैसा होगा, ग्राम गणराज्य कैसा होगा? इसकी तस्वीर को इतिहास के पन्नों में या विद्वतापूर्ण लेखों से निकालकर हमारे सामने लाती है यह फिल्म जिसका नाम है ”हिवरे बाजार में स्वराज।”

यह फिल्म स्वराज अभियान से जुड़े कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने तैयार की है। जाहिर है कि इसका मकसद गाँव-गाँव यह संदेश पहुंचाना है कि दिल्ली और राजधानियों की सरकारों के भरोसे गाँवों का विकास नहीं हो सकता। इसके लिए हरेक गाँव के लोगों को पहल करनी होगी। फिल्म का प्रदर्शन बड़े पैमाने पर गाँव-गाँव जाकर किया जा रहा है। इसमें विभिन्न आंदोलनों से जुड़े आंदोलनकारी, सामाजिक संस्थाएँ और यहाँ तक कि सरकारों के पंचायती राज विभाग भी लगे हैं। २ अक्टूबर २००९ को पंचायती राज की सथापना की स्वर्ण जयंती मानते हुए केंद्र सरकार के पंचायती राज विभाग ने यह फिल्म विज्ञान भवन में आए हजारों ग्राम प्रधानों के सम्मेलन में दिखाई। वहीं से होती हुई यह राज्यों के पंचायती राज्य विभागों तक भी पहुंची है और वहाँ के सम्मेलनों में दिखाई जा रही है। हाल ही में लोकसभा चैनल पर स्वामी अग्निवेश के कार्यक्रम में भी यह फिल्म ज्यों की त्यों प्रसारित की गई।

लेकिन फिल्म का असली उपयोग स्वराज अभियान को आगे बढ़ाने में किया जा रहा है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश में कुछ ही महीनों बाद होने वाले पंचायत चुनावों को ध्यान में रख कर यह फिल्म इन दोनों राज्यों के गाँव-गाँव में दिखाई जा रही है, इसके देखने के बाद लोग खुद आह भरते हुए बात करने लगते हैं कि काश! हमारा गाँव भी ऐसा हो पाता। इस बातचीत को आगे बढ़ाते हुए नौजवान साथी अपने गाँव में भी स्वराज लाने का यानि कि ग्राम सभा सुचारू कराने का तथा गाँव का हर फैसला ग्राम सभा में ही कराने का इरादा करते हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में काम कर रहे उत्साही कार्यकर्ता मनोज आर्य अब तक अपने जिले के २० प्रमुख गाँवों में यह फिल्म दिखा चुके हैं। उनका काम करने का तरीका बड़ा सीधा-सादा है। वो फिल्म की दो-तीन सीडी लेकर उन गाँवों में जाते हैं जहाँ उनके पहले से कुछ मित्र हैं। उन्हीं के जरिए वे गाँव में प्रचारित करवा देते हैं कि फलां तारीख को गाँव के बारे में एक फिल्म दिखायी जाएगी। इसके लिए आवश्यक सीडी प्लेयर, टीवी सेट और बैटरी या जनरेटर का इंतजाम प्राय: गाँव वाले ही कर देते हैं। अब तक जहाँ कहीं मनोज ने फिल्म दिखायी है, वहाँ ग्रामीणों की प्रतिक्रिया बड़ी सकारात्मक रही है। लोग पूरी तन्मयता के साथ फिल्म देखते हैं। एक बार एक गाँव में फिल्म दिखा रहे थे कि बैटरी में कुछ खराबी आ गई। तब तक फिल्म आधी ही चल पायी थी। मनोज ने सोचा कि चलो आधी फिल्म के बारे में मौखिक रूप से बता देते हैं लेकिन ग्रामीण पूरी फिल्म देखने के लिए बेताब थे। एक ग्रामीण उठा और जाकर अपने ट्रैक्टर से बैटरी निकाल लाया और उसी से लोगों ने पूरी फिल्म देखी। फिल्म देखने के बाद कई युवा फिल्म के प्रचार-प्रसार के लिए काम करने में भी रुचि दिखाते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तरह पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी हिवरे बाजार की सीडी जोर-शोर से दिखाई जा रही है।

फैजाबाद में हुई एक बैठक में फैजाबाद, आजमगढ़, सुल्तानपुर्म बस्ती आदि जिलों के कार्यकर्ता पीपुल्स एक्शन फार नेशनल इंटीग्रेशन (पानी संस्था) के कार्यक्रम में इकट्ठा हुए तो उन्होंने इसके काफी दिलचस्प अनुभव सुनाए। प्रतापगढ़ से आई सुशीला मिश्र ने जब एक गाँव में महिलाओं के समूह को यह फिल्म दिखाई तो गाँव की महिलाओं ने उन्हीं से आग्रह किया कि ”दीदी इस बार आप ही प्रधान बन जाओं। फिर हम भी अपने गाँव को हिवरे बाजार की तरह बना लेंगे।” पानी संस्था से जुड़े शशि भूषण अब तक इस फिल्म को विभिन्न जिलों के ७०-८० स्थानों पर दिखा चुके हैं। जहाँ-जहाँ उन्होंने सीडी दिखायी, वहाँ के लोगों में कुछ कर गुजरने का जज्बा पैदा हुआ है। कुछ लोग ऐसे भी मिले जो कहते हैं कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाँवों की परिस्थितियाँ महाराष्ट्र से अलग हैं। इसलिए हिवरे बाजार का प्रयोग यहाँ सफल नहीं हो सकता। हालाँकि ऐसी नकारात्मक बात करने वाले कम ही मिले हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही चंदौली, कुशीनगर आदि जिलों में काम कर रहे जय शंकर और केशव ने यह फिल्म खुद गाँव-गाँव जाकर दिखाने का अभियान चला रखा है। केशव बताते हैं कि फिल्म देखकर गाँव में एक बात साफ हो जाती है कि आने वाला पंचायती राज चुनाव एक मौका है अपने गाँव में स्वराज लाने का।

उधर हरियाणा के गाँवों में भी इस फिल्म को आधार बनाते हुए आंदोलन खड़ा करने का सिलसिला जारी है। फतेहाबाद के जिले समैण गाँव में तो युवाओं ने सीडी दिखाने के लिए बाकायदा एक थ्री-व्हीलर तैयार कर लिया है। हिसार में हुई एक बैठक में इकट्ठा हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बताया कि इसमें कालेजों के छात्र-छात्राएँ भी गाँव-गाँव जा रहे हैं।

फिल्म के निर्देशक मनीष सिसोदिया के मुताबिक यह फिल्म एक सच्चे लोकतंत्र की झलक दिखाती है। सच्चे लोकतंत्र अर्थात स्वराज का मतलब जब लोगों की समझ में आ जाएगा, तब उसके लिए लोगों के मन में चाहत पैदा होगी और यदि एक बार चाहत पैदा हो गयी तो लोग उसे निश्चित रूप से हासिल भी कर लेंगे। भारत की जनता में वह दमखम मौजूद है।

 

२९ नवंबर २०१०