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१५. ११. २०१०

सप्ताह का विचार- आत्मिक शान्ति के बिना सांसारिक सुख सुविधा से संपन्न व्यक्ति झील में नहाते हुए प्यास से मरने वाले मनुष्य के समान है।

अनुभूति में-
1
देवव्रत जोशी, सर्वत जमाल, नेहा शरद, राजेश कुमार और सत्येश भंडारी की रचनाएँ।

सामयिकी में- क्या ओबामा के स्वागत के लिये खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश का द्वार खोलना उचित है? के एन गोविंदाचार्य का आलेख- खुदरा व्यापार पर संकट

रसोईघर से सौंदर्य सुझाव- बादाम और कच्चे दूध का लेप बनाकर आँखों के चारों ओर लगाने से काले घेरे दूर हो जाते हैं।

पुनर्पाठ में- समकालीन कहानियों के अंतर्गत १६ मार्च २००२ के अंक में प्रकाशित कामतानाथ की कहानी 'बिना शीर्षक'।

क्या आप जानते हैं? कोलकाता में १८७६ में निर्मित ४५ एकड़ भूमि में फैला अलीपुर प्राणि उद्यान भारत का पहला और सबसे बड़ा चिड़ियाघर है।

नवगीत-की-पाठशाला-में- कार्यशाला-११ में मन की महक विषय पर नवगीत प्रकाशित होना इस सप्ताह भी जारी रहेगा।। आगे पढ़ें...

वर्ग पहेली- ००३
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल-और-----
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रश्मि
-आशीष-के-सहयोग-से


हास परिहास


सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में यू.एस.ए से
सुधा ओम ढींगरा की कहानी सूरज क्यों निकलता है

वे गत्ते का एक बड़ा सा टुकड़ा हाथ में लिए कड़कती धूप में बैठ गए, जहाँ कारें थोड़ी देर के लिए रुक कर आगे बढ़ जाती हैं। बिना नहाए-धोए, मैले- कुचैले कपड़ों में वे दयनीय शक्ल बनाए, गत्ते के टुकड़े को थामे हुए हैं, जिस पर लिखा है -'' होम लेस, नीड यौर हैल्प।'' कारें आगे बढ़ती जा रहीं हैं, उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा। सैंकड़ों कारों में से सिर्फ दस बारह कारों वाले, कारों का शीशा नीचे करके उनकी तरफ कुछ डालर फैंकते हैं और फिर स्पीड बढ़ा कर चले जाते हैं। दोनों आँखों से ही डालर गिनते हैं, एक दूसरे को देखते हैं और ना में सिर हिला देते हैं.... अब वे सड़क के नए कोने पर खड़े हो गए हैं, जिसमें गंतव्य स्थान पर मुड़ने के लिए एग्ज़िट के कोने पर रुकने का चिह्न है यानि स्टाप साइन। ज्यों ही कारें रुकतीं हैं, वे गत्ते के टुकड़े को उनके सामने कर देते हैं, कुछ लोगों ने गाली दी -''बास्टर्ड, यू आर बर्डन ऑन दा सोसाईटी।''  पूरी कहानी पढ़ें...
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मनोहर पुरी का व्यंग्य
स्वागत बराक ओबामा का
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पुष्कर मेले के अवसर पर
पर्यटन के अंतर्गत- कहानी पुष्कर की
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डॉ. भारतेन्दु मिश्र का आलेख-
समकालीन गीत: आलोचना के आयाम

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गृहलक्ष्मी के साथ जियें
तनाव मुक्त जीवन

पिछले सप्ताह
बाल दिवस के अवसर पर

शशिप्रभा शास्त्री की लघुकथा-
शुरुआत
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विनोदचंद्र पांडेय का आलेख-
बाल साहित्य संरचना- ध्यान देने योग्य बातें
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अखिलेश श्रीवास्तव चमन का आलेख-
हिंदी बाल साहित्य का इतिहास
*

फुलवारी में-
बच्चों की कहानियाँ

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बाल दिवस के अवसर पर
प्रताप नारायण सिंह की कहानी गोपाल

नदी का कछार। किनारे से दस फर्लांग ऊपर दो चर्मकर्मी नदी में बहकर आए मरे हुए बैल का चमड़ा निकाल रहे थे। उनके पास ही बैठकर गोपाल उन्हे काम करता हुआ देख रहा था। सुबह के लगभग दस बज रहे होंगे।
"का रे गोपला ! इहाँ आकर बैठा है?" दस कदम दूर से ही चन्दू चीखते हुए गोपाल की ओर झपटे। आवाज सुनते ही गोपाल स्प्रिंग की तरह उठ खड़ा हुआ और पनपनाकर भागा। चन्दू उसके पीछे दौड़े और चालीस-पचास कदम की दौड़ के बाद उसे दबोच लिया। ग्यारह साल के गोपाल के कदम, बीस साल के बड़े भाई के कदमों को नहीं छका सके। पकड़ते ही लात-घूसों से पीटना शुरु कर दिया- ’उहाँ चच्चा दो घन्टा तक जोह कर चले गए और तू भागकर हियाँ सिवान में मटरगस्ती कर रहा है।" "  
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